विज्ञान और अध्यात्म की कुंजी से दुनिया को खोलने का प्रयास। कम से कम खर्च करके कैसे बहुत कुछ कहा, दिखाया जा सकता है, वाजदा और गोकर्ण के चित्र इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। हमारे समकाल को जिस बारीकी और बेचैनी के साथ इन चित्रों में पकड़ने की कोशिश की गई है, उसमें नए मुहावरे और नई तकनीक स्वत: बनते-उभरते गए हैं।
वाजदा भू-ज्यामिति और वास्तु के तंतु इस्तेमाल कर अपने भूगोल को समझने और उकेरने का प्रयास करती हैं। उसमें रंग और रेखाएं अनिवार्य रूप से एकमेक हो जाती हैं। कहीं रंगों में रेखाएं घुल जाती हैं, तो कहीं रेखाओं के लिए रंग खुद जगह छोड़ते चलते हैं। इस तरह दोनों एक-दूसरे से अलग अपनी सत्ता कायम किए रहते हैं, अपनी इयत्ता बनाए रखते हैं, तो दोनों एक दूसरे में खुद को समाहित, अपने को दूसरे में विसर्जित भी करते चलते हैं। वाजदा के यहां काला रंग अपना अलग अर्थ व्यंजित करता है। संकेत स्पष्ट है कि वास्तव में काले का ही जीवन और जगत में प्रभुत्व होता है, जैसे ब्रह्मांड में ब्लैक मैटर का प्रभुत्त्व है।
गोकर्ण अमूर्तन का एक नया शिल्प लेकर उपस्थित हुए हैं। वे ज्यामितिक आकारों में धागे का इस्तेमाल करते हुए न सिर्फ मनोहारी शिल्प रचते हैं, बल्कि थोड़े में बहुत कुछ कह देते हैं। दरअसल, वे धागे को सूत्र की तरह इस्तेमाल करते हैं। सूत्र, जो पिरोने, गूंथने, दो अलग रंगीन खंडों को परस्पर जोड़ने का काम करता है। इस तरह गोकर्ण साधारण-सी लगने वाली चीजों को आध्यात्मिक आयाम दे देते हैं। इस तरह लघुतर को महत्तर बना देने का यह हुनर कहीं और नहीं दिखता।
यह प्रदर्शनी सैयद हैदर रजा की सौवीं सालगिरह के मौके पर आयोजित की गई। इन अर्थों में भी वाजदा और गोकर्ण के चित्रों की सार्थकता बनती है। इनके चित्रों में सही अर्थों में रजा की परंपरा प्रवहमान दिखाती है।