चेतनादित्य आलोक

मित्र, दोस्त, यार, सखा, मीत आदि शब्द उस रिश्ते को परिभाषित करते हैं, जहां पर कोई बंधन नहीं होता, सीमाएं नहीं होतीं, भय या हिचक का भाव नहीं होता, बल्कि उस रिश्ते में तो शक्ति, साहस, प्रेम, शांति, निश्चिंतता, सौंदर्य, सहयोग, सौहार्द और संवेदनाओं का समावेश होता है।

मित्रता उस रिश्ते का नाम है, जिसे व्यक्ति स्वयं ही बनाता है और कायम रखता है। एक अच्छा या सच्चा मित्र हर घड़ी, हर मोड़ पर अपने मित्र का साथ निभाता है। जीवन में चाहे जैसी भी परिस्थितियां आएं, एक सच्चा मित्र अपने मित्र का साथ कभी नहीं छोड़ता। वह अपने मित्र की अच्छाइयों की प्रशंसा तो करता ही है, साथ ही वह उसकी भूलों, बुराइयों और भविष्य में आने वाली तमाम परेशानियों एवं संकटों के प्रति सचेत भी करता है।

उदासी और निराशा में घिरे रहने पर जीवन के उजालों के सपने दिखाता है मित्र

ऐसा मित्र अपने मित्र को जीवन में आगे बढ़ता और ऊंचाइयां चढ़ता देखकर जलता नहीं, बल्कि खुश होता है और उसकी राह में किसी प्रकार का अवरोध आ जाने पर वह उन बाधाओं से निपटने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करता है और सहयोग भी। कभी उदासी और निराशा में घिरे रहने पर ऐसा मित्र जीवन के संभावित उजालों और नई सुबह के सपने दिखाकर फिर से उठ खड़े होने का साहस और भावना पैदा करता है।

इसीलिए कहते हैं कि एक सच्चा मित्र हमारे जीवन में कई अन्य रिश्तों-नातों के अभाव को पूरा कर देता है। सच कहें तो सच्चा मित्र गाड़ी के पहिये के समान होता है, जिसके अभाव या क्षतिग्रस्त हो जाने की स्थिति में हमें शारीरिक, मानसिक, आर्थिक आदि अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। एक विश्वसनीय और सच्चा मित्र जीवन के लिए औषधि की तरह हितकारी सिद्ध होता है। यह एक ईश्वरीय उपहार है, जिससे चरित्र अलंकृत और प्रशंसित होता है।

दूसरी ओर किसी बुरे व्यक्ति के साथ मित्रता हो जाने पर जीवन दुश्वार हो जाता है। कदम-कदम पर परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। ऐसे में कुछ लोग सच्चे मित्र की तलाश में काफी चयनात्मक हो जाते हैं। वे एक ऐसे विशेष व्यक्ति की तलाश में लग जाते हैं, जो उनकी सोच-समझ की कसौटी पर खरा उतर सके। लेकिन सच यह है कि मित्रता कभी किसी विशेष व्यक्ति से नहीं होती, बल्कि जिनसे हो जाती है, वही जिंदगी में ‘विशेष’ बन जाते हैं।

वहीं कुछ लोग इस उम्मीद में अनेक लोगों से मित्रता कर लेते हैं कि आज नहीं तो कल, कभी न कभी एक सच्चा मित्र उन्हें मिलेगा ही। जबकि सच्चाई यह है कि जीवन में मित्रों की संख्या बढ़ा लेना महत्त्वपूर्ण नहीं होता, बल्कि एक दोस्त के साथ जिंदगी भर सच्ची दोस्ती वाला रिश्ता निभाना महत्त्वपूर्ण होता है। इसीलिए महान दार्शनिक सुकरात ने कहा है कि मित्रता करने में शीघ्रता मत करो, लेकिन अगर मित्रता करो तो अंत तक निभाओ। मनुष्य चाहे बच्चा हो, वयस्क हो या वृद्ध, आमतौर पर प्रत्येक उम्र में उसे मित्रों की आवश्यकता होती है।

अकेले या वयस्क लोगों के साथ परिवार में रहने वाले बच्चों की तुलना में मित्रों के साथ समय व्यतीत करने वाले बच्चों का विभिन्न स्तरों पर बेहतर विकास होता है। वे कोई भी बात शीघ्र सीख लेते हैं। उनका मानसिक स्तर ऊंचा और बुद्धि प्रखर होती है।

मित्रों के साथ समय व्यतीत करने से वयस्कों और वृद्धों को भी भावनात्मक साथ और समर्थन मिलता है। इससे उन्हें नकारात्मक विचारों से मुक्ति मिलती है और मन-मस्तिष्क में सकारात्मकता का संचार होता है। इसी प्रकार कार्यस्थल पर भी मैत्री का भाव और सौहार्दपूर्ण माहौल बने रहने से कर्मियों के मन-मस्तिष्क में कार्यों के प्रति उत्साह और संतुष्टि की भावना में वृद्धि होती है।

तात्पर्य यह कि दोस्ताना माहौल में मनुष्य अपेक्षाकृत बेहतर और ज्यादा काम कर पाता है। एक अध्ययन के अनुसार. अगर कार्यस्थल पर मित्रतापूर्ण माहौल हो तो कार्यों के प्रति कर्मियों के लगन और परिश्रम में पचास फीसद तक की वृद्धि होती है। संक्षेप में कहें तो मित्रता मनुष्य के सार्वभौमिक अस्तित्व के लिए अपरिहार्य होती है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मित्रता कभी भी एकांगी या एकतरफा नहीं होती, बल्कि यह दोतरफा होती है। यानी एक अच्छे मित्र की चाह रखने वाले व्यक्ति को खुद एक अच्छा मित्र बनना भी पड़ता है। इमर्सन ने ठीक ही कहा है कि एक अच्छा मित्र पाने से पहले एक अच्छा मित्र बनने की आवश्यकता होती है।

मनुष्य के जीवन में मित्रता की जरूरत, महत्त्व और भूमिका को देखते हुए मित्रता की इस दोतरफा भावना को मजबूती प्रदान करने के लिए वैश्विक स्तर पर ‘अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस’ की आवश्यकता महसूस की गई। यह दिवस दोस्ती को लेकर हमारे भीतर के संकल्पों, भावनाओं, संवेदनाओं और जिजीविषा को मजबूती प्रदान करता है।

यह हमारे मन और जेहन में समर्पण की भावना और मैत्री-भाव की गर्माहट को पुष्पित-पल्लवित होने का एक और अवसर प्रदान करता है। ऐसे में यह प्रश्न पूछना स्वाभाविक ही है कि दुनिया में आज मैत्री-भाव का इतना अभाव क्यों है… क्यों इतनी नफरत, हिंसा और द्वेष का वातावरण बना हुआ है?