एकता कानूनगो बक्षी

सांध्य बेला मे पंछियों के झुंड को अपने बसेरों की तरफ लौटते हुए हम सभी ने देखा है। कितना प्यारा मोहक दृश्य होता है वह। भले ही हमारा सारा दिन खट्टे-मीठे और कड़वे अनुभवों से जूझते हुए व्यतीत हुआ हो पर अंत में घर लौटते पक्षियों को निहारना बड़ा सुकून देता है। शारीरिक और आत्मीय रूप से हमें राहत देकर यह फिर से तरोताजा होने में बड़ी मदद करता है। घर लौटने का दृश्य ही नहीं, इस विचार में ही बड़ी शक्ति होती है।

हर प्राणी को अपना घर प्यारा होता है। सबसे अनमोल। फिर वह एक-एक तिनके को जुटाकर बनाया घोंसला हो, जमीन को खोद कर बनी कोई सुरंग या खोह, पेड़ की कोई डाली, समुद्र, नदियों की गहराई में किसी शिला की आड़ या फिर उसमें सूराख कर बनाया बसेरा, संगमरमर और बेशकीमती पत्थरों से तराशा आलीशान महल या फिर घास-फूस से बनाई छोटी-सी कोई झोपड़ी।

अपने आवास के लिए सही स्थान का चयन करना काफी सूझ-बूझ और परिश्रम की मांग करता है। स्वच्छ हवा, धूप, जल, मूलभूत जरूरतों के साथ सबसे महत्त्वपूर्ण होता है ऐसी जगह को ढूंढ़ पाना, जहां प्राणी सुरक्षित महसूस कर सकें। यही कारण है कि छोटे जीव इतना सूक्ष्म प्रवेश द्वार बनाते हैं कि उनके अलावा कोई अन्य या उनका शत्रु उनके आवास के भीतर प्रवेश न कर सके। घर के संदर्भ में सुविधाओं और सुरक्षा को प्राथमिकता में रखे जाने के बावजूद अभावों और असुरक्षा के बीच आकाश की खुली छत और जमीन का बिछौना संजोए अक्सर मुस्कुराता हुआ कोई न कोई परिवार नजर आ जाता है।

उनके बीच की सामूहिकता और प्रगाढ़ स्नेह उनके चारों ओर ऐसा सुरक्षा कवच विकसित कर देता है जो कई मजबूत भवनों को टक्कर देने की सामर्थ्य रखता है। इसके उलट कई बार भव्य, सुविधाजनक, सजे-धजे घरों में मायूस, असंतुष्ट और दुखी चेहरे देखने को मिल जाते हैं। अगर खुशियों का रास्ता किसी सुविधाजनक भवन से होकर गुजरता है तो फिर यह कैसे संभव है कि इस तरह की आदर्श व्यवस्था के बावजूद हम सुकून और आनंद से सराबोर घर नहीं बना सके! शायद इसलिए कि हम यह समझते रहे हैं कि कंक्रीट, बेशकीमती फर्नीचर, ऐशो-आराम की तमाम चीजों से घर का निर्माण संभव है।

सच तो यह है कि इस तरह भव्य मकान, अट्टालिकाएं तो जरूर बन सकती हैं, पर घर नहीं बनाया जा सकता। घर का निर्माण एक जटिल और सतत साधना का परिणाम होता है। मनुष्य को अपना घर बनाने के लिए बाहरी सामग्रियों के साथ ही खुद के भीतर सहनशीलता, धैर्य, रिश्तों की आत्मीय सुरक्षा, विश्वास, संवेदनशीलता, निर्णय की दृढ़ता और सौहार्द जैसे परिपक्व गुणों का होना जरूरी होता है।

दरअसल, घर का अहसास मन के भीतर होता है। घर बनाते हुए हम जमीन, नक्शे, दिशाओं और वास्तु पर जितना गौर करते हैं, उतना शायद ही हमारे मन की संरचना पर ध्यान दे पाते होंगे। जहां से असल में सृजन का बीज उत्पन्न होता है। जब भीतर द्वंद्व, विध्वंस की स्थिति निर्मित है तो बाहर हम कैसे कुछ सृजन कर सकते हैं।

यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारा मन और शरीर हमारा सबसे पहला घर है जो हमें भीतर से शांति और संतोष देता है। फिर अधिक फर्क नहीं पड़ता कि बाहरी व्यवस्था क्या है। खुद को भीतर से विकसित करने पर हमें हर जगह सुकून महसूस होने लगता है। यहां तक कि किसी और के नकारात्मक विचारों का भी हमारे मन रूपी घर मे प्रवेश नहीं हो पाता। हमने जब अपनी विवेकशीलता को यहां तक विस्तारित कर लिया है कि इन निरर्थक बातों के प्रवेश के लिए हमने कोई द्वार ही नहीं छोड़ा है। हमारे भीतर ही हमारे बाहरी घर की नींव निर्मित होती है।

मकान हमारा अकेले का हो सकता है, हमें अहं के भाव से भर सकता है, पर घर हमें विनम्र, कृतज्ञ बनाता है। वह हमसे पहले उन सभी जीव-जंतुओं का होता है जो हमारे साथ सुख-दुख से भरा लंबा सफर तय करने वाले हैं। वहां चिड़िया भी आएंगी तो चूहे भी। कभी-कभी चींटियों की लंबी कतार अपना रास्ता हमारे घर के बीचोंबीच से पार करेंगी। इन सबको लेकर हमें आगे बढ़ना है। अपने धीरज से इन साथियों को बिना हानि पहुंचाए यह समझते हुए कि घर इनका भी है।

घर बनाना वैचारिक भावनात्मक अनुभव अधिक महसूस होता है। यह हमारी जीवन की मूलभूत जरूरत का हिस्सा जरूर है। पर यह याद रखना बेहद जरूरी है कि हम इसमें लोभ की भावना न आने दें। हम बस उतना ही निर्माण करें, जितने की जरूरत हो। छोटा-सा घर हो बादलों की छांव में, कितनी खूबसूरत आकांक्षा है। एक खूबसूरत संरचना का सिद्धांत भी हमें यही सिखाता है कि अनावश्यक हिस्से को हटाते हुए ही हम एक सुंदर कलाकृति बना सकते हैं। तो क्यों न हम इस दुनिया की सुंदरता के लिए ईमानदारी से केवल अपनी जरूरत का हिस्सा ही घर बनाने के लिए प्रयोग में लें!