महेश परिमल

हम सभी के जीवन में बहुत से ऐसे पल होते हैं, जो यादगार होते हैं। अक्सर लोग यादगार लम्हों को संजोकर रखना चाहते हैं। आजकल मोबाइल का जमाना है। लोग जीवन के पल-पल को संजोकर रखने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। मोबाइल से ली गई तस्वीरों को देखकर हमें इनका हिसाब देना होगा। हमें यह बताना होगा कि यह तस्वीर हमने कहां ली थी, किस शहर में ली थी, किन परिस्थितियों में ली थी। इन तस्वीरों के बारे में बताने के लिए हमें अपनी याददाश्त को पूरी तरह से चैतन्य रखना होगा। इन तस्वीरों के साथ हम कहीं न कहीं बंध जाते हैं। इससे अलग हटकर जिंदगी के कुछ लम्हे ऐसे होते हैं, जिनके लिए हमें किसी को भी हिसाब नहीं देना होता।

ये सारे पल हमारे होते हैं। इन पर हमारा ही अधिकार होता है। ये खाली लम्हे ऐसे होते हैं, जो हमें खुद के करीब ले जाते हैं। जब हम खुद के करीब होते हैं, ये वही पल होते हैं, जो हमें कुछ न कुछ सबक दे जाते हैं। इन सबक में वे विचार भी होते हैं, जिनसे हमारे जीवन को नई दिशा दी।

इन लम्हों के बदले में हमें मिला एक नया विचार, जिसने जीवन की दिशा ही बदल दी

हम उदास हैं, शहर से दूर कहीं एकांत में बैठे चिंतन कर रहे हैं। विचारों का प्रवाह आ-जा रहा है। विचारों की तरंगें दूर जा-जाकर लौट रही हैं। ऐसे में एक विचार आया और हम एक दृढ़ संकल्प के साथ उठ खड़े हुए। ये वही खाली लम्हे थे, जिस पर हमारा पूरा अधिकार था और रहेगा। इनका हिसाब हमें किसी को नहीं देना होता है। इन लम्हों को हमने पूरी तरह से स्वयं पर खर्च किया। इसके बदले में हमें मिला एक नया विचार, जिसने जीवन की दिशा ही बदल दी। एक ओर जहां जिंदगी तेजेी से भाग रही हो, उन हालात में हम कहीं एकांत में बैठकर कुछ सोचने बैठ गए। इसके बरक्स आसपास ही देख लिया जाए, हर कोई भागा जा रहा है। सभी के हाथ में मोबाइल के अलावा कीमती घड़ी भी है, पर किसी के पास वक्त नहीं है।

इंसान कई बार अपने लिए जीता है, तो कई बार अपनों के लिए। जीने के इस क्रम में हमेशा गफलत हो जाती है। जब उसे अपने लिए जीना होता है, तब वह अपनों की फिक्र करता है, पर जब उसे दूसरों के लिए जीना होता है, तो उसे खुद की याद आती है। इंसान यहीं लड़खड़ाता है। कब अपने लिए जीना है और कब अपनों के लिए, यह जीवन जीने के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। सबसे पहले हमें अपनों की तलाश करनी होगी। देखा जाए तो कभी कोई किसी का सगा नहीं होता, दूसरी तरफ हर कोई हमारा अपना है, सगा है।

जीवन में जब हम अपनों के बीच होते हैं, तो समय अगर ठहर गया है, तो समझ लिया जाए कि वे अपने हैं। जिनके करीब जाने से जीवन ही बोझ लगने लगे, तो समझा जाए कि वह कभी अपना नहीं हो सकता। जिनके पास जाने से समय ठहर जाता है, ठीक वही व्यक्ति है, जो हमारे खाली लम्हों को जिंदा रखने में हमारी मदद करेगा। हमें ऐसे लोगों की तलाश करनी होगी। ऐसे लोग हमें दोस्त के रूप में भी मिल सकते हैं, रिश्तेदार के रूप में और कभी-कभी हमारे सहकर्मी के रूप में। इनमें से हमारे अपने कौन हैं, ये समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं या नहीं, यह वक्त बताता है।

हम सब जिंदगी की एक ऐसी दौड़ में शामिल हैं, जिसका कोई अंत नहीं है। इस अंतहीन दौड़ में हर कोई भागा जा रहा है। उसे कहां जाना है, उसे ही पता नहीं। यह दौड़ कब और कहां खत्म होगी? कहीं पढ़ा था कि जिंदगी की दौड़ में इतना भी तेज मत दौड़ो कि जब तुम पीछे देखो, तो अपनों के चेहरे धुंधले दिखने लगें। आज वही हो रहा है, हम दौड़ रहे हैं, हमारी गति तेज होती जा रही है, अपनो से दूर हो रहे हैं, उनके चेहरे धुंधले हो रहे हैं। हमारे सामने वे ही चेहरे हैं, जो हमारे प्रतिस्पर्धी हैं। अपने प्रतिस्पर्धी को ही हमने अपना मान लिया है। उनकी बराबरी करते हुए हम रिसते जा रहे हैं। भीतर से खाली हो रहे हैं। यहां तक पहुंचते-पहुंचते हम इतने खाली हो जाते हैं कि हमारे पास खाली लम्हे भी नहीं बच पाते।

हम उन खाली लम्हों को फिर से लाना होगा। वे लम्हे ही थे, जिसके माध्यम से हम अब तक सामाजिक कुरीतियों से बच पाए। अपनों के बीच अपना बनकर रह पाए। वे खाली लम्हे हमसे बस थोड़ी-ही दूर हैं। इन लम्हों का हमें किसी को हिसाब नहीं देना है। ये अपने हैं और अपने ही रहेंगे। इनके बीच रहकर हम बहुत-कुछ सीख पाएंगे। जीवन की इस शाम में खाली लम्हों के बीच समय गुजारा जाए, तो सुकून की दौलत मिलेगी। यह दौलत ही जिंदगी की सबसे बड़ी दौलत होती है। सारी दौड़ इसी को पाने के लिए हो रही है।