कुछ मौके ऐसे होते हैं, जब लोग आसमान में चांद के उगने की दिशा में आंखें फाड़ कर देखते रहते हैं। ज्यों ही चांद अचानक ऊपर चढ़ता हुआ दिखता है कि चारों तरफ हल्ला मच जाता है कि चांद आ गया। चांद को देखने की कोशिश चलती ही रहती है। हर घर-आंगन से एक ही आवाज उठती रहती है कि चांद दिखा या नहीं और बच्चे चांद को देखने निकल जाते हैं।
अब घर की मुंडेर पर दिख रहा चांद
इस तरह की बातें सभी ने सुनी होंगी और सुनने को मिलती रही हैं। ज्यादातर बच्चों की मां कहती रहती होंगी कि देखो, चांद पेड़ों की पत्तियों से झांकते-झांकते ठीक ऊपर आ गया। अब घर की मुंडेर पर चांद दिख रहा है। इस तरह दिखते हुए चांद से मां और बच्चे बातें करते रहते थे। आंगन में लेटे-लेटे आसमान में चांद को देखते-देखते चांद से बातें करते बचपन निकल गया। चांद को देखना, चांदनी रात में घूमना, चांद के किस्से और कहानियों को सुनना-जानना कभी कम नहीं होता।
चांद को निहारते लोग अमूमन सभी जगह मिल जाएंगे
चांद के प्रति यह एक सहज आकर्षण रहा है जो उस दुनिया के प्रति होता है, जिससे हमारा बहुत निकट का रिश्ता होता है। चांद सबका प्यारा होता है। सभी चांद को देख रहे हैं। चांद को किसी एक रचना या एक केंद्र से थोड़े समझ सकते हैं! वह तो नए-नए सिरे से प्रकट होता रहता है और दुनिया है कि चांद को देखती रहती है। घंटों छत से खुले आसमान के तले चांद को निहारते लोग अमूमन सभी जगह मिल जाएंगे। पूछा जाए कि वे क्या कर रहे हैं, तो यही जवाब मिलेगा कि कुछ नहीं, चांद देख रहे हैं।
इस तरह चांद सहज ही जीवन के केंद्र में रहा है। जहां से देखा जाए, जैसे भी देखा जाए, चांद एक दूरी पर मुस्कुराता हुआ मिल जाता है। चांद क्रोध में नहीं दिखता। हमेशा शीतलता, शांति और सुकून देने की गति के कारण ही चांद के प्रति यह दुर्निवार आकर्षक बना रहता है। एक बार चांद से अपनापन जोड़ कर देखने के बाद ऐसा रिश्ता बन जाता है कि चांद दूर जाता ही नहीं। यह सबका है। मां और बच्चे चंदा मामा के गीत गाते नहीं अघाते। अब चांद है तो शीतलता, गति, चंचलता और एक जादुई आकर्षण तो बना ही रहता है। चांद को देखने के क्रम में ही जीवन की गति को बढ़ते हुए देखते हैं।
बड़े-बुजुर्ग अक्सर यह बताया करते थे कि आसमान में चांद यहां दिख रहा है तो इसका मतलब कि यह समय हो रहा है। चांद को देखते-देखते अपनी घड़ी की सूइयां भी देखते थे। अगर वे नहीं चल रही हैं तो चांद से घड़ी को मिलाकर चला देते थे। लोगों में चांद के प्रति इतनी दीवानगी रही है कि चांद को देखने के लिए आंगन में, छत पर, मैदान में पहुंच जाते और जब तक क्षितिज से चांद झिलमिल-झिलमिल बादलों के बीच से नहीं दिख जाता, तब तक लोगों को चैन नहीं मिलता। चांद के साथ एकरूपता को लेकर नहीं चल सकते। चांद एक रूप में नहीं रहता। वह लगातार अपनी कला के साथ प्रकट होता रहता है। यह चांद की गति पर निर्भर रहता है कि आज कितना और कैसे दिखेगा। यह दिखता हुआ चांद जीवन के केंद्र में बना रहता है। चांद को देखते-देखते ही बच्चा बड़ा हो जाता है, पर चांद अपनी गति और कला को लेकर नित्य नए रंग, नए आकार में दिख जाता है। चांद को पूर्णता में देखना भी कम रोचक नहीं रहता।
चांद से ‘अमृत’ की बारिश होती है और शरद पूर्णिमा पर किरणें खीर की थाली में उतरती हैं
कहते हैं कि पूर्णिमा का चांद जब पूरा दिखता है तो धरती पर अंधेरे के बीच भी इतना उजास हो जाता है कि सब कुछ साफ-साफ दिखता है। यह पूर्णिमा का चांद या पूनम का चांद इतना पूर्ण दिखता है कि बस देखते रहा जाए। यहां तक कहते हैं कि इस चांद से ‘अमृत’ की बारिश होती है और शरद पूर्णिमा के दिन चांद की किरणों को खीर की थाली में उतरने के लिए छत पर रख देते हैं। माना जाता है कि अमृत वर्षा से यह खीर अलग ही प्रभावी और औषधीय गुण से युक्त हो जाती है। मान्यताएं और धारणाएं कई बार यों ही चलती रहती हैं। कितनी ही बातें हैं चांद के साथ और चांद का रूप सौंदर्य यहां पूर्णता से अपनी ओर खींचता है कि सब चांद की ओर भागे चले जाते हैं। यह चांद हमारी छत पर पहले छप्पर और खपड़े पर होता था। ऐसा लगता था कि हाथ उठाया और चांद को पकड़ लिया। अक्सर इस चांद को पाने के लिए बच्चे मचलते रहते थे।
न जाने कितनी कहानियों-कविताओं में, मनुष्य के राग-विराग में हर जगह चांद है। अब तो चांद के साथ एक और रिश्ता जोड़ लिया गया। हमारे वैज्ञानिक प्रगति के क्षण में हम अपने चंद्रयान मिशन-3 के साथ चांद पर पहुंच गए और चांद की तस्वीर लेने लगे। चांद हमारी प्रगति, विश्वास और आकांक्षा के रिश्ते को एक साथ परिभाषित करता है। जरूरी नहीं है कि हम खुद चांद पर जाएं। पर चांद को आंख उठाकर मन से देखें तो कि चांद क्या कह रहा है?