एकता कानूनगो बक्षी

जीवन की हर जद्दोजहद में हमारे पास आमतौर पर दो विकल्प मौजूद होते हैं। पहला यह कि या तो हम अपनी वर्तमान परिस्थिति में खुश रहें या फिर हम उस अनचाही परिस्थिति को कोसते हुए अवसाद से ग्रस्त हो जाएं। इन दो विकल्पों को भी एकमात्र उपाय में कुछ इस तरह सोचकर परिणत कर सकते हैं कि हर तरह की मुश्किल में हम बेहतर करते रहने के लिए प्रयासरत बने रहेंगे, संघर्ष करते रहेंगे। मेहनत और कोशिशें हमें विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कराने का साहस दे जाती हैं।

अपने को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए मन और तन को स्वस्थ और संतुलित रखें

यही कारण है कि कई बार हमें परेशानियों और अभावों से जूझता कोई व्यक्ति मुस्कराता हुआ नजर आ जाता है। उसे पता होता है कि कठिन जीवन में बने रहने के लिए उसके पास बहुत अधिक विकल्प नहीं हैं। वह व्यस्त रहता है, मेहनत करता है, अगले दिन अपने को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए मन और तन को स्वस्थ और संतुलित रखने की कोशिश करता रहता है।

मदद की आस के बजाय अपनी मेहनत से उठाए छोटे कदम अधिक कारगर होते हैं

जिम्मेदारियों का भार कम करने का रास्ता खुद के द्वारा की गई आज की मेहनत और हिम्मत से होते हुए ही गुजरता है। सुंदर भविष्य के महल की नींव हर दिन थोड़ी-थोड़ी करके बनाता रहता है। शायद यही सही रास्ता भी है। किसी चमत्कार की उम्मीद या किसी खजाने के मिल जाने की उम्मीद पालने या किसी और से मदद की आस लगाए बैठे रहने के बजाय अपनी मेहनत से उठाए गए छोटे कदम अधिक कारगर कहे जा सकते हैं।

एक ओर संतुलित रहकर ईमानदारी से अपना काम करते रहना सहज है, वहीं कई बार ऐसी भी दुसाध्य परिस्थितियों से हमारा सामना हो जाता है, जब हम लगभग बेबस हो जाते हैं, दुख और संताप हमारे जीवन में प्रवेश करने लगता है। इस तरह के अनायास दुख को हमारे संघर्ष के उस आखिरी पड़ाव की तरह देखा जा सकता है, जिसमें हमारे स्वयं के सारे प्रयास समाप्त हो चुके हों। इसके बाद हम निष्क्रियता की डगर पर बढ़ते हुए किसी अन्य व्यक्ति से सहायता की उम्मीद पालने को विवश होने लगते हैं। यही स्थिति एक तरह से हमारे लिए घातक होती है, जिससे तत्काल बाहर निकलना बेहद जरूरी होता है।

यकीनन हमारी दुनिया ऐसे बहुत अच्छे लोगों से आबाद है, जो अपनी जरूरतों को पीछे रखकर दूसरों की निस्वार्थ मदद के लिए आगे आते रहे हैं। इसीलिए यह भी कहा जाता है कि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है। लेकिन सवाल है कि ऐसी उम्मीदें हमारे जीवन का रास्ता सुगम बनाने में कितनी मदद करेंगी या क्या सचमुच कोई सार्थकता उनमें खोजी जा सकती है? विषम स्थिति में बाहरी मदद की उम्मीद को भले ही हम पूरी तरह गलत नहीं मान सकते, पर सच तो यह है कि जब तक हम खुद सक्षम हैं, तब तक अपनी महत्त्वाकांक्षाओं और अपने से संबंधित खुशियों की जिम्मेदारी पूरी तरह हमारी अपनी होनी चाहिए।

यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारी दुनिया जरूरतों की नींव पर खड़ी हुई है। हम एक दूसरे पर निर्भर हैं। एकाकी जीवन पसंद करने वाले व्यक्ति को भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए समाज का रुख करना ही होता है। फिर वह आर्थिक जरूरत हो या फिर भावनात्मक निर्भरता। हमें समाज की जरूरत होती है। जरूरतों का गहरा संबंध अपेक्षाओं और उम्मीदों से है। उम्मीद एक ओर एक सकारात्मक शब्द है, हमें हौसला देती है, दूसरी ओर यही उम्मीद उस समय हानिकारक हो जाती है, जब हम खुद से और दूसरों से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें पालने लगते हैं। इससे आगे, उम्मीद जब अपेक्षाओं में बदलने लगती हैं, तब नई समस्याएं आ खड़ी होती हैं।

अक्सर उदास और निराश व्यक्ति के असामान्य आचरण को समझने पर पता चलता है कि उनके दुख के मूल में दूसरों द्वारा किए गए गलत व्यवहार, उपेक्षा और असहयोग भी कारक होते हैं। अन्यों से मिलने वाला यह बोझ हम इसलिए उठाते रहते हैं कि हमने उनसे बहुत अधिक उम्मीदें लगा रखी थीं। नए लोगों से हम अपने संबंधों का विस्तार तो करते हैं, पर हम वह सीमा तय नहीं कर पाते, जिसमें हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह स्वतंत्र बना रह सके। हमारी खुशी और मुस्कराहटों के निर्धारक हम स्वयं हो सकते हैं।
उम्मीद जीवन का वाहक है।

इसलिए जीवन के लिए उम्मीद कायम रहनी चाहिए। लेकिन इसके समांतर यह भी सच है कि खुद से बहुत अधिक उम्मीद करने की जगह अगर हम अपने आपको भी अपने वर्तमान के काम को पूरी निष्ठा के साथ करने को प्रेरित करते रहें और उससे आई हमारी अपनी सफलता को बिना किसी मापदंड पर आंकें, खुशी-खुशी गले लगा लें तो ऐसे में हमारी खुशियां तो बढ़ेंगी ही, हमें नए मुकाम हासिल करने की ऊर्जा भी मिल जाएगी।

जिंदगी में मौजूदा जरूरत की खुशियों को जीने के बजाय खुद को समेटना जीवन के वास्तविक तत्त्वों को हमसे कई बार छीन लेता है। भविष्य पर टिकी दूरस्थ उम्मीदों को फतह कर लेने से बड़ी उपलब्धि हमारे आज को भरपूर तरीके से जी लेने में है, जो हमारे अपने हाथ में है।