उत्सव कभी भी आडंबर का मोहताज नहीं है। खूब तड़क-भड़क और खोखले शोर का नाम उत्सव नहीं है। उत्सव तब भी है, जब एक कचरे वाला एक ट्रक कचरा भरकर ले जाता है और उसे एक नियत जगह खाली करता है। जीवन हर पल ही एक जश्न है। ऐसी तितलियां भी होती हैं, जो रेगिस्तान में भी पंख फैलाकर उड़ती रहती हैं। बहुत छोटी-सी जिंदगी होने के बावजूद जीवन पूरा होने से पहले वे तितलियां कैसे अपने लिए नखलिस्तान खोज पाती हैं? वैज्ञानिकों का कहना है कि वे अपने शरीर के भीतर नई कोशिकाएं बनाने और ऊर्जा देने वाली रासायनिक प्रक्रियाओं को बदल लेती हैं।
वैज्ञानिक शब्दावली को छोड़ दें तो वे तितलियां यह मानती हैं कि मुझे जरा-सा और उड़ कर जाना होगा और पास ही कहीं मेरे लिए एक फूलों की घाटी जरूर होगी। फिर फूल और गुलशन से उसकी मुलाकात होती भी है। तब वह तितली पिछला सब कुछ भूल कर जश्न और उत्सव में डूब जाती है। यहां तक कि उसको अंतिम सांस का आभास तक नहीं होता है। यही है असली समझ। लोगों को नहीं मालूम कि हमारा जीवन इतना नीरस इसलिए है कि यहां कोई आशा पैदा नहीं हो रही। हम सोचते हैं, विधि का विधान है!
हम अपने जीवन में यही सोचते हैं कि अमुक सुखी है, क्योंकि वह धनवान है। हकीकत यह है कि सबके पास खुशी और ऊर्जा का अथाह भंडार समान रूप से भरा हुआ है। पर हम इस बात से अनजान हैं। गांठ बांध लेना चाहिए कि हमारी जिंदगी में भी गुलशन को आना है। यह मन की तितली एक दिन जीवन रूपी बगीचे को हरा-भरा कर देगी। इसके बाद उस सुगंध को महसूस किया जा सकेगा।
यही है असली जानना… जीवित होने के अवसर को समझना। महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध ने सोने का थाल त्याग कर पत्तल में आहार लिया। जो विरासत मे मिला, उसे अपना नहीं माना। अपनी चेतना को विकसित किया और ऐसी साधना करते चले कि अभाव का भी भरपूर उमंग से जश्न मनाया।
अब तक तो हमारे पास वह तराजू है, जो किसी और ने दिया है। इसके एक पलड़े में हम और दूसरे पलड़े में अन्य चीजों को रखकर एक संतुलन बनाने की कोशिश हुई। अगर हम अपने अंदर स्थित सच्चाई को देखना चाहें तो भीतरी समझ का तराजू लेना ही होगा। हमेशा बाहरी जगत ही हमको सिखाने और परिपक्व बनाने का काम नहीं करता है। हमारी सारी समझ और हमारे उत्साह की सदैव ही एक अलग दुनिया है। वह है चेतना की दुनिया। रिमझिम हो तो नाचने लगना या गीत गुनगुना देना।
दौलत के ढेर की बनिस्बत हरा-भरा आंगन देखकर खुश हो जाना। इस समझ का आलम है कि वह चाहती है जीवन में इस तरह की सरलताएं बनी रहें। मगर जो लोग भौतिकता मे भरे हुए इस जिंदगी का बोझ ढोते हैं, उन्हें उदास होने से कौन रोक सकता है। किसी की मदद करना जीवन का सबसे बड़ा सुख है। अगर हम परेशान हैं, तो कोशिश करें कि अपने आसपास किसी जरूरतमंद का सहारा बनें। चाहे हमारी घरेलू सहायिका हो, माली हो या चौकीदार या फिर जरूरतमंद बच्चे।
इसके अलावा किसी समाजसेवी कार्यों से जुड़कर भी जीवन को एक नई पहचान दी जा सकती है, जिससे असीम सुख की प्राप्ति होगी। घर पर या कार्यस्थल पर किसी से हुआ मनमुटाव हमें कई दिनों तक परेशान रखता है। हम उस छोटी-सी बात को इतनी गहराई से सोचते हैं कि मन ही मन परेशान रहने लगते हैं। नतीजतन, घर में बच्चों या जीवनसाथी पर कई बार बेवजह झल्ला जाते हैं। यह धीरे-धीरे हमारे रिश्तों में कड़वाहट का कारण भी सिद्ध हो सकता है। ऐसे में अगर किसी ने कुछ कहा, तो उस बात को वहीं खत्म करके आगे बढ़ना चाहिए और मन ही मन उस शख्स को कोसने की बजाय उसे माफ कर देना चाहिए। पंछी को दाना दे दिया जाए… उपवास का आनंद लिया जाए।
यह सच है कि इस जगत में अब भी कुछ लोग बचे हुए है जो बैंक में जमा पैसे या फिर बंगले वाहन की लाइन लगाकर धनाढ्य नहीं बनना चाहते। ऐसे लोग टिकट कटा कर पुरानी जगहों की यात्राएं करते हैं और आधुनिक हुए शहर में पुराने शहर और लोगों को खोजते रहते हैं। उन लोगों में इतनी खूबसूरती होती है कि संसार ऐसे लोगों के कारण बचा हुआ है। जे कृष्णमूर्ति यही कहते हैं कि हो सकता है पूरी जिंदगी लोग तुमसे यह कहते रहे हों कि तुम कितने अधूरे हो। मैं तुमसे कह रहा हूं कि तुम एकदम पूर्ण हो। हो सकता है, लोगों ने तुम्हें यह बताने की कोशिश की हो कि तुम्हारी चीजें अवास्तविक हैं। मैं तुमसे कह रहा हूं कि तुम वास्तविक हो। यह शरीर मिट्टी का बना है और यह मिट्टी एक दिन फिर मिट्टी में मिल जाएगी।
इस बारे में किसी को सोचना भी अच्छा नहीं लगता। पर यह सच्चाई की याद दिलाता है। सांस अंदर आ रही है और बाहर जा रही है। सांस की यह बारिश अपनी इस देह पर बिना रुके लगातार हो रही है। जीवन के बगीचे में उन बीजों को बो देना चाहिए और उन्हें हृदय के फूलों के रूप में खिलते व विकसित होते हुए देखना चाहिए। एक दिन आएगा, जब सांसों की यह बारिश बंद हो जाएगी।
उस समय के आने के पहले ही अपनी समझ और स्पष्टता के बीजों को बो देना चाहिए। जब इस जीवन रूपी, देह रूपी मिट्टी पर सांस रूपी बारिश गिरना बंद हो जाती है तो यह फिर एक रेगिस्तान बन जाता है। इसे ऐसा नहीं बनने देना चाहिए। इसका बेहद सरल समाधान है एक अच्छा नजरिया और अपनी एक सुलझी हुई सोच।