हाल ही में एक चौंकाने वाली खबर आई कि जापान के एक शहर में उच्च विद्यालय के एक प्रधानाध्यापक को इसलिए नौकरी से निकाल दिया गया कि वह काफी के लिए कम पैसे का भुगतान कर ज्यादा पैसे वाला कप भरता हुआ पकड़ा गया। मौका ताड़ कर पिछले साल भर से कई दफा वह ऐसा कर चुका था। एक दिन उस दुकान के कर्मचारी ने उसे ऐसा करते देखा, जिसकी शिकायत पर यह कार्रवाई हुई। उसका न केवल शिक्षण लाइसेंस रद्द कर दिया गया, बल्कि उसे सेवानिवृत्ति के सारे परिलाभों से भी वंचित कर दिया गया।
अपनी गलती के लिए प्रिंसिपल ने छात्रों से मांगी माफी
प्रधानाध्यापक ने सभी विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों से माफी मांगी कि शिक्षक होने के नाते समाज में नेतृत्व देने और खुद मिसाल बनने की जगह उसने एक गलत उदाहरण प्रस्तुत किया। हालांकि स्थानीय प्रशासन ने उस पर इस मामले में मुकदमा करने से मना कर दिया। शायद उसे अपनी गलती की सजा मिल ही चुकी है।
ऐसे भी समाज होते हैं जहां नैतिकता के तकाजे इतने ज्यादा सुदृढ़ होते हैं। जानबूझ कर ऐसा कृत्य करना निस्संदेह बेईमानी है, पर इसे इतनी बड़ी गलती माना गया जिसकी सजा नौकरी से बर्खास्तगी हो! दरअसल, हम अपने परिवेश की वजह से इस पर सवाल उठा सकते हैं, पर जिन समाजों में नैतिकता सबसे बड़ा मानवीय मूल्य हो, वहां अनैतिक कार्यों के लिए ऐसी ही नजीर सामने रखी जाती है। गाहे-बगाहे सोशल मीडिया पर कुछ देशों की स्कूलों में सिखाए जा रहे स्वच्छता, सार्वजनिक जीवन में अपेक्षित व्यवहार और नैतिकता के वीडियो देख कर यही लगता है कि जो समाज इन मूल्यों को पोषण कर उनकी रक्षा करते हैं, उनके लिए यह वाकई बड़ी घटना होगी कि उनका शिक्षक जानबूझ कर किसी अनैतिक कृत्य में शामिल हो।
मानवीय मूल्यों से सभ्यता और संस्कृति बना करती है
इन्हीं मानवीय मूल्यों से किसी स्थान विशेष की सभ्यता और संस्कृति निर्मित होती है। इसलिए वे अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए बहुत छोटी उम्र से ही ऐसे पाठ पढ़ाते हैं कि ये मूल्य उनकी जीवन शैली का हिस्सा बन जाते हैं। जहां ऐसे मूल्यों को महज कागजी और आदर्शवादी मान लिया जाता है, वहां उक्त घटना के परिणाम से अचंभित होना कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए।
जिसे हम संस्कृति कहते हैं वह दरअसल मूल्य-आधारित जीवन शैली ही होती है। सभ्यताओं के विकास में जो समाज अपनी संस्कृति और उसमें निहित मानवीय सरोकारों को बनाए और बचाए रखता है, वही सर्वांगीण विकास का लक्ष्य प्राप्त कर पाता है। जापान न केवल औद्योगिक रूप से उन्नत देश है, बल्कि मानवीय मूल्यों के संरक्षण, परंपरा और आधुनिकता के सहज मेल और संवेदनशील समाज के रूप में अपनी अलग पहचान रखता है। मानव-मूल्यों के संरक्षण और विकास के लिहाज से दुनिया के बेहतरीन देशों में शामिल जापान का सांस्कृतिक विरासत और आधुनिकता का मेल भी अनुकरणीय है। ‘उगते सूरज’ की लालिमा से वहां के नागरिकों का जीवन यों ही प्रकाशमान नहीं है। वे इसके लिए बहुत प्रयास करते हैं।
देश में भ्रष्टाचार समाज के हर स्तर पर लूट रहा है
यों हमारी और जापान की सामाजिक परिस्थितियां एक जैसी नहीं है, लेकिन हम नैतिकता की कसौटी पर खुद को देखें तो अभी हमें इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है। हमने सहज मानवीय मूल्यों और सार्वजनिक जीवन में नैतिकता को सिरे से खारिज भले ही न किया हो, लेकिन उन्हें समग्रता में अंगीकार भी नहीं किया है। भ्रष्टाचार रूपी दानव हमारे समाज में हर स्तर पर मुंह बाए खड़ा दिखता है। अक्सर ऐसे वाक्यांश हमें परेशान करते हैं कि ‘हमाम में सब नंगे हैं’। कई बार इसे स्वीकार्यता के लिए भी कहा जाता है। नैतिकता और मानवीय मूल्य दरअसल हमारी पाठ्यपुस्तकों तक ही सिमट कर रह गए लगते हैं।
सार्वजनिक जीवन में, खासकर राजनीति में, बड़े से बड़े गलत आचरण को हम आखिर स्वीकार कर भ्रष्टाचारियों का मनोबल बढ़ाते हैं। जिन्हें अपने आचरण के कारण समाज से डरना चाहिए, कई बार वे अपने धन-बल और दुराचरणों से समाज को ही डराते हैं। अपने आसपास घट रही घटनाओं को देखें तो पग-पग पर अनैतिक और गलत आचरण की गहरे तक फैली बेलें हमें दिख जाएंगी। दुर्भाग्यवश, जीवन में सफल होने के लिए साम-दाम-दंड-भेद के रूप में हमने एक ऐसी वृत्ति स्वीकार कर ली है, जिसमें अनैतिक कुछ भी नहीं माना जाता!
अमेरिका में एक राष्ट्रपति को शपथ लेकर झूठ बोलने के कारण महाभियोग तक की नौबत आ गई थी। सार्वजनिक मंचों से लफ्फाजी और झूठबयानी हमारे यहां अक्सर कौशल समझ लिया जाता है। ऐसे में और क्या अपेक्षा की जाए! विश्व की प्राचीनतम और समृद्ध सभ्यता का दंभ भरते हुए हम यहां तक आ पहुंचे हैं कि गलत आचरण की किसी घटना से हम विचलित नहीं होते। हमारे स्वीकार के कारण ही समाज में जलकुंभी की तरह फैली बीमारी बन गई है और हमें फर्क नहीं पड़ता। किसी-न-किसी बहाने से हम आखिर इसे सामाजिक स्वीकृति दे रहे हैं। मगर धर्म-अधर्म के फेर में हम कहीं संवेदनहीनता की तरफ तो नहीं बढ़ रहे? सबसे बड़ा धर्म मानवीयता है जो नैतिकता और शुचिता की बुनियाद पर ही टिका है। उसे बचा कर ही सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्ण रखा जा सकता है। यह हमें समझने की जरूरत है।