शिखर चंद जैन
आज के अर्थयुग में किसी को समर्थ रहना है तो जरूरी है कि वह अपने अर्थ के साथ अनर्थ न होने दे और न ही उसे व्यर्थ जाने दे। अगर हम अपने अर्थ यानी धन को सही अर्थों में नहीं समझ पाएंगे और सही ढंग से इसका उपयोग यानी उपार्जन से लेकर व्यय, संचय, संरक्षण और संवर्धन नहीं कर पाएंगे तो हमारा अर्थ नाहक ही व्यर्थ हो जाएगा और इसका सीधा असर हमारी जिंदगी पर पड़ेगा और जीने की स्थितियां कठिन हो जाएंगी।
धन की प्रकृति चंचल होती है, यह एक जगह ज्यादा देर तक टिकता नहीं
सही है कि हम अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने और एक सुकून और आरामदायक जिंदगी जीने के लिए पैसे कमाते हैं। पारंपरिक धारणाओं के तहत कहा जाता है कि धन की प्रकृति चंचल होती है। यह एक जगह ज्यादा देर टिकता नहीं। कहीं से धन आने के साथ ही कहीं और जाने के लिए व्याकुल हो जाता है। इसलिए इसे प्रवाहमय और सुव्यस्थित रखना जरूरी है। इसे सही तरीके से खर्च करना, सहेजना और इसकी निरंतर वृद्धि के उपाय करना आवश्यक है। अगर इसे बिना वजह बिना उपयोग इकट्ठा रखा जाए और जड़ स्थिति में रखने की कोशिश की जाए तो यह नष्ट होने की भी प्रवृत्ति रखता है।
बहुत सारे पढ़े-लिखे लोग रुपए-पैसे के मामले में लगभग अनाड़ी होते हैं
यों भी व्यावहारिक जीवन में देखा गया है कि बहुत सारे पढ़े-लिखे लोग रुपए-पैसे के मामले में लगभग अनाड़ी की तरह होते हैं, जिन्हें धन का सही समय और सही तरीके से इस्तेमाल के बारे में बेहतर समझ नहीं होती। जबकि बहुत सारे अनपढ़ माने जाने वाले लोग वित्तीय निर्णय के मामले में कई बार पढ़े-लिखे लोगों से ज्यादा समझदार और बुद्धिमान पाए जाते हैं।
कई लोग पैसों को फिजूलखर्ची से बचाकर उनकी हिफाजत करना और उन्हें सुरक्षित जगह इकट्ठा करके रखना ही बुद्धिमानी भरा कदम मानते हैं। जबकि यह बिल्कुल नासमझी और अपने पैसों को नुकसान पहुंचाने वाला निर्णय होता है। दरअसल, ऐसा करने वाले लोग अपने संचित धन की क्रयशक्ति को छीजने के लिए छोड़ देते हैं। जबकि बुद्धिमान लोग अपनी बचत और कमाई के पैसों को वित्त बाजार रूपी खेत में बीज की तरह इस्तेमाल करके उससे रुपयों के पेड़ उगाते हैं। इन्हें पैसों की खेती करनी आती है और सही जगह निवेश करके रुपयों का पेड़ उगाना आता है। संचित धन कभी बढ़ता नहीं, बल्कि छीजता है। जबकि निवेशित धन निरंतर बढ़ता है और अपने स्वामी को पूरा लाभ पहुंचाता है।
दार्शनिक और कूटनीतिज्ञ कौटिल्य का विचार कहीं पढ़ा था कि अनावश्यक संचित अर्थ व्यर्थ है। यह संपदा नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है। इसे जरूरी चीजों में खर्च और सही मदों में निवेश करना चाहिए। अर्थ को फलने-फूलने देने, यानी बढ़ाने के लिए समुचित समय देना जरूरी है। समृद्धि व्यक्ति के भीतर धैर्य और निरंतर उचित जगह पर निवेश से ही संभव है। उदाहरण के लिए ‘म्यूचुअल फंड’ में हम ‘एसआइपी’ करते हैं तो एक निश्चित अवधि के बाद ही पैसे में बढ़ोतरी का पता चलता है। किसी कंपनी के शेयर खरीदें या व्यापार में पैसा लगाएं तो एक समय बाद ही हमें उसकी सही स्थिति का पता चलेगा। वित्त विशेषज्ञों का भी यह मानना है कि शेयर बाजार एक ऐसा उपकरण है, जहां से पैसा एक धैर्यहीन व्यक्ति से एक धैर्यवान व्यक्ति के पास चला जाता है। जाहिर है, पैसे के मामले में धीरज सबसे बड़ी बात है।
सबसे जरूरी चीज है पैसा कमाने और उसे सुरक्षित रखने के साथ-साथ उसे मुद्रास्फीति के प्रभाव से टक्कर देने लायक बनाने, यानी समय के साथ-साथ उसकी क्रय क्षमता बढ़ाने के लिए हमें न सिर्फ अच्छी वित्तीय आदतें अपनाने की जरूरत पड़ती है, बल्कि अपने अनुभवी शुभचिंतकों और पेशेवर वित्त विशेषज्ञों की सलाह भी लेनी पड़ सकती है। पैसे को रखने, खर्च करने या निवेश करने में किसी प्रकार का डर मन में न हो, इसके लिए जरूरी है कि पैसा हमेशा कानूनी और वांछित तरीके से हासिल किया जाए। अगर कोई किसी व्यक्ति से आय के स्रोत पूछे तो उसके पास पुख्ता प्रमाण होना चाहिए और सब कुछ उसके खाता-बही में दर्ज होने के साथ समुचित प्रमाण पत्र, बिल और बैंक की पासबुक आदि दस्तावेज में रहनी चाहिए।
हालांकि इसके साथ ही यह भी मानना होगा कि भले ही पैसा समृद्धि का प्रतीक है और अर्थ युग की सबसे बड़ी जरूरत है, लेकिन कभी भी समर्थ होने के बावजूद अर्थ का अहंकार नहीं करना चाहिए। समृद्धि के बावजूद लोगों के साथ अपना व्यवहार विनम्र रखना चाहिए। यह याद रखने की जरूरत है कि हमारे आसपास के लोग ही हमारी साख, बाजार भाव और आय का जरिया होते हैं। चाहे वे ग्राहक के रूप में हों या फिर सलाहकार के रूप में।
यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पैसा हम कभी भी अकेले नहीं कमाते। बहुत सारे लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कमाई में हमारी मदद करते हैं। कुछ हमारी प्रशंसा करके हमारा विज्ञापन करते हैं तो कुछ लोग किसी प्रकार की अड़चन न डालकर ही हमारी बड़ी मदद करते हैं। इसी प्रकार पैसे को उड़ाने की प्रवृत्ति नहीं पालनी चाहिए और न ही इसे लोगों पर रौब जमाने का जरिया बनाना चाहिए। अन्यथा इसका खमियाजा तुरंत ही सामने आने लगता है।