सरस्वती रमेश
इच्छाएं अनंत हैं। इच्छाओं की यह बहुलता जीवन को जटिलताओं के चक्रव्यूह में फंसाती है और आदमी लगातार फंसता जाता है। परिणाम क्या होता है? इच्छाएं पूरी न होने पर तनाव और अवसाद से आदमी को घिर जाता है। जबकि सादगी के साथ जी कर वह इस स्थिति से बच सकता है। अपनी इच्छाओं पर लगाम लगाकर रखना, अपनी जरूरतों के पांव आमदनी की चादर के भीतर रखना सादगी से जीने के अचूक नुस्खे हैं।
ऐसा करने पर वह सीमित संसाधनों में भी सहज, सरल, आडंबरहीन जीवन जी सकता है। प्रसन्नचित रहकर असीमित आनंद उठा सकता है। जब हम सरल सादा जीवन जीते हैं तो हमारे सरोकार इस ब्रह्मांड की छोटी-छोटी चीजों से अपने आप ही जुड़ जाते हैं। हम इस प्रकृति से अलग न होकर उसके साथ एकमेव हो जाते हैं, क्योंकि सादगी संसाधनों के अनुचित दोहन की वकालत नहीं करती। इसलिए सादा होना खूबसूरत होना है।
प्रकृति ने मनुष्य को सहज, सरल बनाकर धरती पर भेजा है
असंख्य होने के बावजूद एक फूल की पंखुड़ियों में कहीं कोई जटिलता नहीं मिलेगी। रंगों में कोई दुराव नहीं होगा। खुशबू में कोई मिलावट नहीं होगी। फिर भी वह कितना मनमोहक और खूबसूरत होता है। मगर मनुष्य की प्रवृत्ति आमतौर पर थोड़ी उलट-सी होती है। प्रकृति ने उसे एकदम सहज, सरल बना कर इस धरती पर भेजा। मगर अपनी बुद्धि का दुरुपयोग कर वह दुनिया भर की कुटिलता, अहंकार, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, निर्दयता जैसे अवगुणों को अपनाकर अपना जीवन जटिल बना लेता है। यही जटिलता उसके आचरण और व्यवहार में दिखती है।
उसके कार्यों में परिलक्षित होती है और सबसे बड़ी बात उसके आसपास का माहौल भी उसकी इस जटिलता से प्रभावित होता है। तो आखिर वे कौन-सी वजहें हैं जो सादगी भरे हमारे जीवन में अवरोधक हैं। एक सामाजिक प्राणी होने के नाते हम एक दूसरे को देख कर अच्छी-बुरी चीजें सीखते हैं। हमारे पड़ोसी के पास कोई कार है तो हमारे पास भी वही या उससे महंगी गाड़ी होनी चाहिए। फिर चाहे हमें उसकी जरूरत हो या नहीं। हम उसके रखरखाव के लिए सक्षम हो या नहीं।
दिखावे की भावना सादगी से भटकाने वाला सबसे बड़ा कारक
दिखावे की भावना सादगी से भटकाने वाला सबसे बड़ा कारक है। दरअसल, दिखावा करने से अहंकार आ जाता है। इसलिए अहंकार से बचना चाहिए और वस्तुओं का इस्तेमाल भी सम्मान से करना सीखना चाहिए। असल में, जरूरत से ज्यादा वस्तुओं या विचारों का संग्रह खतरनाक प्रवृत्ति है। वस्तुओं की अधिकता हमारी दिनचर्या को अस्त-व्यस्त करके रख देती है। हम हर वक्त उसके रखरखाव, सुरक्षा और चयन को लेकर चिंतित और प्रयत्नशील हो जाते हैं। जबकि विचारों की अधिकता हमारे मस्तिष्क के भीतर उथल-पुथल मचा देती है। इस हलचल में उपयोगी विचार भी अपने मार्ग से भटक जाते हैं। इस तरह सुविचारों के नष्ट होने से हम अच्छे कार्यों, संस्कारों और व्यवहार के प्रति उदासीन हो जाते हैं। इसलिए हमें अपनी जरूरतों और इच्छाओं के बीच संतुलन बैठाकर संतुलित मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए।
विकल्पों की भरमार ने जीवन को कठिन बना दिया
एक समय था जब मनुष्य के पास विकल्पों की भारी कमी थी। जैसे आने-जाने के लिए घोड़ा गाड़ी या बैलगाड़ी। कोई तीसरा साधन उसे सहजता से उपलब्ध नहीं था। आज आवागमन के लिए सैकड़ों साधन पल भर में हमारे सामने उपलब्ध हैं। लेकिन विकल्पों की भरमार ने जीवन को जितना सुविधासंपन्न बनाया उतना ही जटिल भी। सड़कें, रेलवे, हवाई मार्ग बढ़ते-बढ़ते इतना बढ़ गए हैं कि धरती की खूबसूरती को ही निगलने लगे। गंदगी, प्रदूषण, शोर, बीमारियां बढ़ने के साथ रोज हजारों की संख्या में दुर्घटनाएं होने लगीं। दुनिया भर में हर वर्ष लाखों लोग बेमौत मरने लगे। विकल्पों का अनियंत्रित होना ही जी का जंजाल बनता जा रहा।
कुछ लोग कहते हैं कि महंगे कपड़े, महंगी वस्तुएं सम्मान की प्रतीक हैं। वे समाज में सम्मान पाने के लिए इसे खरीदते हैं। इसके लिए वे ज्यादा मेहनत व कमाई करते हैं। कई बार तो अधिक पैसों के लिए वे जीवन की कई अच्छी बातों से समझौता कर उसकी सहजता से भी हाथ धो बैठते हैं। पर सोचने वाली बात यह है कि क्या वाकई में हमारा पैसा हमारे सम्मान का कारण है। आज के वैचारिक शून्यता वाले परिवेश में यह बात काफी हद तक सच मानी जा सकती है। मगर ऐसा है नहीं।
असली सम्मान हमारे कार्यों और विचारों से मिलता है। पैसों से नहीं। पैसों से कमाया गया सम्मान क्षणिक होता है। जबकि विचारों व कार्यों से कमाया गया सम्मान अक्षुण्ण होता है। दुनिया भर में ऐसे महान लोग हुए हैं, जिनके पास कोई पद, पैसा, महंगे कपड़े और संपत्ति नहीं थी मगर बड़े-बड़े पदों पर आसीन लोग उनका सम्मान करते हैं। असल में दुनिया ऐसे लोगों के कार्यों का उनके विचारों का सम्मान करती है।
सच मानें तो सादगी जीवन का सबसे खूबसूरत आभूषण है। यह आभूषण जिस किसी ने भी अपने जीवन में धारण किया, उसने जीवन में वास्तविक सुख का अर्थ भी जाना। असल में जीवन की सहजता, सरलता का रहस्य सादगी में ही छिपा है।
