हम सब अपने खाने-पीने को लेकर इतने सजग होते हैं कि भोजन में जरा भी गड़बड़ होने पर उसे छोड़ देना बेहतर समझते हैं। मगर इस बात का पता शायद ही हमें कभी चल पाता है कि बाजार में जितने भी खाद्य पदार्थ मिल रहे हैं, उनमें कितने मिलावटी हैं और वे हमारे शरीर को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। मगर इस बीच आम लोगों के बीच मिलावटी खाद्य पदार्थों को लेकर थोड़ी जागरूकता बढ़ी है।

जब से कुछ लोगों ने इस पर गौर करना शुरू किया है, तब से कई हकीकतें उजागर होने लगी हैं। मिलावटखोरों ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि सही माल बेचने वाले दुकानदारों को भी लोग अब शक की नजर से देखने लगे हैं। हालांकि मिलावटखोर केवल खाद्य पदार्थों में ही नहीं, अन्य सामानों की ओर भी अपने पैर फैला चुके हैं। हैरानी की बात यह है कि जब कभी कोई मामला सामने आता है, उसके बावजूद सरकार इस काम में लगे लोगों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाती। जबकि जरूरत सख्त कार्रवाई करने की है।

ऐसे कारोबारियों से केवल जुर्माना लेकर छोड़ देने से अब स्थिति संभलने वाली नहीं है। दरअसल, कड़ी कार्रवाई की जरूरत इसलिए भी है कि मिलावटी खाद्य पदार्थ को खाने की वजह से किसी व्यक्ति की सेहत खराब हो जा सकती है, बल्कि स्थिति बिगड़ने से मौत भी हो सकती है। इसलिए अगर मिलावटखोरों के खिलाफ हत्या के प्रयास से संबंधित कानूनी धारा का इस्तेमाल करने की मांग की जाती है तो इसमें कोई हैरानी बात नहीं है।

यों हमारे आसपास हर रोज दुकानदार से लेकर किसी खाद्य पदार्थ का कारोबार करने वाले लोगों को मिलावटी सामान बेचने में जरा भी हिचक नहीं होती कि इसका इस्तेमाल करने वाले लोगों की सेहत पर इसका क्या असर पड़ेगा! मसलन, रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले दूध की गुणवत्ता को लेकर अक्सर खबरें आती रहती हैं कि इसके सेवन से घातक रोग हो सकते हैं।

अब से तीन दशक पहले सुनने को मिलता था कि दूध सिंथेटिक हो सकता है। मगर काफी समय से यह यूरिया, अन्य रसायनों आदि के प्रस्ताव के बाद और जाने क्या क्या मिलाकर तैयार किया जा रहा है। पनीर, केमिकल और पानी से और मावा मिल्क पाउडर से तैयार किया जा रहा है। हल्दी, लाल मिर्च, धनिया हींग, जीरा, काली मिर्च, सरसों का तेल, रिफाइंड तेल इसके अलावा अन्य खाद्य पदार्थों में मिलावट की खबरें आम हो गई हैं, मगर इस पर नजर रखने वाले महकमे शायद तब तक नींद में रहते हैं, जब तक कोई बड़ी घटना सामने नहीं आ जाते है या फिर उसके बारे में लोगों को पता नहीं चल जाता।

मुश्किल यह है कि अगर कभी जांच-पड़ताल होती है और जिन दुकानदारों के खाद्य पदार्थों के नमूने फेल होते हैं, उनके मामले निचले स्तर के अधिकारियों या अदालतों में जाते हैं, जहां मामूली प्रक्रिया अपनाने के बाद उन्हें और बख्श दिया जाता है। जबकि केवल नकली मावे को ही देखें तो देश के कुछ इलाकों में यह कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है।

अव्वल तो इसे लेकर प्रशासन गंभीर नहीं होता और जब कभी संबंधित महकमों के लोग मिलावट की गतिविधियों में लगे लोगों को पकड़ते हैं, तब भी कोई बड़ी और याद रखने वाली कार्रवाई नहीं होती। फिर कुछ दिनों बाद ऐसा धंधा करने वाले कारोबारी बेफिक्र अपना कारोबार चलाते रहते हैं। किसी पर्व-त्योहार के मौके पर बाजार में खुले तौर पर मिलावटी सामान बिकते रहते हैं, मगर कोई ऐसा तंत्र नहीं दिखता जो इन पर लगाम लगा सके।

कभी शिकायत होने पर या औचक निरीक्षण में ऐसे लोग पकड़े भी जाते हैं तो कार्रवाई किसी ठोस अंजाम तक नहीं पहुंचता, ताकि अन्य लोग मिलावटी खाद्य पदार्थ न बेचें। एक ओर खाद्य पदार्थों में मिलावट कई बार सेहत पर गहरा जोखिम पैदा करता है, दूसरी ओर खाद से लेकर आम उपयोग के ज्यादातर सामानों के नकली संस्करण बाजार में मौजूद होते हैं। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि नवजात शिशु दूध भी शुद्घ पी रहा है, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

नए-नए रोगों के चलते डाक्टरों के यहां लगी रोगियों की लंबी कतारें काफी हद तक मिलावटी खाद्य पदार्थों का ही नतीजा हैं। सबसे विकट स्थिति उपभोक्ता के सामने होती है, जो ज्यादातर मामलों में असली सामान की पहचान करने की सलाहियत नहीं रखते। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें असली खाद्य पदार्थों की पहचान होती है और वे अपनी नजर की वजह से शुद्ध खाद्य पदार्थ की खरीदारी कर पाते हैं। ऐसे में वह आम उपभोक्ता क्या करे, कहां से सामान ले, जहां उसे यह भरोसा हो कि उसे सही और उचित दाम पर सामान मिलेगा।

इसमें कोई दोराय नहीं कि व्यापारी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। उनको अपना कारोबार करते समय कोई समस्या आड़े न आए, इसे लेकर संबंधित सरकारी महकमे और उनके अधिकारी कारोबारियों के साथ बैठकें करते हैं, समस्याओं पर विचार करते हैं, समाधान निकालने की कोशिश करते हैं।

मगर कारोबारियों की भी जिम्मेदारी है कि वे उपभोक्ताओं के जीवन का खयाल रखने के लिए शुद्ध सामानों की बिक्री करें। मिलावटखोरों के खिलाफ अगर खुद कारोबारियों की ओर से ही आवाज उठेगी, तब लोगों का भरोसा भी बाजार पर बढ़ेगा। अगर कारोबार-जगत से इस मसले पर सहयोग मिलता है और वे मिलावट के विरुद्ध ठोस जमीन तैयार करा पाते हैं, तो यह एक अच्छी बात होगी।

अन्यथा खासतौर पर खाने-पीने के सामान में मिलावट करने वाले या ऐसा सामान बेचने वालों के विरुद्ध हत्या के प्रयास जैसी सख्त धाराओं के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि मिलावटी सामान, वह खाद्य पदार्थ हो या फिर कोई अन्य वस्तु, न केवल आर्थिक रूप से घाटे का सौदा है, बल्कि सेहत पर गंभीर जोखिम पैदा करते हैं।