जीवन के आनंद के उत्सव की अभिव्यक्ति है – नृत्य। जब भी कोई खुश होता है, तब उसे व्यक्त करने के लिए नृत्य करता है। हवा का बहना, लहर का उठना, सांसों का आना-जाना, पक्षियों का उड़ना, फूलों का खिलना – सभी में लय, ताल और गति होते हैं, जिसका पता हमें तब चलता है जब बारीक नजर इन पर डालते हैं। प्रकृति का यह नर्तन हर क्षण और निरंतर जारी रहता है। ये मानना है ओडिशी नृत्यांगना रंजना गौहर का।
ओडिशी नृत्यांगना रंजना गौहर ने गुरु मायाधर राउत के सानिध्य में नृत्य की साधना की। उन्होंने अपने जीवन के चार दशक नृत्य को समर्पित किए हैं। फिलहाल, वह अपनी नृत्य प्रस्तुति के साथ-साथ युवा कलाकारों को ओडिशी नृत्य सिखा रही हैं। हाल ही में स्पीक मैके की ओर से आयोजित कार्यशाला में वे शामिल हुर्इं। इस कार्यशाला में माडर्न स्कूल, बाराखंबा की छात्राओं को उन्होंने ओडिशी के तकनीकी पक्ष, मुद्राओं, भंगिमाओं आदि के बारे में बताया और सिखाया।विश्व नृत्य दिवस के मौके पर आयोजित कार्यशाला में जो प्रशिक्षण दिया गया, उसके आधार पर रंजना गौहर के निर्देशन में माडर्न स्कूल की छात्राओं ने ओडिशी नृत्य पेश किया। इस मौके पर रंजना गौहर ने जयदेव रचित अष्टपदी पर अभिनय पेश किया। उन्होंने अष्टपदी ‘धीर समीरे यमुना तीरे’ पर नायक कृष्ण के भावों का मनोहारी रूप पेश किया। यमुना के तट पर राधा का इंतजार कर रहे कृष्ण की आकुलता की अभिव्यक्ति बड़ी खूबसूरत थी। नृत्य के क्रम में हस्तकों, मुखाभिनय व भंगिमाओं का सुंदर प्रयोग दिखा।
इसके अलावा, उनकी चार शिष्याओं ने ओड़िया गीत पर अभिनय पेश किया। इसमें शामिल शिष्याएं थीं – रीति टंडन, प्रतीशा पुराणा, अनिका और गायत्री भार्गव। कवि बनमाली दास रचित गीत के बोल थे – ‘देखो गो, राधा माधव चाली’। मॉनसून के दिनों में जब गरमी ज्यादा होती है। तब भगवान जगन्नाथ गरमी से व्याकुल हो जाते हैं। उस दौरान उन्हें मंदिर के पास के सरोवर में नौका विहार के लिए ले जाया जाता है। इन्हीं भावों को नृत्य में शिष्याओं ने दिखाया। नृत्य के क्रम में अलस कन्याओं की दर्पणी, शालभंजिका, मानिनी, नूपुरपादिका भंगिमाओं का निरूपण सुंदर था। कायर्शाला में भाग लेने वाली छात्राओं ने बसंत पल्लवी पेश किया। राग बसंत और एक ताली में निबद्ध पल्लवी में ओडिशी नृत्य के पाद व हस्त संचालन से प्रस्तुति मनोहारी बन पड़ी।
विभिन्न ताल आवर्तनों पर अंगों की लयात्मक गतियां संतुलित थीं। छात्राओं का आपसी तालमेल स्पष्ट और सरस था। नृत्य प्रस्तुति की शुरुआत मंगलाचरण से हुई। इसमें गणपति की वंदना की गई थी। चौक व त्रिभंगी भंगिमाओं के जरिए गणपति के उमा पुत्रम, महाकाय, चिंतामणि, विघ्नहर्ता रूपों का विवेचन किया गया। इसके लिए रचना ‘नमामि विघ्नराज’ का चयन किया गया था। इस प्रस्तुति का समापन भूमि व त्रिखंडी प्रणाम से किया गया। समारोह में उपस्थित डॉ विजय दत्ता ने कहा कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य में भारतीय संस्कृति की खुशबू बसती है। जो छात्र-छात्राएं शास्त्रीय कला सीखते हैं, उनसे उसके व्यक्तित्व का विकास होता ही है। साथ ही, उनके सोचने के तरीके को भी विस्तार मिलता है।