तो इन दिनों देश के अनेकों हिस्सों में बारिश के कारण अफरातफरी का माहौल है लेकिन प्रकृति के संग हमारे जीवन और संस्कृति का बहुत गहरा संबंध रहा है और हमेशा रहेगा। भारत के सभी राज्यों में मौसम के अनुरूप संगीत, नृत्य और उत्सव मनाने की परंपरा रही है। बरसात के मौसम में भी अलग राग और नृत्य का चलन है। उसी की कड़ी है, बारिश के मौसम में मल्हार राग गाने और नृत्य करने की। सावन-भादो के महीने का साथ तो अब पीछे छूट गया सा लगता है। लेकिन, कहीं न कहीं लोगों के मन में मल्हार कायम है, तभी तो पिछले कई सालों से इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मानसून नृत्य समारोह का आयोजन किया जा रहा है। इस वर्ष भी इस समारोह का आयोजन किया गया जिसमें कई वरिष्ठ नृत्यांगनाओं ने शिरकत की।
समारोह का आगाज जयपुर घराने की कथक नृत्यांगना और गुरू प्रेरणा श्रीमाली के नृत्य से हुआ। जहां उन्होंने परंपरागत कथक की नजाकत भरी प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोहा। श्रीमाली की प्रस्तुति में उनकी वर्षों की साधना और मेहनत साफ दिखी। उन्होंने नायक कान्हा, नायिका राधा और गोपियों के कई अंदाज को नृत्य में पिरोया। रचना ‘शशि मत्त कुंजन में समागत’ में अभिसारिका नायिका के भिन्न -भिन्न भावों के माध्यम से बारिश के प्रभाव को अंकित किया। एक अन्य रचना में उन्होंने ‘हो आली, आज बड़े तड़के’ में माखन बेचने वाली गोपी और कृष्ण के भावों को एक अलग अंदाज में पेश किया। ‘चंद्र चपला चली मन माधो’ कवित्त में भावों का चित्रण मनोरम था।
वहीं एक अन्य रचना ‘प्रेम के फंदों में प्रीत के पैठन में’, ‘कृष्ण मोहित नाचत राधिका’, ‘रैन समय रस खेल कियो’ और ‘नटवर नाचत विविध भांति’ में कृष्ण और राधा के अलग-अलग रंग को दर्शाया। उन्होंने सधा हुआ पैर का काम, हस्तकों के प्रयोग, अर्ध पलटे और चक्करों का प्रयोग बेहद ही मोहक अंदाज में किया। नृत्य में उन्होंने मयूर, झूले, घंूघट, मटके, सादी गतों का प्रयोग सुंदर किया। स्वरचित कवित्त-‘उमड़ घुमड़ गरजत दामिनी’ और पंडित कुंदनलाल गंगानी की रचना ‘दधि बेचन चली’ पर भी अभिनय प्रस्तुत किया। बसंत से मानसून तक के मौसम का नृत्य के माध्यम से सफर बहुत ही मनोरम था।
भरतनाट्यम नृत्यांगना रमा वैद्यनाथन ने भरतनाट्यम नृत्य शैल में जना बाई के अभंग से नृत्य आरंभ किया। अभंग ‘पांडुरंग विट्ठोवा भजिए’ पर भक्त के भावों को माता, दासी, मृग और समर्पित रूप में दर्शाया। यह राग मालिका और मिश्र चापू ताल में निबद्ध था। उनकी दूसरी पेशकश अन्नमाचार्य की पदम थी। यह राग चक्रवाक और मिश्र चापू ताल में निबद्ध था। इसमें आत्मदर्प से मोहित नायिका के भावों को रमा ने चित्रित किया। यह रचना भगवान वेंकटेश्वर और उनकी पत्नी अलमेलुवंमाला की कथा पर आधारित थी। यह नृत्य प्रस्तुति मनोरम थी।
अगली संध्या को वरिष्ठ ओडिशी नृत्यांगना माधवी मुद्गल ने अपने नृत्य से रोशन किया। उन्होंने अभिनय दर्पण के अंश पर आधारित रंग प्रस्तुति से नृत्य का आरंभ किया। जयदेव की अष्टपदी ‘माधवे मा कुरू’ पर अभिनय पेश किया। सूरदास के पद ‘वेणू गोपाल बैरन भई’ और अमर शतकम् के मुक्तक पर भावों को दर्शाया। इसमें सूरदास की रचना को पंडित मधुप मुद्गल ने स्वर दिया था, वहीं मुक्तक को पंडित मुकुल शिवपुत्र ने गाया था।

