ओडिशी नृत्य में लास्य, गरिमा और अभिनय का सामंजस्य देखने को मिलता है। इस नृत्य विधा के अग्रणीय गुरुओं में गुरु मायाधर राउत का योगदान अविस्मणीय है। उनकी शिष्य परंपरा में कई प्रतिष्ठित कलाकार कला जगत में स्थापित नाम हैं। उन्हीं की परंपरा का प्रतिनिधित्त्व करतीं हैं, ओडिशी नृत्यांगना मधुमीता राउत। मधुमीता राउत एक अरसे से राजधानी दिल्ली में ओडिशी नृत्य सिखा रहीं हैं। पिछले दिनों इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित दीक्षा समारोह में उनकी शिष्याओं ने ओडिशी नृत्य पेश किया।

समारोह का आरंभ मंगलाचरण से हुआ। इसमें गुरुमंत्र और गणेश वंदना को शामिल किया गया था। गणेश स्तुति, पुष्पांजलि और भूमि प्रणाम में पिरोई गई थी। इस पेशकश में गणेश के विघ्नहर्ता, उमापुत्र, एकदंती, चिंतामणि रूपों को दर्शाया गया। इसमें त्रिखंडी प्रणाम के जरिए गणेश, भूमि व दर्शकों को प्रणाम किया गया। परंपरा का यह समायोजन सुंदर था। दूसरी पेशकश बटु नृत्य थी। बटुक भैरव को निवेदित पेशकश में विभिन्न भंगिमाओं का चित्रण था। इन भंगिमाओं में लिंगराज, जगन्नाथ व कोणार्क मंदिरों की दिवारों पर उत्कीर्ण मुद्राओं को दर्शाया गया। अगली प्रस्तुति पल्लवी थी। यह राग बसंत और एक ताली में निबद्ध थी। ‘श्रीखंडबद्ध चूड़ा पुष्पंमीतचितं नवांकुर’ के बोलों पर लयात्मक अंग, पाद व हस्त संचालन शिष्याओं ने पेश किया। विभिन्न ताल आवर्तनों पर पैरों की विभिन्न गतियों को नृत्य में पेश किया गया। इन नृत्य रचनाओं की परिकल्पना गुरु मायाधर राउत ने की थी।

अगले अंश में ओडिशी नृत्य गुरु मधुमीता राउत की नृत्य परिकल्पना को शिष्याओं ने पेश किया। आदि शंकराचार्य की रचना ‘ए गिरि नंदिनी शैलसुते’ और कवि रामकृष्ण की रचना को आधार बनाकर, देवी दुर्गा के शक्ति रूप का वर्णन पेश किया गया। इसमें देवी के रौद्र रूप का विवेचन किया गया। नृत्य में महिषासुर और देवी के द्वंद्व और देवी के अष्टभुजा रूप का चित्रण आकर्षक था। अगली प्रस्तुति राग बैरागी पल्लवी थी। इसमें लास्य अंश का समावेश था। विभिन्न करणों के जरिए अलस कन्याओं के दर्पणी, अभिमत्त, अकुंचन, निकुंचन भंगिमाओं का निरूपण नृत्य में किया गया। शिष्याओं का आपसी तालमेल बेहतर था। इस प्रस्तुति की संगीत रचना हरिनारायण दास ने की थी।

दक्षिण के संत दयानंद सरस्वती की रचना भो शंभो स्वयंभो को नृत्य में पिरोया गया। इसकी नृत्य रचना ओडिशी नृत्यांगना मधुमीता राउत ने की है। दरअसल, इस रचना पर सालों पहले भरतनाट्यम नृत्य गुरु सरोजा वैद्यनाथन ने की थी। इसे नृत्यांगना रमा वैद्यनाथन ने बहुत ही तन्मयता के साथ पेश किया था। यह काफी लोकप्रिय हुआ। लेकिन, इसे ओडिशी नृत्य शैली में पिरोना और वह भी सामूहिक प्रस्तुति के लिए यह चुनौतिपूर्ण था। पर यह नृत्य परिकल्पना जितनी मनोरम थी, उतनी मोहक अंदाज में शिष्याओं ने पेश किया। इसके लिए उनकी मेहनत और लगन दोनों सराहनीय थीं। इस नृत्य में छंदों का प्रयोग भी लासानी था। अगली पेशकश उड़िया गीत ‘नाचंति कृष्ण मधुरे रास’ थी। इसकी रचना पंद्रहवीं शताब्दी में राजा बीरबल राय ने की थी। चैदह, सोलह और चार मात्रा की तालों और राग आरभि में इसे निबद्ध किया गया था। इसमें राधा और कृष्ण के रास का मनोरम विवेचन था।