बीरवाला में नव प्रयोग की अनंत संभावना है। यह कलाकार की प्रतिभा और रचनात्मकता को उजागर करता है। एक ऐसी संभावना से भरी प्रस्तुति वीरबाला-वीमेन वारियर ऑफ इंडिया थी। कथक और भरतनाट्यम नृत्य शैली में नृत्यांगनाओं ने इसे पेश किया। इसकी परिकल्पना आयोजक उषा आरके ने की थी।
इंडिया हैबिटाट सेंटर में नृत्य समारोह में युवा नृत्यांगना दक्षिणा वैद्यनाथन, विधा लाल, शिवरंजनी हरीश और पूर्णा आचार्य ने पेश किया। भरतनाट्यम नृत्यांगना शिवरंजनी हरीश ने रानी चिन्नमा के भावों को पेश किया। उनकी प्रस्तुति डीएस श्रीवत्स की रचना पर आधारित थी। उनके नृत्य में ताल के आवर्तनों के साथ जतीस का प्रयोग आकर्षक था। साथ ही, उन्होंने रानी चिन्नमा के भावों के साथ तलवारबाजी का सुंदर संचालन पेश किया।

अगले अंश में डॉ सरोजा वैद्यनाथन और रमा वैद्यनाथन की शिष्या दक्षिणा वैद्यनाथन ने दमदार अभिनय पेश किया। उन्होंने रानी रूद्रमा देवी की कथा को अपनी प्रस्तुति में पिरोया। रानी रूद्रमा अपने पौत्र को राजनीति, रणनीति और युद्ध कौशल का प्रशिक्षण देती हैं। उन्हें जब संतुष्टि हो जाती है। तब वे चुपचाप प्रस्थान कर जाती हैं। दक्षिणा ने रानी के एक-एक भाव को बहुत बारीकी से दर्शाया। लगातार नृत्य पेश करते हुए, दक्षिणा के नृत्य में अपने गुरुओं के ओज के साथ उनकी स्वतंत्र छवि उभरी है, जो उनकी समग्र प्रतिभा को दर्शाती है।

उनकी मराठी शैली की वेशभूषा और भी सुंदर प्रतीत हुई, प्रस्तुति के साथ। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कहानी को कथक नृत्यशैली में पिरोया गया था। इसे नृत्यांगना पूर्णा आचार्य ने पेश किया। कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता ‘झांसी की रानी’ पर आधारित थी। कथक के टुकड़े, तिहाइयों, परण और परमेलू का सुंदर प्रयोग किया था। उन्होंने अश्व की चलन और गत निकास का प्रयोग सुघड़ अंदाज में किया। उन्होंने बहुत संक्षिप्त प्रस्तुति में रानी लक्ष्मी बाई के पूरे जीवन चरित्र को दिखाया। उनका भाव पक्ष उम्दा था। लेकिन गायिका पवित्रा चारी ने इस कविता को वीर रस में गाया होता, तब नृत्यांगना पूर्णा आचार्य की प्रस्तुति और अधिक प्रभावी हो पाती।

अगली प्रस्तुति कथक नृत्यांगना विधा लाल की थी। विधा लाल ने रजिया सुलतान के चरित्र को प्रभावकारी अंदाज में पेश किया। चक्करों के साथ उनका मंच पर प्रवेश का अंदाज ही नायाब था। साथ ही, संवाद के साथ उनके भावों में परिपक्वता और सहजता दोनों शामिल थे। उन्होंने दमदार टुकड़ों और तिहाइयों को नृत्य में पिरोया। उनकी प्रस्तुति में नायिका रजिया के भाव बहुत मोहक ढंग से उभरा। दरअसल, इस तरह के नव प्रयोग शास्त्रीय नृत्य में अनूठे पहल की तरह हैं। युवा नृत्यांगनाओं ने इस चुनौती को स्वीकार कर, इसे नृत्य में प्रस्तुत कर एक अच्छी कोशिश की है। इसके लिए वे सराहना की पात्र हैं। पद्म, जावली और वरणम के दायरे से निकलकर, कुछ नए प्रयास भरतनाट्यम नृत्यांगनाओं ने किया। वहीं कथक में एक नई सोच दिखी। इस तरह के प्रयासों को सराहा जाना कला और कलाकार दोनों के लिए श्रेयस्कर है।