दुनिया क्या है? भूल भुलैया? रहस्यमयी, जटिल या बेहद सहज है? दरअसल, इसे देखने, जानने निकलने वाला जहां से चलता है, वह अंतत: वहीं पहुंच जाया करता है, जहां से यात्रा शुरू करता है। यात्रा जन्म से शुरू होती और मृत्यु पर खत्म हो जाती है। तब एक ही सवाल होता है कि जीवन क्या है? सो, लाख सवालों का एक ही सवाल है कि इस जगत में जीवन क्या है? और इसे कैसे जीएं?

जीवन को जानने-समझने-समझाने के प्रयास अनंतकाल से चले आ रहे हैं। इसे समझने की अनेक चिंतन पद्दधतियां और परंपराएं विकसित हुर्इं, फिर भी यहां कोई ऐसा ठिकाना नहीं कि जहां पहुंच कर पूछ लिया जाए और जीवन के संबंध में सुनिश्चत उत्तर पाया जा सके। इस सवाल के जवाब में वेद, वेदांत और उपनिषद लिखे गए। कृष्ण की गीता ने आकार लिया।

गीता को सुनने वाला आमजन के रूप में अर्जुन है। मगर कृष्ण के बावजूद कौरवों और पांडवों के बीच भीषण महाभारत घटित होता ही है, यानी अर्जुन को लाख समझाने के बावजूद कृष्ण के रहते दोनों संयुक्त परिवारों की जो गति हुई, वह दुनिया के सामने है। कहा यही जाता है कि जो कुछ दुनिया में है वह महाभारत में है और जो महाभारत में नहीं है वह दुनिया में भी नहीं है।

भारत में हमेशा से दुनिया तो क्या, दुनिया से पार ले जाने वाले संत, महंत, बाबा और ज्ञानी हुए हैं। आम व्यक्ति इस दुनिया में रहते हुए जीवन भर भटकता रहता है। गरीब रोटी के लिए, मध्यवर्ग अमीर बनने तथा अमीर और अमीर होने के लिए तथा उच्चवर्ग एक के बाद दूसरी कंपनी शुरू करने के जतन में लगा ही रहता है। इन्हीं तीनों वर्गों में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो आवागमन से मुक्त होने की चाहता रखता है, दुनिया से पार पाने की धुन में रहता है। दुनिया से पार जाने या मुक्ति की सोच रखने वाले भारत को विश्व स्तर पर अगुआ स्थापित करने और जीते जी मोक्ष पाने की कामना पाले रहते हैं।

बुद्ध से लेकर आज तक दार्शनिकों, संत-महंतों और बाबाओं के दरबार सजते रहे हैं। इसी कामना से लोगों का हुजूम मठों, आश्रमों और मंदिरों में पहुंचता रहता है। ऐसे स्थानों, मठों और आश्रमों में भक्तों का तांता हर मौसम में लगा रहता है। देश संतों से भरा पड़ा है। ऐसे बाबाओं के होते हुए भी कुछ गंभीर व्यक्त्वि, गहन अध्ययन और मनन से अपना स्थान बनाने वाले भी रहे हैं।

ऐसी महान शख्सियतें समय-समय पर यहां अवतरित होती रही हैं। बुद्ध, गोरखनाथ और कबीर अपने समय की ऐसी विभूतियां रही हैं, जो निस्वार्थ जीवन जीते हुए समय से पार हो गर्इं। त्याग करने वाले महान त्यागी, साधना में रहने वाले साधक, तप करने वाले तपस्वी और यती भी होते रहे हैं। बीसवीं और इक्कीसवीं सदी में भी हम अपने समय से पार जाने की बात करने वालों से रूबरू हो सकते हैं।

गीता जीवन के रहस्य को समझाती है। वही गीता ओशो की जुबान से आज की भाषा में निस्रृत होती है। उन जैसे आज भी अनेक प्रवचनकर्ता गीता, वेदांत और उपनिषद को युवाओं तक मनोवैज्ञानिक ढंग से बखूबी पहुंचा रहे हैं। इस दुनिया में रहते हुए हर व्यक्ति अधूरा है, सो वह तीर्थ यात्रा करता या बाबाओं की शरण लेता है।

दुनियादारी में जीता हर शख्स बेचैनी महसूस करता है। उसकी यही बेचैनी और तड़प गहन भारतीय दर्शन तक ले जाती है। इस दुनिया में हर व्यक्ति अधूरा है और इस अधूरेपन को दूर करने के लिए धन-दौलत के साथ महात्माओं की शरण में भी पहुंच जाया करता है। हर प्रवचनकर्ता राग, द्वेष और ममत्व से मुक्त होकर आत्मा को परमात्मा से तदाकार करने की बात अपने प्रवचनों में करता है।

त्याग, दान-दक्षिणा का बड़ा भाग मंदिर, आश्रम और मठों को देने को कहता है। इसीलिए देश में ऐसे मंदिरों, मठों और आश्रमों की भरमार है, जो स्वर्ग सरीखे जान पड़ते हैं। बुद्धिजीवियों का ठिकाना भौतिक स्थान नहीं बन पाते हैं, पर उन्हें भी चाहिए दुनिया के पार के सपने। सो, उन्हें इस लोक प्रचलित संत परंपरा से हटकर, कुछ अनूठे और वाक्चातुर्य के धनी दार्शनिक चाहिए, जो गूढ बातों को शब्द दे सकें।

ओशो के रिक्त स्थान को भरा नहीं जा सका है। भले ही उनके नाम पर जगह-जगह कम्यून बने हुए हैं। उनके अनुयायी उनके ज्ञान को प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं। ईश्वर अमूर्त और निराकार है। मगर ईश्वर का नकार चार्वाक, बुद्ध, कबीर और आधुनिक दौर में ओशो से होता हुआ आज के आचार्यों तक का सफर करता हुआ हमारे सामने है। इस दुनिया में हर शख्स अधूरापन महसूस करता है और इस अधूरेपन को दूर करने वाले आसमान की तरफ इशारा करते हैं। ओशो भी अंतत: परमात्मा होने या उसमें विलय हो जाने जैसे रहस्य की भूलभूलैया में भटकता छोड़ देते हैं। यह दुनिया और जीवन बेहद रहस्मय है।