देश के बंटवारे के समय शाहपुरा गांव के निवासी पाकिस्तान चले गए थे। उनके कुछ घरों में वहां से आए लोगों को बसा दिया था। एक-दो हवेलियों में कोई नहीं रहता था। शाहपुर के बच्चे एक हवेली के बाहर क्रिकेट खेल रहे थे। रोहित ने एक जोरदार शाट लगाया।

‘अरे रोहित, तुम ने इतना तेज और लंबा शाट लगाया कि गेंद सीधी हवेली में जा गिरी। वहां से कौन लाएगा गेंद?’ विकास ने पूछा। ‘तुम लाओगे।’ रोहित ने उत्तर दिया। ‘अरे भाई तुम जानते हो कि यह हवेली वर्षों से बंद पड़ी है, इसमें भला मैं क्यों जाऊंगा।’ विकास ने कहा। ‘भई गेंद को उठाकर लाना तो फिल्डर्स का ही काम है।’ महेश ने अपनी बात कही। ‘विकास तुम्हारे साथ मैं चलता हूं। कम से कम इस बहाने हवेली को देख तो लेंगे।’ मोहित ने कहा।

‘हां, हां मैं भी जाऊंगा’ मोहन भी बोला। ‘ठीक है मेरे साथ मोहित और मोहन चलेंगे तो मैं गेंद ले आऊंगा।’ विकास ने कहा। तीनों हवेली की तरफ चल दिए। उनके हाथों में लंबी-लंबी छड़ीनुमा लकड़ियां थीं। हवेली में मकड़ी के बड़े-बड़े जाले लगे हुए थे। चमगादड़ भी इधर-उधर छत की तरफ लटके पड़े थे। कबूतरों की बीट से हवेली भरी पड़ी थी।

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‘अरे मोहन मुझे तो बहुत डर लग रहा है, कोई भूत-प्रेत तो नहीं है अंदर?’ विकास ने कहा। ‘भूत-प्रेत तो नहीं होंगे लेकिन जिन्न जरूर होंगे।’ मोहन ने हंसते हुए कहा। ‘ऐसा मजाक मत करो भाई…जल्दी आगे बढ़ो गेंद ढूंढ़नी है।’ मोहित ने कहा। जैसे-तैसे वे हवेली के आंगन में पहुंचे और इधर-उधर गेंद तलाश करने लगे। ‘देखो मोहित, हवेली में एक तहखाना है। कहीं इसमें तो नहीं चली गई अपनी गेंद।’ मोहन ने नीचे की तरफ झांकते हुए कहा।

‘चलो वापस चलते हैं।’ विकास ने डरते हुए कहा। ‘विकास डरो मत। देखो तहखाने में जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं।’ मोहित ने इशारा करते हुए कहा। मोहन बोला, ‘मैं सीढ़ियां उतरता हूं।’ ‘ठहरो हम तीनों ही नीचे तहखाने में उतरेंगे।’ मोहित ने विकास का हाथ पकड़ते हुए कहा। विकास ने हिम्मत करके तहखाने में उतरने का निर्णय ले लिया। ‘अरे यह कैसी रोशनी?’ मोहन ने तहखाने में आ रही रोशनी को देखकर कहा। ‘इस हवेली की शायद खासियत हो कि अंधेरे में भी रोशनी का प्रबंध हो?’ ‘पुराने जमाने का इतना बड़ा संदूक।’ मोहन ने एक कोने में संदूक देखकर कहा।

‘अरे गेंद ढूंढ़ने आए हो या संदूक?’ विकास बोला। ‘अरे गेंद भी ढूंढ़ेंगे और खजाना भी।’ मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा। ‘क्या कहा, खजाना! पागल हो गए हो तुम। कामिक्स पढ़-पढ़ कर तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।’ विकास ने घबराते हुए कहा। मोहित बोला, ‘चलो संदूक खोलते हैं।’ ‘ये तो जमीन में गड़ा हुआ है। सिर्फ ढक्कन ऊपर की तरफ है। ये ढक्कन लग भी रहा है बिन ताले का।’ मोहन ने ढक्कन को खोलने की कोशिश करते हुए कहा।

‘जोर लगाओ तीनों।’ मोहित ने कहा। तीनों ने खूब जोर लगा लिया किंतु ताला न होने के बावजूद संदूक का ढक्कन नहीं खुला। विकास चुपचाप जाकर एक कोने में बैठ गया। मोहन और मोहित अब भी कोशिश कर रहे थे। विकास के चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी। वह इधर-उधर नजरें घुमा-फिरा कर देख रहा था। अचानक उसे खूंटी पर एक बैग टंगा दिखा। वह चुपचाप उठा और टंगे हुए बैग की तरफ बढ़ा।

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मोहन और मोहित संदूक छोड़कर विकास की तरफ गए। यह तो वायलिन रखने का बैग है। ये क्या, इसमें तो पुराना वायलिन है..।’ मोहित ने बैग खोलते ही कहा। मोहन बोला, ‘इसे बजाकर देखो मोहित। तुम तो वैसे भी गुरु जी से वायलिन सीख रहे हो।’ जैसे ही मोहित ने वायलिन बजाया तो धुन निकल पड़ी। ‘कौन सी धुन बजानी है बताओ भाई?’ मोहित ने मुस्कुराते हुए पूछा। ‘यही कि खुल जा सिम सिम।’ मोहन ने भी मजाक में जवाब दिया।

मोहित ने खुल जा सिमसिम जैसी ही धुन निकालने की कोशिश की। तभी संदूक में हलचल हुई और उसका ढक्कन धीरे-धीरे खुलने लगा। ‘भागो भूत।’ विकास चिल्लाया। ‘कोई भूत-प्रेत नहीं है विकास। इस संदूक को खोलने का कोड वर्ड इस वायलिन की धुन ही है।’ मोहन ने धीरे से कहा। सचमुच वायलिन की धुन पर संदूक का ढक्कन खुल गया। उस संदूक के खुलते ही सबकी आंखें फटी की फटी रह गईं। ‘सचमुच खजाना है इसमें तो।’ विकास के मुंह से निकला। ‘चलो, पुलिस स्टेशन में सूचना देते हैं। तुम सरपंच को बुलाना मैं और विकास बाहर के साथियों के साथ पुलिस थाने चलेंगे।’

मोहन ने कहा। तीनों तुरंत हवेली से बाहर निकल आए। पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर अंकल ने सबको पहले पानी दिया और तसल्ली से सारी कहानी पूछी। विकास और मोहन ने हवेली, तहखाना, संदूक और वायलिन के साथ-साथ खजाने के बारे में बड़े इत्मीनान के साथ बता दिया। बच्चों को लेकर पुलिस हवेली पहुंची। तब तक गांव के सरपंच और कुछ पंच भी आ गए। पुलिस ने उस संदूक को जमीन से बाहर निकलवाया। ‘देखो यह खजाना सरकार का है…इसे कलक्टर साहब के पास ले जाया जाएगा। बाद में सरकारी नियमानुसार सरकार के खजाने में जमा हो जाएगा। बच्चों तुम लोगों को सरकार की तरफ से बड़ा इनाम मिलेगा।’ इंस्पेक्टर ने कहा। सारे बच्चे खुशी से उछल पड़े।