सही बात यह है कि भाषा भावों और विचारों को छुपाने का माध्यम है।
अब तक होली को हम जैसा भी देखते रहे हों, लेकिन अब होली उदास है।
कविता की व्याख्या, समीक्षा और विश्लेषण करते वक्त विशेष सावधानी और तैयारी की जरूरत होती है।
प्राय: पुरुषों को कहते सुना है कि स्त्रियों के पेट में कोई बात नहीं पचती।
हमारे यहां स्त्री सशक्तिकरण के जितने आंदोलन चले, वे मानसिकता को बदलने और व्यवहार में आई जड़ता को तोड़ने के…
स्वाभाविक रूप से मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसका जीवन कई प्रत्यक्ष और परोक्ष सूत्रों से संचालित होता है।
संसार का निर्माण, संहार और पालन करने वालों में भी ‘मैं’ है।
मनुष्यों में स्मृति कोशिकाएं नष्ट नहीं होतीं, लेकिन बहुत बार बच्चे भी तो अपने माता-पिता को भूल ही जाते हैं।