self-love, mental health, emotional loneliness, identity crisis
दुनिया मेरे आगे: सबको खुश करते-करते स्वयं से नाराज क्यों हो जाते हैं हम? ‘खुद’ से टूटता रिश्ता और भीड़ में अकेलापन

हम अक्सर एक मुस्कुराता हुआ मुखौटा पहन लेते हैं, भले ही हमारे भीतर तूफान चल रहा हो। ऐसा लगता है…

Solitude, Loneliness, Self-awareness, Inner Peace
दुनिया मेरे आगे: अकेलापन नहीं, एकांत चुनिए — स्वयं से जुड़ने, सोचने और कुछ नया रचने का यही होता है उपयुक्त अवसर

जब तक खुद से साक्षात्कार नहीं होता है, मौन बैठा रचनात्मकता का बीज अंकुरित नहीं होता है। ध्यान और जागरूकता…

Dunia mere aage self-neglect, self-acceptance, identity
दुनिया मेरे आगे: रिश्तों के नाम पर खुद को मत खोइए, आत्म-सम्मान बचाना है तो ‘ना’ कहना सीखिए

खुद को खो देना एक धीमी प्रक्रिया है और खुद को फिर से पाना उससे भी अधिक संघर्षपूर्ण यात्रा। यह…

self-awareness, know yourself, Lao Tzu philosophy,
दुनिया मेरे आगे: समाज नहीं, खुद तय करें आप कौन हैं? जीवन की सबसे जरूरी और अनकही यात्रा है खुद को समझना

दार्शनिक लाओत्से ने लिखा है, ‘यदि आप दूसरों को समझते हैं, तो आप होशियार हैं। यदि आप खुद को समझते…

Courage, Willpower, Inner Strength, Inspiration
दुनिया मेरे आगे: जब साथ हो आत्मबल और साहस तब कुछ भी असंभव नहीं, जो ठान लिया, वो कर दिखाया

हौसला मतलब- हिम्मत, हर व्यक्ति के अंदर यह छिपी हुई शक्ति होती है, जिसका खुद को एहसास करना होता है।…

overthinking, mental distraction, present moment, mindfulness
दुनिया मेरे आगे: कहीं आप भी तो नहीं गुम हैं? सोचो कम, जियो ज्यादा, वर्तमान से जुड़ने का सरल सूत्र

असल में हम अपनी सोच की निर्मित दुनिया में जीते हैं। हम सिर्फ वही महसूस करते हैं, जो सोच रहे…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: ईमान की राह से जब मन भटकाने लगे, तब खुद को कैसे संभालें, एक सच्चे और सादे जीवन की सबसे बड़ी कसौटी

जीवन के हर रंग में ईमानदारी की दरकार होती है। इसके बिना जीवन बनावटी और काले लोहे पर दिखावे के…

courage to accept, accepting negativity, positive thinking, self-acceptance
जनसत्ता सरोकार: गलतियों को छिपाने से नहीं, स्वीकारने से आती है असली सकारात्मकता

बहुत सारी बातें नकारात्मक तभी तक बनी रहती हैं, जब तक हम उन्हें स्वीकार नहीं करते, उल्टा उन्हें सही ठहराने…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: भीड़ में अकेला इंसान और टूटते रिश्तों का वक्त, विकास की दौड़ में कहीं पीछे छूट गया है हमारा ‘हम’

अकेलापन किसी की सामाजिक स्थिति या उपलब्धियों से परे है। यह अनुभव हर किसी को छू रहा है। दरअसल, अकेला…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: क्यों चुभती है किसी की सफलता? तारीफ से परहेज करने वालों की मानसिकता पर गहरी नजर

दूसरों को सुखी देख दुखी होने की मानसिकता हमें कभी भी सुख, खुशी, आनंद और उल्लास नहीं दे सकती। हमें…

जनसत्ता ब्लॉग, Jansatta Blog
Blog: तेजी की कीमत! इंस्टैंट डिलीवरी का दबाव, सड़कों पर बढ़ता खतरा

जल्दी सामान पहुंचाने के दबाव के कारण होने वाली दुर्घटनाएं न केवल व्यक्तिगत नुकसान है, बल्कि इसके पीछे एक सामाजिक…

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