जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: जीवन का आधार है संबंध, इसी से हमारे कर्म का होता है निर्धारण

मनुष्य का संबंध सिर्फ मनुष्य से ही नहीं होता, बल्कि स्वयं से, विचारों, वातावरण, प्रकृति, जीव-जंतु आदि से जुड़ना भी…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: समय को दोष देकर हम अपने कर्तव्यों से बच नहीं सकते, सोच की शुद्धता ही जीवन में ला सकती है सच्चा परिवर्तन

समय वही दिखाता है जो हम हैं। समय को दोष देना छोड़कर अगर हम हर दिन को अवसर की तरह…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: शोक नहीं, सृजन को चुनिए; असफलता के बाद उठने की असली ताकत

असफलता के बाद उठ खड़े होने की कला ही मनुष्य को महान बनाती है। जो लोग शोक-अवधि को संक्षिप्त रखते…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: मोबाइल एप्स से घिरे हम, क्या आरामतलब की जिंदगी ने हमें निकम्मा बना दिया है?

बाजारवाद ने हमें बहुत अधिक पराश्रित कर दिया है। दिखावे की हैसियत के मारे हम लोग दूसरों पर इतने निर्भर…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: सामाजिक संरचना का आधार बनती हैं मनुष्यता, परोपकार और सहानुभूति की भावना को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता

जब हम सहानुभूति के साथ दूसरों की पीड़ा और आनंद को साझा करते हैं, तो हमारे भीतर भी सुख और…

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दुनिया मेरे आगे: महानगरों में गरीब और बेघर लोगों के साथ होने वाला व्यवहार बेहद संवेदनहीन, बच्चों को समझा जाता है सस्ता श्रमिक

मुश्किल यह है कि समाज का जो तबका उपेक्षित बच्चों के लिए कुछ कर सकने की स्थिति में है, वह…

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दुनिया मेरे आगे: अंतरात्मा के बोझ को उतार फेंकती है गलती और अपराध को लेकर प्रायश्चित की प्रक्रिया, अपने मर्ज का डाक्टर बनने का नहीं करना चाहिए प्रयास

अगर यह मान भी लिया जाए कि होनी होकर रहती है, तो अनहोनी को टालने का प्रयास अवश्य होना चाहिए।…

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दुनिया मेरे आगे: हमारे दिमाग को पसंद नहीं है विरोधाभास, हर बार खुद को सही ठहराना कर देना चाहिए बंद

महत्त्वपूर्ण बात यह कि खुद को हर बार सही ठहराना बंद कर देना चाहिए। बगैर किसी स्पष्टीकरण के चुनाव करने…

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दुनिया मेरे आगे: प्रदर्शन से परे है प्रेरणा, सोशल मीडिया के दौर में इसे भी बना दी गई प्रचार की इकाई

जब हर ओर प्रतिस्पर्धा, प्रदर्शन और मान्यता की होड़ मची है, तो प्रेरणा को भी बाहरी मानकों से जोड़ दिया…

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दुनिया मेरे आगे: मदद के बदले धन्यवाद देना हमारे संस्कारों और सामाजिकता का होना चाहिए हिस्सा, मांगने के दौरान विनम्रता और कृतज्ञता आवश्यक

जब हम किसी से कुछ मांगते हैं, तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी बात स्पष्ट हो कि क्या…

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दुनिया मेरे आगे: परिस्थिति और उद्देश्य पर निर्भर करता है बहस करना या न करना, कई बड़े-बड़े विद्वान भी नहीं सीख पाते शब्दों का चयन

अपने संवाद में नपे-तुले शब्दों का चयन संसार की बहुतेरी परेशानियों से बचाने का दम रखता है। यही सुंदरता तमाम…

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दुनिया मेरे आगे: जिज्ञासा की कुंजी खुलते ही मूढ़ता और अज्ञानता चली जाती है हमसे कोसों दूर, बच्चे से लेकर वृद्ध में विद्यमान होती है जिज्ञासा

जिज्ञासा की कुंजी सकारात्मकता और सक्रियता का ताला भी खोलती है। यह कहा जा सकता है कि जिज्ञासा एक ऐसा…

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