
समाजशास्त्र की सफल अवधारणा है कि समाज की लघुतम इकाई परिवार संचालन का मूल ऊर्जा स्रोत संवेदना रही है।
मानसून ने दस्तक दे दी है। अब अमृत वर्षा शुरू होने ही वाली है। दरअसल, जल से ही हमारा आज…
प्रकृति ने धरती पर अपने विराट वैभव भंडार से असंख्य संपदाओं को जनमानस के उपयोग और कल्याण के लिए सृजित…
गांव में उन दिनों व्यक्तिगत परिवहन साइकिल से होता था। सामूहिक आवागमन बैलगाड़ियों से किया जाता था। ट्रैक्टर और मोटरसाइकिल…
हम सबका जीवन मूलत: बंधनमुक्त है। हम इस सनातन सत्य को जानने और समझने के बाद भी इस जगत में…
मनुष्य आमतौर पर पूर्वाग्रह से भरा हुआ जीव है। किसी नई जगह जाने या किसी नए व्यक्ति से मिलने से…
विद्यार्थियों को पढ़ाना सदैव सुखद अहसास देता है। खासतौर पर कॉलेज में पढ़ाते हुए हम युवाओं की सोच से भी…
कितने सारे खिलौने थे। एक खिलौने में एक ढोल बजाता बंदर था, तो दूसरे में पहियों के सहारे चलने वाला…
वक्त के साथ कैसे सब कुछ इतना बदल जाता है कि एक दौर में सबके लिए सबसे जरूरी चीजें बेमानी…
टीवी धारावाहिक महाभारत के सूत्रधार की गंभीर आवाज में कहे गए शब्द ‘मैं समय हूं’ को कौन भूल सकता है।
इतिहास साक्षी है कि मनुष्य के संकल्प के सामने नकारात्मक शक्तियां भी नाकाम हो जाती हैं।
भागदौड़ भरी जीवन शैली ने जीवन की छोटी-छोटी बातों की तरफ हमारा ध्यान जाने से लगभग रोक दिया है।