जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: पाने की खुशी से ज्यादा होता है खोने का गम, एक के बंद होने पर खुलता है दूसरा दरवाजा

समय के साथ कुछ के खोने पर हमें अफसोस होता रहता है, पर यह सब आगे चलकर भुला दिए जाते…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: कर्ज लेकर मजे करने का भारत में आ गया चलन, अपनी संस्कृति भूलते जा रहे लोग

शहर और कस्बाई लोगों का रुझान बहुप्रचारित ब्रांडेड उत्पादों की ओर ज्यादा नजर आता है। बस इसी तरह हम फिजूलखर्ची…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: बच्चों को शारीरिक सजा देना है वैधानिक हिंसा, माता-पिता की हथेली बनी मार की पहचान

बच्चों के मूलभूत मानवाधिकारों की सुरक्षा के प्रति हमारी जिम्मेदारी अधिक इसलिए हो जाती है कि वे अपने अधिकारों से…

river
दुनिया मेरे आगे: 4500 से ज्यादा नदियां हो गई विलुप्त, जल संकट के मामले में भारत का हाल बेहाल

इंसान और प्रकृति दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। न्यूजीलैंड की संसद ने वहां की तीसरी सबसे बड़ी नदी वांगानुई…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: लोकतंत्र में टूटते बिखरते सपने, लोग एक टाइम कर रहे भोजन तो दूसरे समय पी रहे सब्र का प्याला

जो एक जून भोजन और दूसरे जून सब्र का प्याला पी रहे थे, वे भोजन से तो उखड़े ही, शहरों…

जनसत्ता-दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: जीवन के खेल निराले, हारने के लिए भी रहना चाहिए तैयार

कठिनाइयां ही हमें मजबूत, अनुभवी और चतुर बनाती हैं। फ्रेडरिक नीत्से कहते हैं, चुनौतियों की तलाश करना भी अपने भाग्य…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: ये कहां आ गए हम, मौत पर भी उड़ाया जा रहा उपहास, दुश्मन की मृत्यु पर होता था शोक

प्राणी मात्र के प्रति संवेदना रखने वाले देश में सोशल मीडिया पर किसी की बीमारी या फिर मृत्यु तक को…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: सोशल मीडिया ने घरों के बीच बनाई दूरी, लोगों की बना दी अलग दुनिया

सुख-दुख किसी एक का नहीं, सबका होता है और वे आपसी सौहार्द के साथ साझा करते हैं। परिवार का मुखिया…

जनसत्ता-दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: परिवार की अर्थव्यवस्था ने लिया नया करवट, पाश्चात्य शिक्षा का है प्रभाव

परिवार और समाज उस समय बर्बाद होने लगते हैं, जब समझदार मौन हो जाते हैं और नासमझ बोलने लगते हैं।…

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दुनिया मेरे आगे: आंसू देखते ही खुशी से झूम उठता है पूरा परिवार, जानें कैसा है कुदरत का करिश्मा…

रोना या आंसू बहाना भी कोई हंसी खेल नहीं है। ईमानदार आंसू वही बहा सकता है, जो सच्चे अर्थों में…

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दुनिया मेरे आगे: एक करोड़ का हीरा पहनने से नहीं मिलेगा आनंद, उत्साह और उमंग के लिए अमीर और प्रतिष्ठित होना जरूरी नहीं

हम लाख चाहें फिर भी इस बात को नहीं जान सकते कि हमारे आने वाले कल में क्या होगा। तो…

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दुनिया मेरे आगे: छोटे बच्चों को हॉस्टल में रखना पड़ सकता हैं महंगा, ज्यादा अनुशासन बच्चों को बनाता है दब्बू और आत्मविश्वास से कमजोर

बच्चा सबसे पहले सीखता है अपनी मां से, अपने परिवार से, परिवेश से और अपने खुले वातावरण से। उसे खेलने…

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