जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: सुख बनाम दुख, अच्छाई और बुराई के बीच हर दौर का संघर्ष

जीवन में सुख-दुख साथ-साथ आते हैं। पर हमें लगता है कि दुख ने हमारे घर में अधिक समय तक बसेरा…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: आज की पीढ़ी पैसों के लिए बेच दे रही है इमान, मुफ्त के सामान की लोगों को लग गई है लत

हम सिर्फ सोचते ज्यादा रहे हैं। सपनों में ही ज्यादा खोते रहे हैं। इसलिए शायद हकीकत का धरातल उथला रह…

जनसत्ता-दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: लोगों को रखना चाहिए सुनने का धीरज, सामने वाले की बातों पर करें गौर

कई लोग सामने बैठ तो जाते हैं, मगर पल में ही कहीं खो जाते हैं। वे न तो बोलने वाले…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: लोगों में समानुभूति बढ़ाने के लिए करना चाहिए उपाय, हर हफ्ते किसी एक अजनबी से बात करने की डालनी चाहिए आदत

भले ही इंसान एक स्वार्थी और आत्मकेंद्रित जीव है, लेकिन उसमें परोपकार सहानुभूति और समानुभूति के भाव आसानी से जागृत…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: लोगों के दिमाग में चढ़ा दिखावे का रोग, ऑनलाइन खाने का तेजी से बढ़ रहा चलन

इस बाजारवाद की सबसे भयावह चीज यही है कि मध्यवर्गीय परिवार के अनेक बच्चे अपने अभिभावकों की परेशानियों को समझना…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: दुनिया की सबसे बड़ी दौलत दिमागी शांति, जिंदगी में तोता नहीं, बनना चाहिए बाज

जीवन की शांति परिस्थितियों को न केवल ठीक करने की लगन से मिलती है, बल्कि यह सोचने से भी मिलती…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: आसपास भी है दुनिया जिसका किसी को अंदाजा ही नहीं, आत्मकेंद्रित हो गए हैं हम

समय प्रबंधन ही समस्त रिश्तों का आधार होता है। जो व्यक्ति हमसे जुड़ा है, वह संवाद की अपेक्षा हमसे रखता…

Indian sweets
दुनिया मेरे आगे: कलाकंद की उम्र सबसे कम, काजू कतली-चमचम रसगुल्ला की जानें एक्सपायरी डेट, त्योहार पर मिठाइयों की स्थिति

मौके-बेमौके मिठाइयां खाने- खिलाने की चाह हर किसी को होती ही है। इसीलिए हर तीज- त्योहार से किसी न किसी…

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दुनिया मेरे आगे: कुदरत का प्रकोप, तीन घंटे में ही 3 महीने जितनी बारिश, बीस लाख लोग प्रभावित

हमारे प्राणों, शरीर और जीवन के मुख्य आधार प्राकृतिक घटकों की स्थिति ही जब अत्यधिक प्रतिकूल हो चुकी हो तो…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: स्वप्नों की दुनिया की अनोखी है कहानी, हर अंत के बाद होती है एक नई शुरुआत

एक तारा अगर टूट जाए तो इससे फलक सूना नहीं हो जाता। इसी तरह किसी स्वप्न के टूटने से जीवन…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: अपने ही बच्चों को मातृभाषा सिखाने से कतरा रहे माता-पिता, महानगरों की चकाचौंध ने बदल दिया सोचने का नजरिया

बच्चों से अगर पूछा जाए कि आपका प्रिय विषय क्या है, तो अधिकतर गणित, विज्ञान, इतिहास, अंग्रेजी, समाज विज्ञान जैसे…

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