जनसत्ता-दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: इगो की वजह से लोगों के बीच बढ़ रही दूरियां, संयम से रहने का सौंदर्य सबसे बेहतर

हम घरों में देखते हैं कि एकल परिवार होने के कारण पति-पत्नी का अहं किसी भी मुद्दे पर टकरा जाता…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: कुदरत का करिश्मा दुनिया में कुछ भी नहीं है एक जैसा, जीवन के इंद्रधनुष में हर कुछ भिन्न

कुदरत को हमेशा सरलता तथा ईमानदारी पसंद आती है। वह यही चाहती है कि हम जैसे हैं, खुद को स्वीकार…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: विफल होने पर बार-बार करना चाहिए सफल होने का प्रयास, नाकामी में ही छिपा होता है कामयाबी का रास्ता

मारी मानसिकता आज इस दिशा में विकसित हो रही है कि हमें अपने उद्देश्य की प्राप्ति तो करनी है, लेकिन…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: कल्पनाओं के बीज से मन मस्तिष्क में बनाएं घर, वास्तविकता में विशालकाय वृक्ष का रूप ले सके

वास्तविकता एक विशालकाय वृक्ष का रूप ले सके, इसके लिए यह परम आवश्यक है कि कल्पना भली-भांति एक बीज का…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: चमक-दमक के साथ पेश होने पर जोर, साधन-संपन्न होना सुखी का होता पैमाना तो कई बड़े नामी-गिरामी कलाकार नहीं करते आत्महत्या

किसी के व्यक्तित्व के बारे में ध्यान दिलाने के लिए रोशनी न डाली जाए तो हम पहचान ही न पाएं…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: पानी जैसा होना चाहिए जीवन, मन के भीतर भूत-वर्तमान और भविष्य तीनों चलते हैं एक साथ

जो जल की तरह है, वह उदार, मुलायम और प्रवाहमान, शुद्ध, पुनर्जीवित करने वाला होता है। पानी की तरह बनना…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: पहली झलक का होता है बड़ा प्रभाव, आचरण-वेशभूषा और परिवेश से होती है पहचान

जीवन परिवर्तनशील और अनिश्चित है। हमारा आज हमारे बीते हुए कल तक हमारा भविष्य था और आने वाले कल में…

cold bonfire
दुनिया मेरे आगे: खत्म हो रही अलाव की दुनिया, आग को घेर कर बैठा करते थे लोग

आज इंसान और आग के रिश्ते के बारे में सोचने को अतीतजीवी हो जाने के तौर पर देखा जाता है।…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: समय से पहले बच्चे हो जा रहे सयाने, समझदारी आने से गुम होता बचपन

किसी भी कार्यक्षेत्र में व्यक्ति के सफल होने लिए पहली शर्त होती है कि वह एक बेहतर इंसान हो। अगर…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: बिना चाह के संवार देते हैं हमारी जिंदगी, ऐसे बेमिसाल लोग रहते हैं हमारे आसपास

गणमान्य सज्जन ही नहीं, हर छोटी-बड़ी वस्तु जो हमें मुफ्त या बिना भुगतान मिलती है, जब तक हमारे पास होती…

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: हमारी शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी विडंबना, सीखने के बजाय नतीजों में हासिल अंकों को दिया जाता है अधिक महत्त्व

परीक्षा प्रणाली में सुधार करते हुए इसका स्वरूप कुछ इस तरह तैयार करना चाहिए कि यह विद्यार्थियों की समझ और…

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