चीन के साथ व्यापार घाटा लगातार ऊंचा रहने को लेकर चिंताओं के बीच भारत ने उम्मीद जतायी कि यह देश भारतीय कंपनियों के लिये अपने बाजार खोलेगा साथ ही। भारत ने इसके साथ ही चीनी कंपनियों के लिये अपने यहां कारोबार करने का रास्ता आसान बनाने का वादा किया।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यहां कहा, ‘‘पिछले कुछ दशकों में हमारे द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण बदलाव यह हुआ है कि इसका आर्थिक आयाम बढ़ रहा है। वस्तुओं के व्यापार के मामले में चीन हमारा सबसे बड़ा भागीदार है। दोनों अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे देश में निवेश के लिये आगे बढ़ रही हैं।’’

यहां दूसरे भारत-चीन मीडिया मंच को संबोधित करते हुए सुष्मा ने कहा, ‘‘संपर्क सुविधाओं के बढ़ाने को लेकर गंभीर चर्चा शुरू हुई है। हम अपने आर्थिक सहयोग को को गुणत्मक रूप से नये स्तर पर ले जाना चाहते हैं।’’

सुषमा ने कहा कि राष्ट्रपति शी चिनफिंग की पिछले साल सितंबर में भारत यात्रा के दौरान विकास भागीदारी बढ़ाने पर सहमति बनी। यह आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने के संकल्प का प्रतीक है।

उन्होंने कहा कि रेलवे समेत नये क्षेत्र में सहयोग के नये युग की शुरुआत हुई है जहां दोनों देश मालगाड़ियों की भार वहन क्षमता बढ़ाने, रेलगाड़ियों की गति बढ़ाने, रेलवे स्टेशनों के विकास तथा क्षमता निर्माण जैसे क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं।

सुषमा स्वराज ने कहा, ‘‘भारत के दो राज्यों में चीन के औद्योगिक पार्कों की स्थापना पर भी ध्यान केंद्रित है जो ‘मेक इन इंडिया’ पहल में योगदान देगा।’’

चार दिवसीय यात्रा पर यहां आयीं विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘हम चीनी कंपनियों के लिये भारत में कारोबार करने को आसान बनाएंगे और उम्मीद है कि चीन में भी हमारी कंपनियों को अपना कारोबार बढ़ाने के लिये इसी प्रकार का प्रोत्साहन दिया जाएगा।’’

चीन ने भारत के साथ 38 अरब डॉलर के व्यापार घाटे का हल निकलाने का वादा किया है। दोनों देशों के बीच 2014 में 70 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार हुआ और इसमें भारत का व्यापार घाटा (आयात निर्यात के बीच का अंतर) 38 अरब डॉलर रहा।

सुषमा ने कहा, ‘‘हम उम्मीद करते हैं कि संबंधों में पिछले कुछ महीनों में जो गति आयी है, उससे न केवल बनाये रखा जाएगा बल्कि विभिन्न स्तरों पर इसमें और तेजी भी लायी जाएगी।’’

विदेश मंत्री आज चीन में ‘‘भारत-यात्रा वर्ष:2015’’ अभियान का उद्घाटन करेंगी। देशों के बीच आपसी सूझबूझ बढाने में पर्यटन को एक प्रभावी माध्यम बताते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि हमें इस संदर्भ में मजबूत प्रयास करने की जरूरत है।

सुषमा ने कहा, ‘‘दोनों देशों की महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय भूमिका है, ऐसे में हमारे संपर्क और बातचीत उसी अनुपात में बढ़ना चाहिए। चूंकि दोनों देश प्राचीन काल से एशिया की दो शक्तिशाली सभ्यताएं रहे हैं, हमें साझा हितों के लिये एक-दूसरे में विश्वास रखना चाहिए। मैं उम्मीद करती हूं कि इस यात्रा के दौरान बातचीत इस मकसद में योगदान देगा।’’