
आज के दौर में इंसान की उम्मीदें इतनी बढ़ गई हैं कि वह खुद ही उनके बोझ तले दबता जा रहा है। कभी जो लोग थोड़े में संतुष्ट रहते थे, अब वे अधिक पाने की दौड़ में निराशा के शिकार हो रहे हैं। जीवन में सफलता पाने की चाह अच्छी है, लेकिन जब उम्मीदें सीमाओं से आगे बढ़ जाती हैं, तो वे मानसिक दबाव और असंतोष का कारण बनती हैं।