Independence Day 2024: जब भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात आती है, तो वो महात्मा गांधी के 1936 में अजमेर दौरे को याद करते हैं। उस वक्त शोभाराम की उम्र महज़ 11 साल थी, लेकिन गांधी जी के “करो या मरो” के बुलंद नारे ने उनके दिल में एक आग जला दी। इस जोश ने उन्हें संघर्ष के रास्ते पर डाल दिया। स्कूल से छुट्टी लेकर प्रदर्शन में शामिल होने की वजह से उन्हें कई बार डांट भी पड़ी, लेकिन उनकी दृढ़ता ने उनके माता-पिता का समर्थन हासिल कर लिया। शोभाराम ने पुलिस की कड़ी पूछताछ और अत्याचार को सहा, लेकिन कभी भी कोई जानकारी नहीं दी। इस चुप्पी की वजह से उन्हें जेल भी हुई, लेकिन बाल अपराध अधिनियम के तहत कानूनी सहायता ने उनकी रिहाई सुनिश्चित की। उन्होंने खतरनाक कार्यों में भाग लिया, जैसे कि हथगोले बनाना और उन्हें सुरक्षित जगहों पर पहुंचाना। एक बार जब उन्हें बनारस बम ले जाना था, तो एक चेतावनी की वजह से उन्होंने मुगलसराय स्टेशन का रुख किया और पुलिस से बच निकले। उन्होंने अपनी चालाकी से पुलिस को गुमराह किया और गिरफ्तारी से बच गए। शोभाराम, जो एक दलित और नेहरूवादी समाजवादी भी हैं, को उनके साहस के लिए 2011 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और 2013 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मानित किया था, लेकिन उसके बाद से वो अजमेर में एक गुमनाम सी ज़िंदगी जी रहे हैं। आज भी, वो श्रद्धापूर्वक केसरगंज के स्वतंत्रता सेनानी भवन जाते हैं। देखिये ये डॉक्यूमेंट्री और जानिए उनके बारे में….
Recognized for his valour, Shobharam also a Dalit and Nehruvian socialist was honored by both President Pratibha Patil in 2011 and President Pranab Mukherjee in 2013 but since then he has been living an obsolete life in Ajmer. Even today, he devoutly frequents the Swatantrata Senani Bhawan in Kesarganj. Recounting his involvement in India’s struggle for independence, he reminisces about Mahatma Gandhi’s visit to Ajmer in 1936, he speaks to us on rahul Gandhi’s Nyay Yatra and the country’s politics today… watch this short documentary on Shobharam, one of the the last remaining foot soldier of India’s independence struggle.