4 मार्च, 1956 को बिहार के मधुबनी के लहेरियागंज गांव में जन्मे शिवन लम्बे समय तक आर्थिक तंगी से जूझते रहे हैं. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर भी उन्होंने पढ़ने की जिद कायम रखी और 10वीं की परीक्षा पास की. भीषण अकाल की चपेट में आने के बाद भारत सरकार ने मिथिला पेंटिंग का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए अभियान छेड़ा. नतीजा, दीवारों तक सिमटी यह कला कपड़ों और कागजों पर नजर आने लगी. रामायण महाभारत और परंपरागत कहानियों के किरदारों तक सिमटी रहने वाली मिथिला की पेंटिंग्स को गोदना कला के जरिए चुनौती दी. इन्होंने इस धारणा तो भी तोड़ा कि यह कला कायस्थ और ब्रह्मण कलाकारों तक सीमित है. धीरे-धीरे इन्होंने अपनी गोदना पेंटिंग में दुसाध समुदाय के नायक राजा सहलेस को शामिल करना शुरू किया और इसे केंद्रीय किरदार बना दिया. इनके इस प्रयोग को सराहना मिली और राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किए गए. लेकिन समाजिक और आर्थिक चुनौतियां बरकरार रहीं. शांति देवी कहती हैं मेरी मां को पेंटिंग आती थी, इसलिए मेरे लिए इसे सीखना आसान हुआ. हमारी जाति की महिलाओं में शरीर गोदवाने की परंपरा रही है. इसे खूबसूरती और दर्द सहने का प्रतीक माना जाता था. एक बार एक विदेशी ने हमारी जाति की महिला के शरीर पर गोदना कला को देखा तो उसे कागज पर बनाने को कहा. जब ऐसा किया गया तो वह चित्र कुछ ही देर में बिक गया. इस तरह गोदना पेंटिंग की शुरुआत हुई.
