Babri Masjid Demolition: 6 दिसंबर 1992 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे दर्दनाक अध्याय है। इस दिन बाबरी मस्जिद (babri masjid) को गिराकर न केवल एक ऐतिहासिक ढांचा ध्वस्त किया गया, बल्कि भारत के बहुलवादी सामाजिक ताने-बाने पर भी गहरा आघात किया गया। यह घटना उस समय हुई जब सांप्रदायिक ताकतों ने कानून और संविधान की मूल भावनाओं को कुचल दिया। भारतीय जनता पार्टी (bjp) और संघ परिवार ने धार्मिक भावनाओं को भड़काकर इसे एक स्थानीय विवाद से राष्ट्रीय चुनावी मुद्दा बना दिया। मुसलमानों को बाहरी और आक्रांता के रूप में चित्रित किया गया, और हिंदुत्व की राजनीति का एजेंडा सामाजिक असमानता को बनाए रखने और परंपरागत ढांचे को मजबूत करने पर केंद्रित था। बाबरी विध्वंस के पहले और बाद में हुई हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए, लेकिन जिम्मेदारी लेने वालों की कमी आज भी महसूस होती है। शाहिद कहते हैं, “1992 में हमने यहीं रुकने का फैसला किया था, जो हमारी सबसे बड़ी गलती साबित हुई। भीड़ ने मेरे पिता की हत्या करने के बाद हमारा घर और आरा मिल जला दिया, जो हमारी आजीविका का एकमात्र साधन था।”
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