ट्रेन आने और जाने के दौरान सिर्फ हॉर्न नहीं देती, बल्कि कई और मौकों पर भी लोको पायलट हॉर्न बजाता है। अगर आपने गौर किया हो तो, हर हॉर्न अपने आप में अलग होता है और उसके मायने भी एक-दूसरे से अलग होते हैं। मतलब साफ है कि ट्रेन के हॉर्न सिर्फ ट्रैक क्लियर पाने के लिए नहीं बजाए जाते हैं। ट्रेन में कुल 11 किस्म के हॉर्न होते हैं, जो अलग-अलग मौकों पर बजाए जाते हैं।
हॉर्न की मदद से लोको पायलट और गार्ड एक-दूसरे के बीच तालमेल बैठाते हैं। मसलन ट्रेन एक बार छोटा हॉर्न तब देती है, जब वह धुलाई के लिए यार्ड में जाने वाली होती है। दो बार छोटे हॉर्न का मतलब होता है कि लोको पायलट गार्ड से ट्रेन बढ़ाने-चलाने के लिए जब सिग्नल मांगता है।
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तीन छोटे हॉर्न लोको पायलट तब देते हैं, जब ट्रेन नियंत्रण खो चुकी होती है। ऐसे में गार्ड फौरन उसकी सूचना पर अपने डिब्बे में लगे वैक्यूम ब्रेक दबाता है। वहीं, चार बार छोटे हॉर्न के मायने इंजन की गड़बड़ी से निकाले जाते हैं। ट्रेन जब आगे किसी कारणवश नहीं बढ़ सकती, तब इसका प्रयोग किया जाता है। छह छोटे हॉर्न बड़े खतरे की स्थिति में दिए जाते हैं।
लगातार लंबे हॉर्न अगर बजें, तो समझना चाहिए ट्रेन बगैर रुके स्टेशन पार कर रही है। रुक-रुक कर लंबे हॉर्न तब दिए जाते हैं, जब ट्रेन रेलवे फाटक से गुजरती है। ऐसा कर लोको पायलट आसपास के लोगों को ट्रेन आने के संबंध में सतर्क करता है।
एक लंबा और एक छोटा हॉर्न गार्ड को ट्रेन चलने से पहले इसलिए दिया जाता है, ताकि वह ब्रेक पाइप सिस्टम को चेक कर ले। अगर दो लंबे और दो छोटे हॉर्न दिए जाते हैं, तो उसका मतलब होता है कि ड्राइवर गार्ड को इंजन पर बुलाना चाह रहा है। ट्रेन की बोगियां जब कुछ हिस्सों में बंट जाती है, तब एक लंबा-एक छोटा, फिर एक लंबा-एक छोटा हॉर्न दिया जाता है। चेन पुलिंग के वक्त या वैक्यूम ब्रेक लगाए जाने के दौरान दो छोटे और एक लंबा हॉर्न दिया जाता है।