घरेलू हिंसा की खबरों से अखबारों के पन्ने लगभग रोजाना ही पटे रहते हैं, टीवी पर भी इसे लेकर तकरीबन रोज ही बहसें होती हैं, लेकिन हकीकत में एक बड़ी आबादी घरेलू हिंसा का जो मतलब जानती हैं, बात उससे भी कहीं इतर है। अमूमन पति या उसके द्वारा महिला के साथ मारपीट करने को घरेलू हिंसा से जोड़ा जाता है। लेकिन कानून के मुताबिक अगर महिला के ससुराल में उसे ताने भी मारे जाएं तो वह भी घरेलू हिंसा ही कहलाएगी। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2015 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर घंटे में 10 मामले घरेलू हिंसा के होते हैं। प्रिवेंशन ऑफ डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 के तहत घरेलू हिंसा 4 प्रकार की होती है। 1. शारीरिक हिंसा- पति या उसके घरवालों की तरफ से महिला को किसी भी तरह की शारीरिक यातना मिलना, दुख, दर्द, तकलीफ, या उसे लगे कि ससुराल में जिंदगी खतरे में हैं तो वह शारीरिक हिंसा की शिकार मानी जाएगी। डराया जाना या धमकाया जाना भी इसी में आता है।

2. यौन हिंसा- महिला के प्राइवेट पार्ट्स पर किसी तरह का हमला किया जाना यौन हिंसा तो है ही, इसके अलावा यौन प्रकृति का कोई भी आचरण जो महिला से दुर्व्यवहार करता है, जैसे कि उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना, बेइज्जत करना, उसकी गरिमा का उल्लंघन करना यौन हिंसा है। 3. भावनात्मक शोषण- ऐसे मामले आमतौर पर लड़के की जगह लड़की पैदा होने पर देखे गए है, जब बच्ची की मां को ससुराल वाले या पति उसे कोसते हैं या गाली-गलौच करते हैं। इस प्रकार की हिंसा में मजाक करना, व्यंग्य कसना या कोई भी ऐसी बात जो मानसिक तौर पर परेशान करती हैं, वह भावनात्मक शोषण में आती हैं।

4. आर्थिक दुरर्व्यहार- इस प्रकार की हिंसा बड़ी आम है, जिससे लगभग हर तबके की महिलाएं जूझती हैं। पति अगर रोजमर्रा के खर्च के लिए पैसे न दे, बच्चों के पालन पोषण के लिए भी पैसे नहीं दे और जिन चीजों पर महिला का हक हैं, वे भी उससे ले ली जाएं तो यह हिंसा है। महिला अगर नौकरी नहीं करती है और पैसों के लिए पति पर निर्भर है, और पति उसको पैसे देना बंद करदे, जिससे महिला को तकलीफ पहुंचे तो वह भी हिंसा होगी। लेकिन हर प्रकार की घरेलू हिंसा से निपटने के लिए भारत के कानून ने महिलाओं को ताकत भी दी है। हमारी अगली स्टोरी में जानें कि आखिर कैसे घरेलू हिंसा से छुटकारा पाया जा सकता है।