चुनाव में वोटिंग के दौरान आपकी अंगुली पर एक खास किस्म की स्याही लगाई जाती है। इस इंक को इलेक्टोरल इंक (Electoral Ink), वोटर्स इंक (Voters Ink), पोल इंक (Poll Ink) या चुनावी स्याही भी कहा जा सकता है। चुनावों में इसका इस्तेमाल फर्जीवाड़े (डबल वोटिंगः एक कैंडिडेट के लिए कई बार वोट डालने के संदर्भ में) को रोकने के लिए किया जाता है।
यह स्याही पानी के संपर्क में आने के बाद अपना रंग बदल लेती है। यह न तो आसानी से छूटती है और न ही साबुन या डिटरर्जेंट पाउडर इसे मिटाने में कारगर रहते हैं। आइए जानते हैं चुनावी स्याही के बारे में ऐसी ही रोचक बातें, जो शायद ही आप जानते होंगे:
वोटिंग से पहले इसे मतदान अफसर इसे मतदाता अंगुली पर लगाता है। आम तौर पर चुनावी स्याही वोटरों की तर्जनी अंगुली (Forefinger/Index Finger) पर लगाई जाती है।यह वॉयलेट कलर की होती है, जो कि नीले से अधिक बैगनी रंग के जैसा होता है।
इस इंक में सिल्वर नाइट्रेट शामिल होता है। रोशनी के संपर्क में आने के बाद यह त्वचा पर दाग छोड़ देता है। इसे धोकर आसानी से नहीं मिटाया जा सकता है। समय के साथ सेल्स (Cells) पुराने होने लगते हैं तो यह स्याही हल्की पड़ने लगती है और सेल्स व वक्त के साथ लुप्त हो जाती है।
बताया जाता है कि यह स्याही 72 घंटे तक आसानी से नहीं हटाई जा सकती है। पानी के संपर्क में आने के बाद धीमे-धीमे यह अपना रंग बदती है। असल में इसका रंग वॉयलेट होता है, जबकि कुछ समय बाद यह काली नजर आने लगती है।
यह इंक भारत में भी बनती है। कर्नाटक सरकार का उपक्रम है एमवीपीवीएल: मैसूर पेंट्स एंड वॉर्निश लिमिटेड। यह कंपनी लंबे समय से चुनावी स्याही बनाने के काम में है। जानकारी के मुताबिक, भारत में इस कंपनी के पास साल 1962 से एनडीआरसी की ओर से दिया गया खास लाइसेंस (इलेक्टोरल इंक के लिए) है। कंपनी इस स्याही को हर किसी को नहीं देती है। इसे सरकार या फिर चुनाव से संबंधित एजेंसियां ही लेती हैं।