भारतीय छात्र जल्द ही बीएससी, बीकॉम, बीटेक और यहां तक एमबीबीएस की पढ़ाई अपनी मातृभाषा में कर सकेंगे। मातृभाषा में उच्च शिक्षा की पढ़ाई नई शिक्षा नीति (एनईपी) का एक हिस्सा होने की संभावना है, जो भारतीय शिक्षा प्रणाली को बदलना चाहती है। आने वाले दिनो में इसे अंतिम रूप देने की भी संभावना है। द प्रिंट के मुताबिक केंद्रीय मानव संसाधन विकास (HRD) मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने खुद इसकी पुष्टि भी की है।
अभी तक स्कूल छात्रों को उनकी मातृभाषा में पढ़ने का विकल्प देता था, और मौजूदा समय में उच्च शिक्षा हासिल करने का विकल्प हिंदी और अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध है। सूत्रों के मुताबिक उच्च शिक्षा में क्षेत्रीय भाषा को शामिल करने का मुख्य उद्देश्य अन्य भाषाओं के छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करना है।
मामले में एचआरडी के दो वरिष्ठ अधिकारियों में से एक ने बताया, ‘एनईपी के माध्यम से उच्छ शिक्षा में पढ़ाई के माध्यम के रूप में मातृभाषा को शामिल किया जाएगा। बदलाव अपने अंतिम चरण में हैं और पॉलिसी लागू होते हैं उच्च शिक्षा प्रणाली में मातृभाषाओं को शामिल कर लिया जाएगा।’
अधिकारी ने आगे कहा कि इस पॉलिसी को लाने का मुख्य उद्देश्य उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GER) में सुधार करना और यह सुनिश्चित करना है कि छात्र बीच में अपनी पढ़ाई ना छोड़ें। जीईआर शिक्षा के एक निश्चित स्तर पर नामांकित लोगों का प्रतिशत है। ये उच्च शिक्षा के लिए होता है, जिनकी उम्र 18 से 23 साल के बीच है। मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा कराए ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन (AISHE) के मुताबिक देश में मौजूदा जीईआर 26.3 फीसदी है। HRD के मुताबिक साल 2015-16 में जीईआर में कक्षा 9-10 में 80 फीसदी और कक्षा 11-12 में 56.2 फीसदी था।
एक अधिकारी ने कहा, ‘हमने पाया है कि बहुत सारे छात्र महज इसलिए कॉलेज की पढ़ाई छोड़ देते हैं क्योंकि जिस माध्यम में उन्हें पढ़ाया जा रहा है उसमें वो सहज नहीं हैं। अगर उन्हें अपनी भाषा में पढ़ने में सुविधा होगी तो आगे की पढ़ाई भी करेंगे।’
एचआरडी के दूसरे अधिकारी के मुताबिक सरकार की योजना है कि साल 2023 तक जीईआर को 40 फीसदी तक पहुंचाया जाए, और इस लक्ष्य तक पहुंचने का एक तरीका छात्रों को उनकी भाषा में शिक्षा हासिल करने की सुविधा देकर खासा कारगार साबित हो सकता है।