आपने कई बार क्लोनिंग शब्द के बारे में अखबारों और इंटरनेट पर पढ़ा होगा। या फिर दोस्तों के साथ बातचीत के दौरान कभी न कभी इसके बारे में सुना होगा। क्लोनिंग को अगर आसान शब्दों में समझाया जाए तो इसे किसी चीज की डुप्लीकेट कॉपी कहते हैं। यानि एटीएम कार्ड या फिर चेक की डुप्लीकेट कॉपी। क्लोनिंग के जरिए अक्सर लोग ठगी के शिकार होते हैं।

कई ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जिसमें चेक क्लोनिंग के जरिए ग्राहकों के खाते से भारी भरकम रकम निकाल ली जाती है। खाताधारक के चेक का फोटो लेकर स्कैनर के जरिए उसका क्लोन तैयार किया जाता है और फिर फर्जी हस्ताक्षर करके खाते की रकम निकाल ली जाती है। इसमें ग्राहक के चेक की डुप्लीकेट कॉपी निकालकर बैंककर्मियों की मिलीभगत से नकली हस्ताक्षर कर ठगी की जाती है।

ठग एक फर्जी एप्लीकेशन बैंक में डालकर अकाउंट होल्डर का रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर खासे से हटवा देते हैं। ऐसा करने से खाताधारक के पास पैसा निकल जाने पर एसएमएस के जरिए जानकारी नहीं पहुंच पाती और उसे पता ही नहीं चलता कि उसके खाते से कब और कहां से कैश की निकासी हो गई। वहीं एक अन्य तरीका है जिसमें ठग चेक ड्रॉप बॉक्स से चेक निकालकर क्लोनिंग कर खाताधारकों से ठगी करते हैं।

सिम स्वैपिंग से पलभर में खाता होता है खाली: चेक क्लोनिंग की तरह सिम स्वैपिंग के जरिए भी लोगों को ठगी का शिकार बनाया जाता है। हैकर्स ऑरिजनल सिम की तरह एक डुप्लीकेट सिम का जुगाड़ करते हैं। इस तरह के फ्रॉड में हैकर्स किसी भी यूजर की जानकारियों को एकत्रित करते हैं और फिर एक डुप्लीकेट सिम बनवा लेते हैं। ऐसा करने के बाद  असली यूजर्स की कॉल, मैसेज और ओटीपी आदि गोपनीय जानकारी डुप्लीकेट सिम पर हैकर्स को रिसीव होती हैं। इतनी सारी जानकारी और ओटीपी प्राप्त होने के बाद बैंक खातों से ठगी की जाती है।