कोरोना के बीच महंगाई की मार अब माचिस की डिब्बी पर भी पड़ गई है। दरअसल, कच्चे माल की कीमत में वृद्धि के साथ उत्पादन लागत बढ़ने की वजह से एक दिसंबर से माचिस की डिब्बी की कीमत मौजूदा एक रुपये के बजाय अब दो रुपये होगी। संबंधित उद्योग संगठन ने रविवार को यह जानकारी दी। हालांकि, उपभोक्ताओं को अब एक डिब्बे में ज्यादा तीलियां मिलेंगी। पहले डिब्बे में 36 तीलियां होती थीं और अब इनकी संख्या 50 होगी।

नेशनल स्मॉल मैचबॉक्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के सचिव वी एस सेतुरतिनम ने कहा कि प्रस्तावित मूल्यवृद्धि 14 साल के अंतराल के बाद हो रही है। उन्होंने कहा कि कच्चे माल की कीमत में वृद्धि हुई है जिससे उत्पादन की लागत में उछाल आया है और इस वजह से “हमारे पास बिक्री (एमआरपी या अधिकतम खुदरा मूल्य) मूल्य बढ़ाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।”

सचिव ने कहा, “ईंधन की कीमतों में वृद्धि भी एक कारक है। इससे परिवहन लागत में वृद्धि हुई है।” उन्होंने कहा कि एक दिसंबर से माचिस के डिब्बी की कीमत मौजूदा एक रुपये से बढ़ाकर दो रुपये (एमआरपी) कर दी जाएगी।

माचिस से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप?: आज का दौर भले ही लाइटर से आगे का निकल चुका हो, पर अभी भी बड़े स्तर पर जलवा माचिस का ही कायम है। यह कहना गलत नहीं होगा। बहरहाल, माचिस की एक डिब्बी साल 1950 में पांच पैसे में आया करती थी। आगे 1994 में यह 50 पैसे की हुई, फिर वर्ष 2007 में इसे बढ़ाकर एक रुपए कर दिया गया था।

माचिस की एक डिब्बी में 50 तीलियां होती हैं, जबकि एक बंडल में 600 माचिस की डिब्बियां आती हैं। अधिकतर लोग सोचते होंगे कि माचिस लकड़ी और कुछ मसाले से बनती होगी, पर इसे बनाने में लगभग 14 आइटम्स की जरूरत पड़ती है।

अपने मुल्क में माचिस का सबसे बड़ा उद्योग दक्षिण भारतीय सूबे तमिलनाडु में है। वैसे, देश में अब कई कंपनियां इस काम में आ गई हैं, जहां पर हाथ से माचिस बनाए जाने के अलावा इसे मशीन से तैयार किया जाता है। बता दें कि माचिस की तीली के ऊपर फॉसफोरस का मसाला होता है, जो कि बेहद ज्वलनशील होता है।