4 जनवरी का दिन जब इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो याद आता है ताशकंद समझौता। ऐसा समझौता, जिसने भारत से जीती हुई बाज़ी छिन ली। वो समझौता, जिसने देश के सबसे विनम्र प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को भी छिन लिया। देश के दूसरे प्रधानमंत्री पर एक रिपोर्ट, जो रूबरू कराएगी लाल बहादुर शास्त्री के जीवन से जुड़े किस्सों से। साथ ही, बताएगी कि क्यों शास्त्री जी को देश का सबसे विनम्र प्रधानमंत्री माना जाता है।

पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे। उनकी मौत के बाद प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इसकी चर्चा हर जगह थी। पंडित नेहरू की मौत के 2 सप्ताह बाद देश के पूर्व गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बना दिया गया। जानकार कहते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री और पंडित जवाहर लाल नेहरू की विचारधारा एक जैसी ही थी, लेकिन दोनों के व्यक्तित्व में काफी अंतर था। कहा जाता है कि शास्त्री काफी धीमे बोलते थे और संकोची स्वभाव के थे। इसके अलावा उनके जीने का तरीका काफी साधारण था।

1. जब फ्लाइट छोड़ना मंजूर किया, लेकिन ट्रैफिक डिस्टर्ब करना नहीं : बात उस वक्त की है, जब नेहरू प्रधानमंत्री थे और लाल बहादुर शास्त्री गृहमंत्री का कार्यभार संभाल रहे थे। शास्त्री जी को कोलकाता से दिल्ली जाने के लिए फ्लाइट पकड़नी थी, लेकिन कोलकाता के ट्रैफिक को पार करके एयरपोर्ट पहुंचना और फ्लाइट पकड़ना असंभव था। ऐसे में पुलिस कमिश्नर ने तय किया कि शास्त्री जी की कार के आगे सायरन वाला एक वाहन चलेगा, जिससे रास्ता खाली कराया जा सके। शास्त्री जी ने इसके लिए साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा- ऐसा करने से कोलकाता के लोगों में संदेश जाएगा कि सड़कों पर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति जा रहा है। इस तरह वीवीआईपी कल्चर को शास्त्री जी ने अपने जीवन से हमेशा दूर ही रखा।

मैं थर्ड क्लास आदमी, मेरे लिए फर्स्ट क्लास इंतजाम क्यों? : 

लाल बहादुर शास्त्री

शास्त्री जी को एक राज्य का दौरा करने के लिए जाना था, लेकिन किसी वजह से उन्हें अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। जब राज्य के मुख्यमंत्री को पता चला कि शास्त्री जी नहीं आ रहे हैं तो उन्होंने दौरा रद्द न करने की अपील की। उन्होंने शास्त्री जी से कहा कि मैंने आपका स्वागत करने के लिए फर्स्ट क्लास इंतजाम करवाए हैं। शास्त्री जी ने जवाब दिया कि एक थर्ड क्लास व्यक्ति के लिए आपने फर्स्ट क्लास इंतजाम क्यों करवाए हैं?

पहले घरवालों पर प्रयोग, फिर देश पर किया लागू : 1965 में पाकिस्तान से जंग के दौरान भारत के पास अन्न की कमी हो रही थी। शास्त्री जी ने अपनी पत्नी से कहा कि आज घर पर खाना नहीं बनेगा। बच्चों और सिर्फ दूध और फल दिया जाए। अगले दिन जब शास्त्री जी को यकीन हो गया कि उनके बच्चे एक दिन भूखे रह सकते हैं तो अगली शाम उन्होंने देशवासियों से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील की। कई सप्ताह तक देश के रेस्त्रां और होटल इसका पालन करते रहे। उस दौरान देश को भुखमरी और अनाज की कमी से बचाने के लिए शास्त्री जी देश को जय जवान जय किसान का नारा दिया। वहीं, देश में अन्न की कमी को भी दूर कर दिया।

बेटे ने सरकारी कार इस्तेमाल की तो तनख्वाह से दिए पैसे :

लाल बहादुर शास्त्री

यह बात तब की है, जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री थे। एक दिन उनके बेटे ने उनकी सरकारी कार का इस्तेमाल कर लिया। शास्त्री जी को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने अपनी तनख्वाह में से कुछ पैसे भारत सरकार के खाते में जमा करा दिए। उनका मानना था कि सरकारी वाहन का इस्तेमाल निज़ी इस्तेमाल में किया गया था, इसलिए पैसा देना जरूरी है।

पद का फायदा उठा नहीं बनाई संपत्ति : लाल बहादुर शास्त्री का जीवन हद से ज्यादा साधारण था। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पास अपना घर तक नहीं था। उन्होंने बैंक से लोन लेकर कार खरीदी थी। वहीं, शास्त्री जी की मौत के बाद इस लोन को उनकी पत्नी ने पेंशन से मिलने वाले पैसों से चुकाया था। शास्त्री जी ने कभी भी अपने पद का गलत फायदा उठाकर संपत्ति बनाने जैसा काम नहीं किया।

इसलिए ताशकंद गए थे शास्त्री जी : अगस्त 1965 के पहले सप्ताह में पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ चलाया था। इसके तहत 30-40 हजार सैनिक बॉर्डर पर तैनात कर दिए गए थे, जिनका लक्ष्य कश्मीर पर कब्जा करना था। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री इस चाल को भांप गए, जिससे पाकिस्तान बुरी तरह बौखला गया और उसने भारत पर हमला कर दिया…..भारत ने मोर्चा संभाला और भारतीय सेना पाकिस्तान में काफी अंदर तक घुस गई। इस युद्ध में पाकिस्तान घुटने टेकने के लिए तैयार हो गया था, लेकिन चीन पर्दे के पीछे से उसका समर्थन करने लगा। वहीं, अमेरिका और रूस कभी नहीं चाहते थे कि एशिया में चीन का दबदबा बढ़े। ऐसे में वैश्विक स्तर पर इस लड़ाई को खत्म करने के प्रयास होने लगे। सोवियत संघ ने भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान को शांति वार्ता के लिए ताशकंद बुलाया। और 4 जनवरी 1966 को पीएम शास्त्री ताशकंद पहुंच गए थे।

जब शास्त्री से देशवासियों के साथ-साथ उनका परिवार भी नाराज हो गया :

लाल बहादुर शास्त्री

4 जनवरी को शास्त्री जी वार्ता के लिए ताशकंद पहुंचे। यहां समझौते में तय किया गया कि सीमा को लेकर जंग से पहले दोनों देशों की जो स्थिति थी, वही बनी रहेगी। इसके तहत दोनों देशों की सेनाओं अपनी-अपनी सीमाओं में लौटना पड़ेगा। पहले भारत इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हुआ।हालांकि लंबी बातचीत के बाद 10 जनवरी को शास्त्री जी मान गए कि पाकिस्तान से जीते गए सारे इलाके लौटा दिए जाएंगे, जबकि पाकिस्तान ने “नो वॉर क्लॉज” को भी नहीं माना। 10 जनवरी, 1966 को शास्त्री जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने समझौते पर हस्ताक्षर किए।देश के लोगों को लगा कि वे जीती हुई बाजी हार गए हैं। ऐसे में इस समझौते के कारण शास्त्री जी से सिर्फ देशवासी ही नहीं, बल्कि उनका अपना परिवार भी नाराज हो गया था।

इस दिन अपने घरवालों से शास्त्री जी ने आखिरी बार की थी बात : 10 जनवरी, 1966…वह दिन जब प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने अपने घरवालों से आखिरी बार बात की थी। वे तब ताशकंद में थे और पाकिस्तान ने समझौता करने के लिए उन्हें सोवियत संघ की मदद से बुलाया था। शास्त्री जी ने सबसे पहले बेटी से बात की। उन्होंने बेटी से पूछा कि समझौता कैसा लगा? जवाब था- अच्छा नहीं लगा। इसके बाद शास्त्री जी ने पत्नी ललिता से बात करने की इच्छा जाहिर की, लेकिन वे फोन नहीं आईं। जाहिर था वे भी पाकिस्तान के साथ हुए समझौते से नाराज थीं।

आज तक नहीं खुला शास्त्री जी की मौत का राज : भयानक युद्ध जीतकर दुनिया के सामने भारत की ताकत दिखाने वाले शास्त्री जी ताशकंद समझौते के लिए राजी क्यों हुए? क्या उन पर कोई अंतर्राष्ट्रीय दबाव था? इन सवालों का जवाब देने से पहले ही ताशकंद में शास्त्री जी का देहांत हो गया और उनकी मौत भी रहस्य बनकर रह गई।क्योंकि 11 जनवरी की सुबह देश के लिए एक दुखद खबर लेकर आई। 11 जनवरी को रात 1:30 बजे ताशकंद में ही शास्त्री जी की मौत हो गई थी। इसकी वजह हार्ट अटैक को बताया गया। उनका शव भारत लाया गया, जो नीला पड़ चुका था। ऐसे में आशंका हुई कि उन्हें जहर देकर मारा गया, लेकिन भारत और रूस दोनों ही देशों ने उनका पोस्टमॉर्टम नहीं कराया। इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख के मुताबिक, इस मामले में एक आरटीआई भी दाखिल की गई। सरकार ने जवाब दिया कि शास्त्री जी की मौत से संबंधित सिर्फ एक दस्तावेज उपलब्ध है, जिसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। इस तरह शास्त्री जी की मौत से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया।