स्वराज मंच के संस्थापक व किसान आंदोलन के दिग्गज नेताओं में से एक योगेंद्र यादव का कहना है कि चुनावों में उनकी कोई सक्रिय भागीदारी नहीं थी। उनका कहना है कि न हम बैट्समैन थे न बॉलर। योगी बैटिंग कर रहे थे तो सपा और बाकी विपक्ष बॉलिंग। हमने केवल पिच तैयार की और हेवी रोलर चलाया। हमारा काम लोगों तक सही चीजें पहुंचाना था। फिलहाल किसान आंदोलन के असर को कम करके नहीं आंका जा सकता।

दरअसल, न्यूज 24 पर डिबेट के दौरान एंकर मानक गुप्ता का कहना था कि यूपी चुनाव में बीजेपी की बड़ी जीत के बाद हर तरफ सवाल उठ रहे हैं कि आखिर किसान आंदोलन का क्या नतीजा निकला। पश्चिमी यूपी को किसानों का गढ़ माना जाता रहा लेकिन वहां पर बीजेपी विपक्षी दलों सपा-रालोद से बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब रही। क्या किसानों में गुस्सा नहीं था, या फिर विपक्षी दल इसे कैश करा पाने में नाकाम रहे।

योगेंद्र यादव का कहना था कि हमने पिच तैयार करके उस पर रोलर चलाया। एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि लखीमपुर खीरी में बीजेपी का अच्छा प्रदर्शन कोई भौचक करने वाली बात नहीं है। ये इलाका किसान आंदोलन का केंद्र कभी भी नहीं था। वहां केवल एक घटना हुई थी जो राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर ले गई। बाकी किसानों से कोई सरोकार नहीं था।

उनका कहना था कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश की गन्ना बेल्ट की 19 सीटों में से बीजेपी को केवल 6 सीटें मिलीं। किसान आंदोलन ने उत्तरप्रदेश में विपक्ष को खड़ा होने की हिम्मत दी, जिसकी वजह से बीजेपी का वोट शेयर कम हुआ। उनका कहना था कि पश्चिमी यूपी में दो बेल्ट हैं। एक आलू की दूसरी गन्ने की। उनका कहना था कि किसान आंदोलन का असर रहा है। 1 साल पहले यूपी में विपक्ष कही भी नहीं था। लेकिन चुनाव में किसान आंदोलन की वजह से चुनाव में मुकाबला देखने को मिला।

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ध्यान रहे कि लखनऊ: पश्चिमी यूपी को फतह करना ही भाजपा के लिए सबसे मुश्किल माना जा रहा था। इसकी वजह थी कि ये इलाका किसान आंदोलन का केंद्र था। समाजवादी पार्टी और आरएलडी का गठबंधन भी हुआ था। भाजपा नेताओं के विरोध की भी खबरें आ रही थीं, लेकिन चुनाव नतीजों में कुछ अलग ही तस्वीर नजर आई। न तो यहां किसान आंदोलन की धार दिखी और न ही सपा-आरएलडी गठबंधन का असर।

बीजेपी की जीत के बाद भाकियू का कहना है कि कि हम तो किसानों के मुद्दे उठा रहे थे। एमएसपी की गारंटी, गन्ना मूल्य भुगतान समेत कई मुद्दे थे, जिसके लिए आंदोलन किया गया। लोगों को लगा कि किसान बनने में फायदा नहीं है, हिंदू और मुसलमान बनने में फायदा है तो यह उनका निर्णय है। आधे रेट में फसल बेचकर वो खुश हैं तो इसमें हमारा क्या दोष है?