तस्लीमा नसरीन अक्सर अपने बयानों को लेकर सुर्ख़ियों में रहती है। अब तस्लीमा ने एक ट्वीट किया है जिसे बकरीद के मौके पर दी जाने वाली कुर्बानी से जोड़ कर देखा जा रहा है। बकरीद के मौके पर दी जाने वाली कुर्बानी को लेकर लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी है। कुछ लोगों ने कुर्बानी को रोकने की भी मांग की है। 

लेखिका तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट किया,” अगर मैं भगवान होती, तो मैं कभी भी इंसानों से मुझे खुश करने के लिए बेचारे जानवरों की बलि देने के लिए नहीं कहती।” हालांकि तस्लीमा ने अपने इस ट्वीट में किसी त्यौहार का जिक्र नहीं किया है लेकिन लोग इसे बकरीद से जोड़ कर देख रहे हैं और उनके इस ट्वीट पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।

अरिफुल इस्लाम नाम के यूजर ने लिखा कि ‘क्या आप इस्लाम को नहीं समझते, अल्लाह आपको समझ का उपहार दे।’ केतन भट्ट नाम के यूजर ने लिखा कि ‘संक्षेप में, आप कह रहे हैं कि आप अपने समुदाय को प्रभावित नहीं कर सकते क्योंकि आप नहीं चाहते। फिर भगवान को दोष दें।’ उपेन्द्रनाथ नाम के यूजर ने लिखा कि ‘भगवान लोगों को कभी नहीं बताते कि क्या करना है या क्या नहीं करना है। लोग जो कुछ भी करते हैं, वह उनकी अपनी बकवास है।’

तारिक सिद्धकी ने लिखा कि ‘भारत में लगभग 71% लोग मांसाहारी हैं! जबकि मुस्लिम जनसंख्या 16% है ! फिर ये 56 प्रतिशत लोग तो नॉन मुस्लिम हैं, जो मांसाहारी हैं। साल भर मांस का सेवन करते हैं लेकिन जीव हत्या का विलाप हर साल ईद पर ही होता है!’ शरद सोनी नाम के यूजर ने लिखा कि ‘भगवान भी ऐसा नहीं चाहते लेकिन मैं इस मुद्दे पर अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकता क्योंकि मैं अपने जीवन और अपने परिवार से प्यार करता हूं। आप समझ सकते हैं कि मैं क्या कहना चाह रहा हूं।’

एक यूजर ने लिखा कि ‘मैं नॉन वेज खाते समय जानवरों के अधिकारों की बात नहीं करता। मछली हो या चिकन या मटन। भगवान के लिए जानवरों की बलि देना और उन्हें खाने के लिए दुकान से खरीदना एक सामान है। अब सवाल यह है कि क्या आप मांसाहारी हैं?’ जश्मेंद्र सिंह ने लिखा कि ‘किस भगवान ने बेचारे जानवरों के जीवन का बलिदान करने के लिए कहा है?’

बता दें कि ईद अल-अधा, धू अल-हिज्जा के 10 वें दिन और इस्लामी कैलेंडर के 12वें महीने में मनाया जाता है। ईद-उल फित्र के बाद मुसलमानों का ये दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है। इस दिन कुर्बानी देने की प्रथा भी है, इसको लेकर कई बार विवाद छिड़ चुका है।