देश में इन दिनों बीजेपी से निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा और ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर का मुद्दा छाया हुआ है। इन दोनों पर चल रहे केस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है। इसी विषय पर बात कर रहे इंडिया टुडे न्यूज़ चैनल के एंकर शिव अरुर ने इन दोनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी के बीच अंतर बताया। जिस पर लोग कई तरह के रिएक्शन देने लगे।

एंकर ने लाइव शो में कही यह बात

लाइव शो के दौरान एंकर ने मोहम्मद जुबैर के रिहा होने की जानकारी देते हुए कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट का बहुत सम्मान करते हैं लेकिन हम दिखाना चाहते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा और मोहम्मद ज़ुबैर पर क्या कहा है। उन्होंने स्लाइड के जरिए दिखाया, ‘ सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा पर कहा है कि वह इस तरह का बयान क्यों दे रही हैं और ज़ुबैर पर कहा गया कि उन्हें ट्वीट करने से नहीं रोका जा सकता।’ इस तरह के उन्होंने कई अंतर बताएं।

कांग्रेस नेता ने साधा निशाना

भारतीय यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने इस वीडियो को शेयर कर लिखा कि मैंने पहली बार भारतीय जुडिशरी को टारगेट करते हुए कोई न्यूज़ रिपोर्ट देखी है। यह बहुत शर्मनाक और घिनौना है। अरुण पुरी जी ऐसी क्या मजबूरी थी? केरल प्रदेश कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से वीडियो पर लिखा गया, ‘पहले आप अपना होमवर्क करके आइए। दोनों ही केस अलग हैं।’ महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस ने लिखा – इन दोनों की तुलना करके आपने अच्छा किया है लेकिन ज़ुबैर तो 24 दिन पुलिस कस्टडी में रहे हैं और नूपुर शर्मा को दिल्ली पुलिस और सरकार का संरक्षण मिला हुआ है। न्याय कहां है?

आम लोगों के रिएक्शन

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो पर कुछ लोग एंकर का समर्थन कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोगों ने उन पर कटाक्ष किया है। पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने इस वीडियो पर कमेंट किया – मेरी भावनाओं को शब्द देने के लिए धन्यवाद। @thekorahabraham नाम के एक यूजर ने कमेंट किया कि आप यह बोल रहे हैं कि जुबैर और नूपुर में किस ने जेल में कितना दिन बिताया है। इसके साथ ही पुलिस इन दोनों मामलों को कैसे ही हैंडल रही है। अनुभव त्रिपाठी नाम के ट्विटर यूजर ने कमेंट किया कि हमें ऐसे ही लोगों की जरूरत है, जो हर किसी से आंखों में आंख डालकर सवाल कर सकें।

ज़ुबैर को मिली जमानत

सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर को बुधवार यानी 20 जुलाई को सभी मामलों में अंतरिम जमानत दे दी है। इस दौरान अदालत ने कहा कि उन्हें अंतिम समय तक हिरासत में बनाए रखना उचित नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने उत्तर प्रदेश में दर्ज सभी एफआईआर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल में ट्रांसफर करने का आदेश दिया है और यूपी सरकार द्वारा बनाई गई एसआईटी को भी भंग कर दिया।