11 फरवरी 1968। जनसंघ के अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय लखनऊ से पटना जा रहे थे। उस सर्द सुबह 2 बजकर 10 मिनट पर उनकी ट्रेन बनारस से 18 किलोमीटर दूर मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर पहुंची। स्टॉपेज के बाद ट्रेन दोबारा चली, लेकिन दीनदयाल उपाध्याय अपनी बोगी में नहीं थे। दस मिनट बाद प्लेटफॉर्म से करीब सौ मीटर दूर पटरी के किनारे एक शव मिला। जिसका टखना टूटा था, सिर पर चोट लगी थी, दाईं बांह पर खून का निशान था और मुट्ठी में 5 रुपये का नोट। तलाशी में जेब से और 26 रुपये और एक घड़ी मिली। यह शव किसी साधारण व्यक्ति का नहीं बल्कि दीनदयाल उपाध्याय का था। वह करीब तीन महीने पहले ही (दिसंबर 1967) में जनसंघ के अध्यक्ष बने थे।
फौरन रवाना हो गए थे वाजपेयी: सुबह होते-होते पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की खबर दिल्ली तक पहुंच गई। उस वक्त जनसंघ के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी और बलराज मधोक एक संसदीय बैठक में हिस्सा ले रहे थे। दोनों तुरंत एयरफोर्स के विमान से बनारस के लिए रवाना हो गए। संघ के तमाम नेता भी मौके पर पहुंच गए। उस वक्त उत्तर प्रदेश सरकार के उप मुख्यंत्री भी जनसंघ के हुआ करते थे, वे भी मौके पर पहुंचे। जांच के लिए लखनऊ से एक वरिष्ठ अफसर को भी रवाना किया।
क्या मौके पर नहीं पहुंचे थे वाजपेयी? बलराज मधोक ने आरोप लगाया था कि वे और अटल बिहारी वाजपेयी एक साथ बनारस पहुंचे, लेकिन वहां पहुंचते ही वाजपेयी गायब हो गए। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक विनय सीतापति अपनी किताब ‘जुगलबंदी: भाजपा मोदी युग से पहले’ में लिखते हैं कि, ‘मधोक ने कहा कि मैं बनारस पहुंचते ही सीधे मुगलसराय रवाना हुआ, लेकिन वाजपेयी ‘गायब’ हो गए।’ आपको बता दें कि मधोक और वाजपेयी के बीच तमाम मसलों पर असहमति जगजागहिर थी।
‘मेरे बिना पोस्टमार्ट मत करवाना’: दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की खबर जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक के द्वितीय सरसंघचालक रहे माधवराव सदाशिव गोलवलकर तक पहुंची तो वे उस समय मुगलसराय के करीब 160 किलोमीटर दूर इलाहाबाद में एक शिविर का संचालन कर रहे थे। सीतापति अपनी किताब में संघ के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से लिखते हैं कि, ‘गुरुजी (गोलवलकर) ने मुझे फौरन कार से मुगलसराय रवाना किया और कहा कि मैं भी शिविर खत्म कर पहुंच रहा हूं। मेरे आए बगैर शव का पोस्टमार्टम मत करवाना’।
मामूली चोरों ने की थी हत्या: दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की चांज पहले स्थानीय पुलिस ने की। फिर मामला सीबीआई को सौंपा गया और एक न्यायिक आयोग ने भी इसकी जांच की। सबने यही कहा कि उनकी हत्या मामूली चोरों ने लूटपाट के इरादे से की थी। इसमें किसी तरह की कोई साजिश नहीं थी।
एक दावे से गहरा गया था राज: हालांकि बलराज मधोक ने इस थ्योरी को नहीं माना था। उन्होंने दावा किया था कि जब वे मुगलसराय स्टेशन पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें दीनदयाल उपाध्याय की बनियान, कुर्ता और स्वेटर आदि दिखाया था। उस पर खून का नामो-निशान तक नहीं था। उसी शाम पोस्टमार्टम भी हुआ था। मधोक का दावा था कि उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय की गर्दन के ठीक पीछे खून का एक धब्बा देखा था…ऐसा जहरीली सुई लगाते वक्त सुराख से हुआ होगा।
तर्क से सहमत नहीं थे वाजपेयी: बलराज मधोक के इस तर्क से अटल बिहारी वाजपेयी सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा था कि, ‘उपाध्याय जी हमेशा लड़ने के लिए तैयार रहते थे, संभव है कि उनका ट्रेन में किसी से झगड़ा हुआ हो और बात बढ़ गई हो…इसे हत्या न कहें।’