मशहूर लेखक चेतन भगत ने असम के राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की कट ऑफ डेट बदलने का सुझाव दिया है। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा है, “असम में एनआरसी की आवश्यकता थी लेकिन उसके लिए साल 1985 में साल 1971 का जो क्राइटेरिया (मानदंड) तय किया गया है वह उपयुक्त नहीं है। चूंकि हमलोग 2018 में जी रहे हैं, इसलिए 47 साल पुरानी नागरिकता का परीक्षण जरूरी नहीं लगता। इसे बदलकर 2004 किया जा सकता है, जैसा कि 1985 में 14 साल पीछे की कट ऑफ डेट (1971) तय की गई थी। अगर ऐसा नहीं होता है तो असम में समस्याएं और बढ़ जाएंगी।” चेतन भगत के इस सुझाव पर लोगों ने कई तरह की प्रतिक्रियाएं दी हैं। एक यूजर ने लिखा है, “मिस्टर भगत, पहले तो आप उस बात पर रिसर्च करें कि यह मुद्दा आखिर क्यों उभरा? आसाम के लोग अपनी ही जमीन पर विदेशियों की तरह रह रहे हैं। हमारी संस्कृति, भाषा, पहचान सभी तहस-नहस हो गया है। अगर आपको अवैध घुसपैठियों की इतनी ही चिंता है तो प्लीज उन्हें अपने घर ले जाएं लेकिन असम में वे लोग न रहें।”

एक अन्य यूजर ने लिखा है, “बेहतर होता कि आप इस मसले पर कुछ ना बोलते क्योंकि जब आप इस बारे में जानमते ही नहीं तो बेकार की घुसपैठ क्यों कर रहे हैं? किसी ने आपसे आपकी राय नहीं मांगी है। जितने भी शरणार्थी म्यांमार और बांग्लादेश से आए हैं, उन्हें जबरन वापस भेजा जाय।” दूसरे यूजर ने लिखा है, “अरे भाई!! सीधा-सीधा बोल दो कि सभी को नागरिकता दे दी जाये!! रुको एक औऱ काम करते है!! कट ऑफ़ डेट साल 2100 रख देते हैं!! तब तक आराम से घुसपैठ कराते रहो!! नौटंकी!!”

मृणाल तालुकदार नाम के यूजर ने लिखा है, “अब से दो सप्ताह बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ यह तय करेगी कि असम में विदेशियों की पहचान की कट ऑफ 1971 रखी जाय या 1951 का वर्ष। अगर कोर्ट ने साल 1951 को आधार वर्ष तय कर दिया तो आप क्या करेंगे? 40 लाख का आंकड़ा तो 1971 पर आधारित है।” एक अन्य यूजर ने लिखा है कि सभी जगह ऐसा ही है। झारकंड में तो 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नागरिक माना जा रहा है।

https://twitter.com/konpai_099/status/1024308544944799744

https://twitter.com/MyselfAsit/status/1024306820477644800

https://twitter.com/mrinalt1/status/1024314054100172801