एलन मस्क के मालिकाना हक वाली सोशल मीडिया कंपनी X Corp (Twitter) ने कुछ समय पहले कर्नाटक हाईकोर्ट में ‘सहयोग पोर्टल’ और कंटेंट ब्लॉकिंग के आदेशों को चुनौती दी थी। अब भारत सरकार ने कोर्ट में अपना पक्ष एक हलफनामे के जरिए पेश किया है। सरकार ने इस हलफनामे में सोशल मीडिया और इंटरनेट की बढ़ती ताकत के मद्देनज़र कुछ अहम तर्क दिए हैं।
सरकार के प्रमुख तर्क:
-इंटरनेट की ताकत पहले से कई गुना ज्यादा हो गई है, जिससे सूचनाएं तेजी से और बड़े स्तर पर फैलती हैं। पुराने कानून अब इस पर नियंत्रण के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
-सोशल मीडिया अब केवल ‘माध्यम’ नहीं, बल्कि खुद कंटेंट को प्रमोट करता है, उसकी रैंकिंग तय करता है और समाज पर सीधा असर डालता है।
-सेफ हार्बर कानून (Safe Harbour under Section 79 IT Act) कोई अधिकार नहीं बल्कि एक सुविधा है। अगर कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म गलत कंटेंट को हटाने में लापरवाही करता है, तो यह सुरक्षा छीनी जा सकती है।
Airtel दे रहा है ₹17,000 का AI सब्सक्रिप्शन बिलकुल फ्री! जानिए कौन-कौन ले सकता है फायदा
सेक्शन 79 और 69A अलग-अलग प्रावधान हैं —
-सेक्शन 79: प्लेटफॉर्म की जिम्मेदारियों और ‘सेफ हार्बर’ से जुड़ा है
-सेक्शन 69A: सरकार को अवैध सामग्री ब्लॉक करने की शक्ति देता है
-Rule 3(1)(d) का मकसद किसी प्रकार की सेंसरशिप लागू करना नहीं है, बल्कि सेफ हार्बर की शर्तों को स्पष्ट करना है।
-भारत में इंटरनेट यूज़र्स की संख्या 97 करोड़ के पार पहुंच चुकी है, जिससे साइबर अपराध भी तेजी से बढ़े हैं।
-साल 2024 में अब तक 22 लाख से अधिक साइबर अपराधों की शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं, जो पिछले वर्षों की तुलना में कई गुना ज्यादा है।
-सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अपने एल्गोरिदम के ज़रिए भड़काऊ या विवादित सामग्री को बढ़ावा देते हैं, जिससे समाज में नफरत, झूठ और अफवाहें तेजी से फैलती हैं।
-ये एल्गोरिदम पारदर्शी नहीं हैं, और कोई भी कंटेंट कुछ ही मिनटों में वायरल किया जा सकता है।
-नफरत फैलाने वाली सामग्री के कारण सोशल मीडिया के ज़रिए दंगे या कानून-व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
-सरकार ने ‘SAHYOG’ पोर्टल की शुरुआत की है ताकि सोशल मीडिया कंपनियों से रियल-टाइम संवाद हो और अवैध कंटेंट तुरंत हटाया जा सके।
-सरकार का कहना है कि X Corp जैसी विदेशी कंपनियां भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का दावा नहीं कर सकतीं, जैसे अनुच्छेद 14, 19 और 21।
-सुप्रीम कोर्ट भी मान चुका है कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग लोकतंत्र को नुकसान पहुँचा सकता है, इसलिए इस पर सख्त नियंत्रण ज़रूरी है।
-अमेरिकी अदालतों के फैसले भारत में लागू नहीं हो सकते, क्योंकि भारतीय संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘उचित प्रतिबंध’ की अनुमति देता है।
-सरकार का तर्क है कि सोशल मीडिया का प्रभाव पारंपरिक मीडिया से अधिक है, इसलिए इनके लिए अलग और कड़े नियमों की आवश्यकता है।
-डिजिटल युग में ‘मौलिक अधिकार’ और ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ के बीच संतुलन बनाना बेहद आवश्यक है।
मामला क्या है?
X Corp ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि केंद्र सरकार का ‘सहयोग पोर्टल’ एक समानांतर और गैरकानूनी कंटेंट ब्लॉकिंग सिस्टम है। कंपनी ने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले, श्रेय सिंघल बनाम भारत सरकार (2015) का उल्लंघन करती है।
सहयोग पोर्टल अवैध तरीका है कंटेंट ब्लॉक करने का
X ने कोर्ट से कहा कि केंद्र सरकार ने ‘सहयोग’ पोर्टल के माध्यम से जो प्रक्रिया शुरू की है, वह कानून में निर्धारित प्रक्रिया से इतर एक गैरकानूनी और समानांतर प्रणाली बन गई है। इससे संविधान द्वारा दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है।
कर्मचारी की तैनाती से भी इनकार
X ने अदालत से यह भी मांग की है कि ‘सहयोग’ पोर्टल पर किसी कर्मचारी की नियुक्ति न करने के लिए उसे कानूनी सुरक्षा प्रदान की जाए। कंपनी का कहना है कि इस पोर्टल पर कर्मचारी नियुक्त करना उसकी नीतियों के खिलाफ है और इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकारी नियंत्रण का रास्ता खुलता है।
क्या है ‘सहयोग’ पोर्टल?
‘सहयोग’ पोर्टल भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) द्वारा बनाया गया है। इसका मकसद आईटी अधिनियम की धारा 79(3)(b) के तहत अवैध ऑनलाइन कंटेंट की शिकायतों के निपटारे को “आसान” करना है। सरकार का कहना है कि यह पोर्टल कानून लागू करने वाली एजेंसियों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के बीच तेज और पारदर्शी संवाद सुनिश्चित करता है।