NISAR Satellite Launch Time: NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar यानी NISAR, आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च करने के लिए पूरी तरह तैयार है। यह सैटेलाइट भारत के सबसे बड़े रॉकेट – GSLV Mk II पर रखा जाएगा, जो एक एक्सपेंडेबल नॉन-रीयूजेबल तीन-स्टेज वाला लॉन्च व्हीकल है जिसकी ऊंचाई 52 मीटर या 170 फीट है।
निसार उपग्रह मानव कौशल और दो अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच एक दशक से अधिक समय तक जारी रहे तकनीकी सहयोग के आदान-प्रदान का परिणाम है। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से पृथ्वी का अवलोकन करने वाले उपग्रह ‘निसार’ को GSLV Mk II रॉकेट के माध्यम से बुधवार को शाम पांच बजकर 40 मिनट पर अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा।
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NISAR लॉन्च को लाइव कैसे देखें?
2.392 किलोग्राम वजनी, पृथ्वी अवलोकन को जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क II, या संक्षेप में जीएसएलवी एमके II रॉकेट पर लॉन्च किया जाएगा, जिसका प्रक्षेपण बुधवार, 30 जुलाई को शाम 5:40 बजे IST पर निर्धारित है। आप नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल करके NISAR का लाइव लॉन्च देख सकते हैं, या लॉन्च पर नज़र रखने के लिए आप नासा की वेबसाइट पर जा सकते हैं।
NISAR क्या है और यह क्या काम करेगा?
‘निसार’ का वजन 2,393 किलोग्राम है। जीएसएलवी-एस16 रॉकेट की लंबाई 51.7 मीटर है। यह चेन्नई से लगभग 135 किलोमीटर पूर्व में स्थित दूसरे लॉन्च पैड से प्रक्षेपित होगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बताया कि प्रक्षेपण के लिए उल्टी गिनती 29 जुलाई को अपराह्न दो बजकर 10 मिनट पर शुरू हो गई थी।
ISRO ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक ‘पोस्ट’ में कहा, “आज जीएसएलवी-एस16 /निसार का प्रक्षेपण होगा। जीएसएलवी-एस16 और निसार के प्रक्षेपण का दिन आ गया है। जीएसएलवी-एस16 प्रक्षेपण स्थल पर तैयार खड़ा है। आज प्रक्षेपण होगा।”
इसरो और ‘नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (नासा) के बीच यह साझेदारी अपनी तरह की पहली साझेदारी है। साथ ही ऐसा पहली बार हो रहा है जब जीएसएलवी रॉकेट के जरिए उपग्रह को सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा में भेजा जा रहा है जबकि सामान्यतः ऐसी कक्षाओं में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (पीएसएलवी) के जरिए उपग्रह भेजे जाते हैं।
यह उपग्रह किसी भी मौसम में और दिन-रात 24 घंटे पृथ्वी की तस्वीरें ले सकता है। यह भूस्खलन का पता लगाने, आपदा प्रबंधन में मदद करने और जलवायु परिवर्तन की निगरानी करने में भी सक्षम है। उपग्रह से हिमालय और अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में वनों में होने वाले बदलाव, पर्वतों की स्थिति या स्थान में बदलाव और हिमनद की गतिविधियों सहित मौसमी परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकेगा।