विज्ञान ने तार्किक ढंग से सोचने की दृष्टि विकसित की, तो हमने तमाम प्राचीन अवधारणाओं, मिथकीय-पौराणिक घटनाओं को अवैज्ञानिक कह कर खारिज कर दिया। मगर अब विज्ञान ने उन्हीं अवधारणाओं की सत्यता जांचने और उन्हें नए आविष्कारों के रूप में पेश करने के लिए जमीन-आसमान एक कर दिया है। वेदांत ने जिस व्यष्टि और समष्टि की समरूपता की स्थापना की थी, उसे अब विज्ञान ने भी सत्यापित कर दिया है।
मनुष्य की चेतना को समझने के क्रम में सोचने की ताकत का उपयोग अब कंप्यूटर प्रणाली में किया जाने लगा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और कण- भौतिकी ने विज्ञान को उन तमाम पौराणिक अवधारणाओं को नए ढंग से रूपायित करने की शक्ति दी है, जिससे अत्याधुनिक उपकरणों में इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारे सोचने मात्र से यंत्र संचालित होने लगते हैं। विज्ञान की नई उपलब्धियों पर बात कर रहे हैं प्रमोद भार्गव।
अचरज होगा जब आप सोचें कि कार की खिड़कियां खोलनी हैं और बस सोचते ही खिड़कियां खुल भी जाएं या फिर बंद हो जाएं। जिस गंतव्य पर आप जाना चाहते हैं, कार उसी दिशा और उसी मंजिल की ओर चलने लगे। आप जो सुनना या देखना चाहते हैं, वही रेडियो या टीवी पर शुरू हो जाए। बिना कोई बटन दबाए मोबाइल से मनचाहा फोन लग जाए।
अभी तक किस्सों, कहानियों में हमने इन अचरजों को पढ़ा या फिर फिल्मों में देखा है। हमारे प्राचीन ग्रंथों रामायण, महाभारत और पुराण कथाओं में भी हमने विमानों को इच्छानुसार चलते देखा है। मगर मिथकीय गल्प समझी जाने वाली इन आश्चर्यजनक कथाओं को अब यूरोप की सबसे बड़ी कार कंपनी मर्सिडीज ने हकीकत में बदल दिया है। भविष्य में सोच के विज्ञान से चलने वाली ये सभी सुविधाएं मर्सिडीज कारों में मिलने जा रही हैं।
मसलन, इन कारों के सारे क्रियाकलाप सिर्फ सोच से नियंत्रित होंगे। उपयोगकर्ता को ‘वियरेबल ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस‘ पहनना जरूरी होगा और कार चलाते वक्त डिजिटल डैशबोर्ड में लगे सेंसर पर फोकस करना होगा। कार की कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक चालक की दिमागी तरंगों का विश्लेषण कर पता कर लेगी कि आपकी मंशा क्या है।
बस इसे पकड़ते ही डैशबोर्ड को कमांड मिल जाएगी और कार पहले से ही फीड किए रास्ते पर चल पड़ेगी। एक बार चार्ज की गई बैटरी से यह कार चार सौ किमी का सफर तय करेगी। इन कारों में सौर ऊर्जा से चार्ज की सुविधा भी दी जाएगी। मनोरंजन के लिए कार में फिल्म और वीडियो गेम देखने की सुविधा भी रहेगी। इसमें दृष्यों की प्रस्तुति के लिए ऐसी स्क्रीन रहेगी, जो डैशबोर्ड पैनल से मनचाहे आकार में फैलाई जा सके।
इसमें स्टीयरिंग की जगह चालक की सीट के दोनों ओर एअरकान अर्थात वातानुकूलन प्रणाली लगाई गई है, जो सीधे वातावरण से खींची गई हवा को शुद्ध कर कार में भेजेगी। साफ है, कार की ये विशेषताएं ऊर्जा, ध्वनि और तरंगों के उसी प्रभाव से संचालित होंगी, जो विशेषताएं हमारे प्राचीन ग्रंथों में पुष्पक विमान और यातायात के अन्य साधनों तथा उपकरणों के प्रयोग में दर्शाई गई हैं। ऋगवेद में तो रथ के भी वायु और पानी से चलने के वर्णन हैं।
मस्तिष्क संगणक अंतरपट
ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआइ) यानी ‘मस्तिष्क संगणक अंतरपट’ एक ऐसी प्रणाली है, जो दो विषय क्षेत्रों के बिंदुओं में समन्वय स्थापित करती है। यानी सूचना प्रदाता (कंप्यूटर प्रोग्राम और सूचना प्रयोक्ता (कंप्यूटर रिसीवर) का संबंध अंतरपट (इंटरफेस) पर परस्पर जुड़ जाता है। नतीजतन इस प्रणाली के माध्यम से संचार का सीधा मार्ग खुल जाता है।
इस बीसीआइ पद्धति का उपयोग मानव संज्ञानात्मक या संवेदी मोटरकार्यों पर तेजी से हो रहा है। हालांकि इसके पहले इस पद्धति की शुरुआत चूहे, बंदर और सुअरों में सफलतापूर्वक की जा चुकी है। बंदरों ने स्क्रीन पर कंप्यूटर कर्सर को नेविगेट किया और रोबोटिक हथियारों को केवल कार्य के बारे में सोचकर और दृश्य माध्यम से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए काम करने के सरल आदेश दिए हैं।
2008 में पीट्सबर्ग मेडिकल सेंटर विश्वविद्यालय में एक बंदर को सोचकर रोबोटिक भुजा का संचालन करने वाली तस्वीरें कई विज्ञान पत्रिकाओं में छप चुकी हैं। इस सिलसिले में भेड़ों का भी उपयोग किया जा चुका है। 2021 में एलन मस्क ने दावा किया कि उन्होंने एक न्यूरालिंक उपकरण का उपयोग करके एक बंदर को वीडियो गेम खेलने में सक्षम बना दिया है।
मानव-मस्तिष्क एक जैविक कंप्यूटर
कार इमेजरी (वाहन-छवि) आधारित बीसीआइ एक ऐसी पद्धति है, जो बाहरी मशीन और मस्तिष्क के बीच उत्पन्न होने वाली सोच या संवेदना को तरंग और ध्वनि के माध्यम से परस्पर जोड़ देती है। दरअसल, मानव-मस्तिष्क एक जैविक कंप्यूटर की भांति है। इस जैविक संगणक की पृष्ठभूमि में अभिकलन (प्रोग्रामिंग) है, जो दिमाग के भीतर उपलब्ध एक कणीय (क्वांटम) कंप्यूटर के माध्यम से संचालित होती है।
इसी आधार पर नासा क्वांटम कंप्यूटर विकसित कर रहा है। चेतना दिमाग की कोशिकाओं में प्रोटीन से बनी सूक्ष्म नलिकाओं (माइक्रो ट्यूबुल्स) में ऊर्जा के सूक्ष्म स्रोत अणुओं और उप-अणुओं के रूप में रहती है। विज्ञान की नवीनतम अवधारणाओं के अनुसार यह जीव-जगत पदार्थ तथा ऊर्जा के समन्वय से अस्तित्व में आया है। इन्हीं दो तत्त्वों को सनातन भारतीय दर्शन में शिव और शक्ति कहा गया है। ऊर्जा का ही शुद्धतम रूप चेतना है।
यही चेतना जीवन का निर्माण करती है। अकेला पदार्थ निष्क्रिय, नीरस और जड़ है। बावजूद ऊर्जा कणों से निर्मित इस जड़ पदार्थ में भी हलचल है। भारतीय दर्शन में इसी हलचल को चेतना या सोच माना गया है, इसीलिए वह पदार्थ को भी चेतनामयी मानता है। कार या अन्य किसी वाहन की यांत्रिक प्रणाली पदार्थ की इसी सोच को ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस के माध्यम से मानव मस्तिष्क की सोच से जोड़ देती है। भारतीय मनीषियों ने इस सोच पर हजारों साल पहले काम शुरू कर दिया था।
चेतना को पढ़ना है मुश्किल
चेतना, ऊर्जा की विवेकपूर्ण संपूर्ण अभिव्यक्ति है, किंतु यह विज्ञान के लिए अबूझ पहेली बनी हुई है। कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस तो विज्ञान ने आविष्कृत कर ली है, लेकिन चेतना को पढ़ पाना अब भी मुश्किल बना हुआ है। चुनांचे चेतना को समझा या अनुभव अवश्य किया जा सकता है, लेकिन इसका रचा जाना लगभग असंभव है।
भारतीय योगी-मनीषी इसका अभ्यास सदियों से करते आए हैं। योग वाशिष्ठ और पतंजलि योग में इस चेतना को अनुभव करने के अनेक उदाहरण हैं। बिहार के मुंगेर में स्थित दुनिया के पहले योग विश्वविद्यालय में इस ऊर्जा के विविध आयामों का पढ़ने की कोशिश कुछ वर्षों से की जा रही है। इसमें दुनिया के पचास विद्यालयों और कण-भौतिकी (क्वांटम फिजिक्स) पर शोधरत अनेक वैज्ञानिक अपनी प्रज्ञा लगा रहे हैं।
इसका विषय है, ‘टेलीपोर्टेशन आफ क्वांटम एनर्जी’, यानी मानसिक कण-ऊर्जा का परिचालन और संप्रेषण। इस शोध केंद्र में भारतीय योग और ध्यान परंपरा के ‘नाद’ पर भी अनुसंधान हो रहा है। इसी नाद रूपी प्राण-ऊर्जा, यानी चेतना के मूल आधार तक पहुंचने का मार्ग खोजा जा रहा है।
ऊर्जा को मापने की मशीन
योग विश्वविद्यालय के आचार्य निरंजनानंद सरस्वती एक तरह से आधुनिक युग के वैज्ञानिक संत हैं। उन्होंने महत्त्वपूर्ण मंत्रों के मानसिक और बाह्य उच्चारण से उत्पन्न ऊर्जा को क्वांटम मशीन के जरिए मापने के उपाय किए हैं। दरअसल, मानसिक संवाद, नाद, संवेदना और दूरानुभूति (टेलीपैथी) विद्याएं भारतीय योग विज्ञान का विषय रही हैं।
इसीलिए मानसिक ऊर्जा के परिचालन और संप्रेषण को वैज्ञानिक आधार पर समझने का प्रयास हो रहा है। निरंजनानंद को उम्मीद है कि अगर यह आधार समझ आ जाता है तो कुछ सालों में एक ऐसा मोबाइल फोन अस्तित्व में आ सकता है, जिसमें नंबर डायल करने, बोलने और कान में लगाकर सुनने की जरूरत नहीं रह जाएगी। मानसिक सोच और ऊर्जा के जरिए ही तीनों कार्य संपन्न हो जाएंगे। एलन मस्क भी इसी तरह का मोबाइल विकसित करने की कोशिश में लगे हैं।
निरंजनानंद का मानना है कि जहां ऊर्जा है, वहां गति और कंपन है। कंपन ही ध्वनि का मूल स्रोत है। कुछ ध्वनियां हैं, जो कानों के रंध्रों से नीचे हैं, तो कुछ उनके ऊपर। ये कंपन भौतिक या प्राणवान शरीर तक ही सीमित नहीं रहते हैं, ये मन, भाव और प्रज्ञा-जगत में विद्यमान रहते हैं। इसलिए जब हम चिंतन करते हैं तो मन के अंदर तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जिन्हें कंपन और ध्वनियां उत्पन्न करती हैं।
भारतीय योग विज्ञान में इसे नाद कहा गया है, यानी चेतना का प्रवाह! इसलिए कह सकते हैं कि मनुष्य एक लघु ब्रह्मांड है और संपूर्ण जगत विश्व ब्रह्मांड है। यानी जो कुछ व्यष्टि में हो रहा है, वहीं समष्टि में हो रहा है। इसीलिए उपनिषद में कहा गया है, ‘यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे।’ यानी दोनों चेतनामयी हैं।
विज्ञान भी मानता है कि संसार की सभी वस्तुएं स्पंदनीय ऊर्जा की ही सतत क्रियाएं हैं। यानी हम अगर मानसिक तरंग प्रतिरूप को संयोजित, स्थापित और संप्रेषित करने की क्षमता हासिल कर लेते हैं, तो चेतना को अभिव्यक्त करने में सफल हो सकते हैं। अपनी इन्हीं विज्ञान सम्मत संभावनाओं के चलते निरंजनानंद सरस्वती नासा के पांच सौ वैज्ञानिकों के समूह में शामिल हैं।
ये लोग इस अध्ययन में जुटे हैं कि भविष्य में अगर दूसरे ग्रहों पर मनुष्य गया तो वह वहां मौजूद चुनौतियों से कैसे सामना कर सकता है। दरअसल, ऊर्जा या प्रकृति के जो भी जीवनदायी तत्त्व हैं, वे ऊर्जा के अक्षय स्रोत हैं, उनका पूर्ण रूप में क्षरण कभी नहीं होता, लेकिन विघटन होता है। इसलिए विघटित शक्ति को आसुरी और अक्षय अर्थात केंद्रीय शक्ति को दैवीय कहा है।
इसी ऊर्जा से पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य का निर्माण हो रहा है। एक ही पदार्थ से एक के बाद एक वस्तुएं रूपांतरित होकर नया आकार लेती रहती हैं। इन सभी अस्तित्वों में चेतना अंतर्निहित है। लेकिन चेतना का आकार अत्यंत सूक्ष्म है। चेतना के इस पहलू को भारतीय मनीषियों ने बहुत पहले जान लिया था, अब इसे ही दुनिया के आधुनिक वैज्ञानिक जानने में अपनी प्रज्ञा लगा रहे हैं।