Kuppali Venkatappa Puttappa’s 113th Birthday: कन्नड भाषा के मशहूर रचनाकार कवि कुवेम्पु को आज गूगल ने होम पेज पर जगह दी है। कवि कुवेम्पु कन्नड साहित्य को नयी उंचाइयों पर पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं। कुवेम्पु प्रकृति के रचनाकार है और उनकी कविताओं में प्रकृति की अनुपम सुंदरता देखने को मिलती है। आज 20वीं सदी के इस कवि की 113वीं जयंती है। गूगल ने डूडल बनाकर इन्हें श्रद्धांजलि दी है। गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में अपनी लेखनी चलाने वाले कवि कुवेम्पु का पूरा नाम कुप्पली वेंकटप्पा पुटप्पा था। लेकिन साहित्य जगत में इन्हें प्रसिद्धि कुवेम्पु के नाम से ही मिली। कुवेम्पु कन्नड भाषा के प्रखर समर्थक थे और इनका मत था कि कर्नाटक में शिक्षा का माध्यम कन्नड भाषा ही होना चाहिए। कुवेम्पु की कविता पूवु’ (फूल) में प्रकृति से उनकी नजदीकी नजर आती है। वो लिखते हैं, ‘सुबह-सुबह ओस भरी पर हरियाली पर चलते हुए/ और शाम को जो डरावना भी है, सांसे लेते हुए हे फूल, मैं तुम्हारे गीतों को सुनता हूं, मैं तुम्हारे प्यार में खोता हूं।’
कुवेम्पु अपने आस-पास की चीजों में छिपी हुई गहराई और आश्चर्य को कविता में जगह देना पसंद करते थे। मैसूर में 29 दिसंबर 1904 को जन्में कुवेम्पु कन्नड की गरिमा को उच्चतम स्तर पर ले गये। सरकार ने इनके योगदान को सम्मान दिया और इन्हें केन्द्र सरकार ने ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा ने राज्य सरकार ने उन्हें 1958 में राष्ट्रकवि के सम्मान से नवाजा। 1992 में कर्नाटक सरकार ने उन्हें कर्नाटक रत्न का सम्मान दिया।
रामचरति मानस पर आधारित उनकी रचना श्री रामायण दर्शनम को आधुनिक काल में महाकाव्य परंपरा के पुनर्जीवन से जोड़कर देखा जाता है। इस रचना की वजह से महाकाव्य परंपरा भारतीय साहित्य में एक बार फिर से सजीव हो उठी। सार्वभौमिक मानववाद पर लिखी उनकी रचनाएं उन्हें आधुनिक भारतीय साहित्य में एक अलग पायदान पर खड़ा करती है। 89 साल की आयु में कवि कुवेम्पु ने 1 नवंबर 1994 को आखिरी सांस ली।
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