Junko Tabei (जुन्को ताबेई) Biography, Age, Achievement, Mount Everest Video, Seven Summits Journey in Hindi: आज का गूगल डूडल जापानी पर्वतारोही जुन्को ताबेई के 80वें जन्मदिन पर बनाया गया है। ताबेई माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने वाली पहली महिला थीं और हर महाद्वीप पर सभी सात सबसे ऊंची चोटियों पर चढ़ने वाली भी पहली महिला थीं। उनका जन्म 22 सितंबर 1939 को हुआ था। वह 16 मई, 1975 को ऑल फीमेल कलाइंबिंग पार्टी की नेता के तौर पर एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचीं। 1992 में, वह “सेवन समिट्स” को पूरा करने वाली पहली महिला बनीं, जो सात महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों पर पहुंची। और 2016 में उनका निधन हो गया था। यदि वह रहती थीं, तो उनका 80वां जन्मदिन होता।
जुन्को का जन्म मिहारू, फुकुशिमा में हुआ था। वह सात बहनों में पांचवे नंबर की थीं। जब उन्होंने पहली बार चढाई की थी तब वह चौथी क्लास में थीं। यह चढ़ाई उन्होंने अपनी टीचर के साथ की थी। उन्होंने पहली बार माउंट नासू के पास चढाई की थी। ताबेई ने 70 से अधिक देशों में सबसे ऊंचे पहाड़ों पर चढ़कर, चोटियों को स्केल करने के लिए अपनी एडल्ट लाइफ समर्पित कर दी।
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जापानी पर्वतारोही जुन्को ताबेई के अंदर शिखर पर पहुंचने का इतना जुनून था कि, वे 76 अलग-अलग देशों में पर्वतों पर पहुंचने वाली एकमात्र महिला बनी थीं।
16 मई 1975 को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली जुन्को ताबेई ( Junko Tabei ) भले ही पहली महिला थी जो माउंट एवरेस्ट पर चढ़ी लेकिन उनका कहना था कि मुझे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने वाले 36 व्यक्ति के रूप में याद किया जाए।
जुन्को ने एक इंटरव्यू में कहा था कि, 'मैंने एवरेस्ट पर चढ़ाई पहली महिला बनने का इरादे से नहीं की थी, ये मैंने अपने जुनून के लिए की था।'
जुन्को ताबेई माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली पहली महिला और 36वीं इंसान थीं। उनसे पहले 35 लोग एवरेस्ट के शिखर पर पहुंच चुके थे।
जुन्को हर महाद्वीप के सभी सात सबसे ऊंची चोटियों पर चढ़ने का मुकाम हासिल करने वाली पहली महिला है। इन चोटियों में Everest, Aconcagua, Denali, Kilimanjaro, Vinson, Elbrus, Puncak Jaya शामिल हैं।
एवरेस्ट फतह करने के 16 वर्ष बाद 1991 में उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था, ''मैं और भी पर्वत फतह करना चाहती हूं।'' उन्होंने यह साहस भरा काम एक ऐसे देश में रहते हुए किया था जहां महिलाओं की जगह घर में मानी जाती थी।
जुन्को ने मासानोबू से साल 1965 में शादी की थी। मासानोबू एक माउंट क्लाइंबर थे और उनकी मुलाकात जापान में पर्वतारोहण के समय ही हुई थी।
जुन्को परिवार की स्थिति खराब होने के चलते जुन्को काफी समय तक पर्वतारोहण नहीं कर पाई थीं।
जुन्को ताबेई को 2012 में पैरिटोनियल कैंसर हुआ, जिसके बाद भी उन्होंने पर्वतारोहण नहीं छोड़ा और आखिर में 20 अक्टूबर 2016 को उनका निधन हो गया।
जुन्को के इस साहस की इसलिए भी तारीफ की जाती है क्योंकि उन्होंने यह कारनामा ऐसे देश में रहते हुए किया था जहां महिलाओं की जगह घर में ही माना जाती है।
साल 1969 में, अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने जापान के लेडीज क्लाइंबिंग क्लब (LCC) का गठन किया जिसका स्लोगन था "Let's go on an overseas expedition by ourselves"
जुन्को ने शोवा महिला विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया और विश्वविद्यालय के पर्वतारोहण क्लब की सदस्य बनी थीं।
जुन्को ने सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर पहुंचकर दुनियाभर में अपनी अलग पहचान बनाई थी, उनके इस साहस को सभी ने सराहा था लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए जुन्को ने काफी परेशनियों का सामना किया था। माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने से 12 दिन पहले वे बर्फीले तूफान में फंस गई थीं। तब गाइड ने उनकी मदद की थी और उन्हें न सिर्फ बाहर निकाला बल्कि शिखर तक पहुंचने के लिए साहस भी बढ़ाया।
जापानी पर्वतारोही जुन्को ताबेई के अंदर शिखर पर पहुंचने का इतना जुनून था कि, वे 76 अलग-अलग देशों में पर्वतों पर पहुंचने वाली एकमात्र महिला बनी थीं।
जापानी पर्वतारोही जुन्को ताबेई ने साल 1975 में एवरेस्ट की चढ़ाई की थी और चोटी पर पहुंचने में फतेह हासिल की थी। उस वक्त जुन्को की उम्र महज 35 वर्ष थी।
35 साल की उम्र में एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी करने के बाद शिखर पर पहुंचने के लिए जापान के सम्राट क्राउन प्रिंस और राजकुमारी ने जुन्को को सम्मानित किया था।
जुन्को साल 1975 में एवरेस्ट पर पहुंची थीं. उस समय उनकी उम्र 35 साल थीं। सफलतापूर्वक शिखर पर चढ़ने के बाद उन्हें जापान के सम्राट, क्राउन प्रिंस और राजकुमारी द्वारा सम्मानित किया गया। वह 76 अलग-अलग देशों में पर्वतों पर पहुंचने वाली एकमात्र महिला बनी थीं।
जुन्को का जन्म मिहारू, फुकुशिमा में हुआ था. वह सात बहनों में पांचवे नंबर की थीं। उन्होंने पहली बार माउंट नासू के पास चढ़ाई की। उस समय वह महज 10 साल की थीं। परिवार की स्थिति खराब होने के चलते जुन्को काफी समय तक पर्वतारोहण नहीं कर पाई थीं।
20 अक्टूबर 2016 को पेट के कैंसर की वजह से उनकी मौत हो गई। वह 77 साल की थीं। कैंसर के इलाज के दौरान भी उन्होंने चढ़ाई जारी रखी थी।
1992 में वह “सेवन समिट्स” को पूरा करने वाली पहली महिला बनीं, जो सात महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों पर पहुंची।
एवरेस्ट फतह करने के 16 वर्ष बाद 1991 में उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था, ''मैं और भी पर्वत फतह करना चाहती हूं.'' उन्होंने यह साहस भरा काम एक ऐसे देश में रहते हुए किया था जहां महिलाओं की जगह घर में मानी जाती थी.
जुन्को ताबेई ने मासानोबू ताबेई से शादी की थी, जो एक माउंट क्लाइंबर थे। मासानोबू से जुन्को 1965 में जापान में पर्वतारोहण के समय मिली थी। जुन्को के दो बच्चे – बेटी नोरिको ताबेई और बेटा शिन्या ताबई है।
ताबेई 76 अलग-अलग देशों में पर्वतों पर पहुंचने वाली एकमात्र महिला बनी थीं, बीमारी से जूझते हुए भी उन्होंने चढ़ाई जारी रखी। लोगों को उनकी सलाह थी, "हार मत मानो... अपनी खोज जारी रखो!"
दो बच्चों की मां ने 1969 में इतिहास रचा था, जब उन्होंने जापान के पहले लेडीज क्लाइंबिंग क्लब की स्थापना की थी। इस क्लब ने उस पारंपरिक धारणा को बदला, जिसमें महिलाओं को घर पर रहने और घर की सफाई करने तक ही महदूद किया गया था।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई कर लौटने के बाद उन्हें जापान के सम्राट क्रॉउन प्रिंस और राजकुमारी समेत अन्य लोगों ने उनका सम्मान किया और उन्हें बधाईयां दीं।
20 अक्टूबर 2016 को पेट के कैंसर की वजह से उनकी मौत हो गई। वह 77 साल की थीं। कैंसर के इलाज के दौरान भी उन्होंने चढ़ाई जारी रखी थी।
एवरेस्ट के बाद उन्होंने 1980 में तंजानिया में किलिमंजारो, 1987 में अर्जेंटीना में एकॉनगुआ, 1988 में अलास्का में मैक्किंले (अब डेनाली) के रूप में, 1989 में रूस में एल्ब्रस, 1991 में अंटार्कटिका में विन्सन मासिफ और 1992 में इंडोनेशिया में कार्स्टेंस पिरामिड (जिसे पुण्यक जया भी कहा जाता है) पर चढ़ाई की।
1991 में एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मैं अभी और पहाड़ चढ़ना चाहती हूं। एवरेस्ट के बाद, उन्होंने 1980 में तंजानिया में किलिमंजारो पर चढ़ाई की।
जुन्को ताबेई ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि मेरी जेनरेशन के पुरूष उम्मीद करते हैं कि महिलाएं घर पर ही रहें और साफ सफाई करें।