सुमन बाजपेयी

जनवरी से मार्च तक का समय स्कूली बच्चों के लिए किसी खतरे से कम नहीं होता। बच्चे ही नहीं, उनके अभिभावकों को भी लगता है कि बस किसी तरह ये दिन गुजर जाएं ताकि वे तनाव नामक दैत्य के चंगुल से बाहर निकल सकें। बोर्ड परीक्षाएं छोटे-बड़े, हर किसी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होती हैं। कड़ी प्रतियोगिता, अधिक अंक पाने की जद्दोजहद, पेरेंट्स की अपने बच्चों से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें और सोशल स्टेट्स का दबाव- यही वजह है कि परीक्षा के दौरान तनाव का स्तर सबसे ज्यादा होता है, जो डिप्रेशन, नर्वस ब्रेकडाउन और सुसाइड की वजह बनता है।

हार्मोन का असंतुलन
अध्ययनों के अनुसार तनाव की स्थिति में कोटीर्जोल नामक हार्मोन के स्राव के कारण याददाश्त कमजोर हो जाती है, नींद नहीं आती, भूख कम लगती है, एकाग्रता में कमी आ जाती है, हथेलियों में पसीना आता है, सिरदर्द, कमर दर्द की शिकायत बनी रहती है। इसके बावजूद अकसर अभिभावक घर में बच्चे को एक स्वस्थ माहौल उपलब्ध नहीं करा पाते, ताकि वह तनाव से बच सके। बल्कि उनका व्यवहार इतना हस्तक्षेप करने वाला होता है कि बच्चे उनकी अपेक्षाओं को पूरा न कर पाने के कारण परीक्षाओं के डर से तो असंतुलित हो ही जाते हैं, साथ ही गलत कदम भी उठा लेते हैं।

माता-पिता की भूमिका अहम है
बच्चों को बार-बार पढ़ने के लिए टोकने के बजाय माता-पिता को चाहिए कि वे उनसे एक स्वस्थ संवाद कायम रखें। लगातार पढ़ते रहने के लिए उन्हें बाध्य करने के बजाय उन्हें रिलैक्स रहने के लिए प्रेरित करें। बेहतर यही होगा कि उनके टीचर से बातचीत करके किस तरह पढ़ना चाहिए, यह जान लें और बच्चे की एक दिनचर्या बनाने में उसकी मदद करें ताकि वह पढ़ने के साथ-साथ थोड़ा मनोरंजन या एंज्वॉय करने का समय भी निकाल कर खुद को रिफ्रेश कर सके।

क्यों होता है तनाव
मनोचिकित्सक डॉ. संदीप वोहरा के अनुसार, यह सच है कि जनवरी से मार्च तक परीक्षा संबंधी तनाव रहता है, पर देखा जाए तो यह तनाव छात्रों में पूरे साल रहता है। छठी, सातवीं, आठवीं कक्षा के छात्र भी हमारे पास तनाव की समस्या लेकर आते हैं। डिप्रेशन के अलावा इस तनाव से आॅब्सेशन सिंप्टम भी देखने को मिला है, यानी इसमें बच्चे का दिमाग एक ही विचार पर अटक जाता है। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों पर अपनी इच्छाएं न थोपें। साथ ही स्कूलों में काउंसलर, अभिभावक, अध्यापक, प्रिंसिपल और मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञ के बीच एक तालमेल होना चाहिए ताकि वे छात्रों की समस्यायों को समझ कर उनका समाधान कर सकें। मनोवैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि परीक्षाओं के दौरान होने वाले तनाव का प्रमुख कारण है छात्रों का गलत विषय चयन करना। जब वे अपने पेरेंट्स की इच्छा से किसी स्ट्रीम को चुनते हैं तो उसमें दिलचस्पी न होने के कारण अच्छे अंक पाना कठिन हो जाता है। कई बच्चे सत्र की शुरुआत में पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं होते, इसलिए परीक्षा के दौरान घबराहट होना स्वाभाविक ही है और इसके लिए काफी हद तक कोचिंग संस्थान भी जिम्मेदार हैं। लंबे समय तक कोचिंग कक्षाओं में पढ़ने के बाद वे इतने थक जाते हैं कि उसके बाद वे जो भी कुछ पढ़ते हैं, वह उन्हें याद नहीं रहता।

नतीजे का इंतजार
परीक्षाओं के दौरान ही नहीं, यह तनाव रिजल्ट आने और उसके बाद इच्छित अंक न पाने तक बना रहता है और धीरे-धीरे उनके जीवन का हिस्सा बन जाता है। अपनी और दूसरों की अपेक्षाओं पर खरा न उतरने की वजह से एक तरह से उन्हें हमेशा टेंशन में रहने की आदत-सी हो जाती है।
अगर परिणाम अच्छा नहीं आता, तो भी वे अवसाद का शिकार हो जाते हैं। अगर दोस्तों का व्यवहार इनके प्रति ठीक न रहे या वे सहयोग न दें तो बच्चा अकेला पड़ा जाता है और हीन भावना का शिकार हो जाता है। साथ ही परिवार की प्रतिक्रिया, यानी माता-पिता के डांटने से वह निराश हो जाता है और आत्मविश्वास कम होते ही नकारात्मक विचार उस पर हावी हो जाते हैं। ऐसे समय में जरूरी है कि माता-पिता उसे किसी किस्म का भावनात्मक आघात न पहुंचाएं, न ही धिक्कारते हुए या उसकी कमियों को गिनाते हुए, उसे अकेला न छोड़ें।

क्या करें
मनोवैज्ञानिक अजय सिन्हा का मानना है कि बच्चों के लिए जरूरी है कि वे अपने नकारात्मक विचारों को तुरंत पहचान उन्हें मन से निकाल दें। उन स्थितियों को चुनौती दें जो उन्हें असफल बनाती हैं। असफल होने की स्थिति में खुद को समझाएं कि जीवन में और मौके भी मिलेंगे, जिनमें सफलता हासिल की जा सकती है। उन कारणों का अवलोकन करें, जिनके कारण रिजल्ट अच्छा नहीं आया। हो सकता है आपने मेहनत की हो, पर ठीक तरह से न की हो। इस तरह आप स्वयं का मूल्यांकन कर पाएंगे। अपने अध्ययनों के तरीकों में सुधार लाएं। अपने बारे में गलत सोचेंगे तो आत्मविश्वास में कमी आएगी। फिर भी लगे कि आप तनाव का सामना नहीं कर पा रहे हैं तो किसी मनोवैज्ञानिक की मदद लें और अपने माता-पिता को अपना सबसे बड़ा दोस्त मानते हुए अपने डर और तनाव को बिना हिचक उनके साथ शेयर करें। पढ़ाई के साथ-साथ थोड़ा एंज्वॉय करते हुए अपराधबोध महसूस न करें और हमेशा तरो-ताजा बने रहें।