बिजली रानी बिजली रानी,
करती हो अपनी मनमानी।
कोई समय नहीं आने का,
निश्चित है तुम्हारे जाने का।
बेवक्त चली तुम जाती हो,
गर्मी में बड़ा सताती हो।
कैसे अपनी करें पढ़ाई,
मुसीबत में हम फंसे हैं भाई।
दिन भर हम स्कूल में रहते,
मास्टरजी की मार को सहते।
पढ़ने को रात ही मिलती है,
समस्या कोई ये सुलझाओ।
मच्छर काटें, न सोने देते,
समय पर आकर हमें बचाओ।
क्यों करती हो ऐसी नादानी,
जबकि तुम हो खूब सयानी।
बिजली रानी… बिजली रानी,
अब छोड़ो अपनी मनमानी।।
गरमी कहर बरपाती है…

सूरज दादा क्यों करते गुस्सा,
इक बात हमें बतलाओ जी।
क्या झगड़ा करके आए घर से,
कुछ रहम तो हम पर खाओ जी।
पंखा-कूलर चलते तेजी से,
उमस यह दिन भर रहती है।
पड़ती बड़े जोर की गरमी,
ये गरमी कहर बरपाती है।
आईसक्रीम और खाई कुल्फी,
न इससे राहत मिलती।
नींबू पानी, जूस पिया है,
खीरा भी तो खाया है।
गरमी रानी तरस करे न,
पसीना बहुत ही आया है।

उमेश चंद्र सिरसवारी