आशा शर्मा
नीम के पत्ते पतले होने के कारण जरा-सी हवा में ही झूमने लगते थे और अपने आसपास के वातावरण को तुरंत ठंडा कर देते थे, जबकि आम के पत्तों को हिलने के लिए तेज हवा के झोंकों की जरूरत पड़ती थी, इसलिए गरमी के मौसम में जब दोनों पेड़ों के फलने का समय आता था, तब नीम के पेड़ पर पक्षियों के बहुत सारे घोंसले बन जाते थे। दोपहर के समय नीम के नीचे आराम करने वाले पशुओं की संख्या भी आम के पेड़ से ज्यादा होती थी। बच्चे भी दिन भर नीम के नीचे ही डेरा डाले रहते थे और फल तोड़ने के लिए पत्थर मार-मार कर उसे चोट पहुंचाते रहते थे। नीम को यह बिल्कुल नहीं सुहाता था। पक्षियों का शोर उसकी सुबह की सुहानी नींद में खलल डाल देता था और पशु उसके नीचे गंदगी फैला देते थे। बच्चे उसकी डालियों पर झूले डाल कर सारा दिन उसे झकझोरते रहते थे। नीम ने सबको सबक सिखाने की ठान ली।
एक दिन सुबह जैसे ही पक्षियों ने चहचहाना शुरू किया, नीम जोर-जोर से अपनी डालियां हिलाने लगा, मानो भूचाल आ गया। पक्षी डर के मारे चीखने लगे और उड़ कर आम के पेड़ पर जा बैठे। दोपहर में जैसे ही पशु उसने नीचे सुस्ताने बैठे, नीम ने निबोलियों की बरसात शुरू कर दी। अचानक हुए इस हमले से पशु घबरा गए और भाग कर आम के पेड़ ने नीचे जमा हो गए। इसी तरह जैसे ही बच्चे झूलने लगे, नीम ने अपनी डालियां नीचे की तरफ झुका दी। बच्चे पींग ही नहीं बढ़ा सके और उन्होंने अपने झूले वहां से खोल कर आम के पेड़ पर डाल लिए। नीम की इन हरकतों के कारण धीरे-धीरे सब उसे छोड़ कर चले गए। वह यही तो चाहता था। अब उसके आसपास बिल्कुल शांति थी। मगर पशु-पक्षियों को नीम की यह चालाकी जल्दी ही समझ में आ गई। उन्होंने प्रकृति देवी के सामने अपनी शिकायत रखी। प्रकृति को नीम की इस दुष्टता पर बहुत गुस्सा आया। उसने नीम को सबके सामने बुलाया और श्राप दे दिया- ‘आज के बाद तुम हमेशा के लिए कड़वे हो जाओगे… तुम्हारे फल भी एकदम छोटे हो जाएंगे।’ देखते ही देखते नीम जहर की तरह कड़वा हो गया। लोगों ने नीम के बगीचे कटवाने शुरू कर दिए। यह देख कर नीम के होश उड़ गए। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे इतनी बड़ी सजा मिलेगी। वह प्रकृति के पैरों में गिर कर माफी मांगने लगा। प्रकृति ने कहा- ‘तुम पशु-पक्षियों और मनुष्य के गुनहगार हो… अगर वे सब तुम्हारे लिए प्रार्थना करें, तो तुम्हारी सजा में कुछ कमी हो सकती है।’
नीम ने सबसे माफी मांगी और अपनी सजा कम करवाने की विनती की। सबके कहने पर प्रकृति ने कहा- ‘मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकती, मगर तुम्हें कुछ औषधीय गुण दे सकती हूं, जिससे तुम सबके लिए उपयोगी बन जाओगे। तुम्हारे फलों को बड़ा तो नहीं करूंगी, मगर उनमें थोड़ा-सा रस भर दूंगी ताकि पक्षी तुम्हें पसंद कर सकें। और हां! कोयल से कह दूंगी कि वह आम के साथ-साथ तुम पर बैठ कर भी कूके, ताकि उसकी मीठी तान सुनने के लिए लोग तुम्हें अपने घरों और बगीचों में जगह दें।’ नीम बहुत शर्मिंदा था। उसे अपने किए की सजा मिल गई थी। उसने एक बार फिर सबसे अपने बुरे व्यवहार के लिए माफी मांगी और भविष्य में सबके साथ मिलजुल कर रहने का वादा किया। अगले दिन नीम के पेड़ पर पक्षी लौटने लगे थे। नीम ने झूम-झूम कर सबका स्वागत किया। कोयल ने भी मीठे सुर छेड़ दिए।