इन दिनों फिर से एक नए विषाणु का प्रकोप देखा जा रहा है। कोविड की तरह ही इस विषाणु का संक्रमण चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है। तमाम चिकित्सा केंद्र और चिकित्सा विज्ञानी इसे लेकर सतर्क दिखने लगे हैं। इस विषाणु का नाम है एच3एम2। इससे इन्फ्लुएंजा (फ्लू) का संक्रमण बढ़ता है। कोरोना की तरह यह भी सांस संबंधी परेशानियां पैदा करता है। इसके लक्षण भी लगभग वही हैं, जो कोरोना में देखे जाते हैं- बुखार, सिर दर्द, उल्टी, बदन दर्द आदि।
इन्फ्लुएंजा को मौसमी बुखार के रूप में भी जाना जाता है
इन्फ्लुएंजा को मौसमी बुखार के रूप में भी जाना जाता है। यह इस मौसम में लगभग हर साल प्रकट हो जाता है। इन्फ्लूएंजा श्वसन प्रणाली का एक संचारी विषाणुजनित रोग है। इससे संक्रमित व्यक्ति जब बात करते, खांसते या छींकते हैं तो यह विषाणु संक्रमित व्यक्ति की सांस से फैलता है। इस समय इस विषाणु का प्रकोप कुछ अधिक देखा जा रहा है। आमतौर पर इस बुखार का मौसम अप्रैल से सितंबर तक रहता है, और इसका प्रभाव गंभीरता और अवधि में भिन्न होता है।
इस बीमारी के संक्रमण की दृष्टि से छोटे बच्चे, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग अति संवेदनशील माने जाते हैं। मगर इस बार जिस तरह इन्फ्लूएंजा का विषाणु लोगों को लंबे समय तक और गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है, उसमें सभी को अतिरिक्त रूप से सावधान रहने की जरूरत रेखांकित की जा रही है।
लक्षण
मुख्य रूप से फ्लू के लक्षणों में सिर दर्द, उल्टी और दस्त देखे जाते हैं। कुछ लोगों में खांसी, मांसपेशियों या शरीर में दर्द, बुखार या ठंड के साथ बुखार, थकान, नाक और गले में खरास आदि लक्षण भी देखे जाते हैं।
हालांकि इन्फ्लूएंजा से संक्रमित अधिकांश लोग घर पर रह कर ही इसका उपचार कर सकते हैं। आमतौर पर इसके लिए अस्पताल जाने या भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती। मगर समस्या गंभीर लग रही है, बुखार और दर्द अधिक है, तो अपने चिकित्सक से जरूर संपर्क करें।
कारण
इस मौसम में बुखार इन्फ्लूएंजा विषाणु के कारण होता है, जो नाक, गले और फेफड़ों को संक्रमित करता है। यह संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है। दूषित हाथों से होंठ, आंख या नाक को छूने से भी व्यक्ति इसकी चपेट में आ सकता है। मौसमी इन्फ्लूएंजा छोटे बच्चों को छह महीने से पांच साल तक और पैंसठ साल या उससे अधिक उम्र के वयस्कों को प्रभावित करता है। यह कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों, किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति, गर्भावती महिलाओं पर अधिक गहरा प्रभाव छोड़ता है। इस संक्रमण की वजह से न्यूमोनिया, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा का दौरा, हृदय संबंधी समस्याएं, कानों में संक्रमण, सांस लेने में कठिनाई आदि समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
बचाव
इन्फ्लूएंजा के संक्रमण से बचने के लिए हर साल इसका टीका अवश्य लेना चाहिए, क्योंकि यह संक्रमण की गंभीरता को कम कर सकता है और अस्पताल में भर्ती होने से बचा जा सकता है। इसके लिए उपलब्ध टीके के कई विकल्प हैं, जिनमें नेजल स्प्रे और पारंपरिक जैब्स शामिल हैं। चिकित्सक स्वास्थ्य और जोखिम कारकों के आधार पर इनमें से किसी एक प्रकार के टीकाकरण का सुझाव दे सकते हैं।
इसके अलावा स्वस्थ आदतों का पालन करें, जैसे साबुन से हाथ धोना। फर्नीचर और खिलौनों जैसी वस्तुओं को साफ करने के लिए कीटाणुनाशक का उपयोग करें। खांसते और छींकते समय अपना मुंह ढंक लें ताकि संक्रमण का जोखिम कम से कम हो। गंदे हाथों से मुंह, नाक या आंखों को छूने से परहेज करें। हर रात आठ घंटे सोएं। नियमित व्यायाम से प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद मिलती है, इसलिए अपनी दिनचर्या में व्यायाम को अवश्य शामिल करें। योगाभ्यास और प्राणायाम इसमें सबसे कारगर साबित होते हैं।
निदान
जब भी आपको लगता है कि संक्रमण का प्रभाव गंभीर है, तो चिकित्सक की मदद अवश्य लें। चिकित्सक पहले आपके स्वास्थ्य संबंधी ब्योरों, जैसे पुरानी बीमारियों आदि का अध्ययन करते हैं, फिर वे फ्लू के निदान के लक्षणों के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं। फ्लू की प्रकृति की पहचान के लिए कई परीक्षण उपलब्ध हैं। उनमें से एक पोलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) परीक्षण है, जो अन्य परीक्षणों की तुलना में अधिक संवेदनशील है और इन्फ्लूएंजा संक्रमण को पहचानने में मदद करता है।
हालांकि बहुत से लोग खुद फ्लू की बीमारी का ध्यान रख सकते हैं। दर्द निवारक दवा ले सकते हैं। इस संक्रमण से उबरने के लिए आपको अधिक आराम करने और अपने आहार में तरल पदार्थों की मात्रा बढ़ाने की जरूरत होती है। बीमारी गंभीर या जटिल होने, उच्च जोखिम के मामले में, डाक्टर इसके इलाज के लिए विषाणुरोधी दवाएं लिख सकते हैं, मगर कभी भी इनका इस्तेमाल अपनी मर्जी से नहीं करना चाहिए।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)